अक्टूबर 2018 में छुट्टी पर भेजे जाने से पहले आलोक वर्मा राफेल सौदे से लेकर स्टर्लिंग बायोटेक जैसे कई हाई-प्रोफाइल मामले देख रहे थे. इनमें से एक मामला ऐसा है जिसमें प्रधानमंत्री के सचिव आरोपी हैं.
नई दिल्ली: राफेल सौदे से लेकर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामला, कोयला खदान आवंटन मामले में कथित रूप से आईएएस अधिकारी भास्कर कुल्बे की भूमिका के अलावा स्टर्लिंग बायोटेक मामले में राकेश अस्थाना की कथित भूमिका की जांच सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा कर रहे थे.
इस बीच देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) में मचे घमासान की वजह से दोनों वरिष्ठतम अधिकारी- आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया.
आलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिस पर 8 जनवरी को फैसला सुनाते हुए उन्हें अवकाश पर भेजने के फैसले को ख़ारिज करते हुए वर्मा को बहाल कर दिया था.
हालांकि अदालत ने अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च अधिकार प्राप्त चयन समिति पर छोड़ा था, जिसने 10 जनवरी को सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को पद से हटा दिया.
वर्मा में अपनी शीर्ष अदालत में डाली गई याचिका में ये भी कहा था कि वे कुछ बेहद संवेदनशील मामलों की जांच प्रक्रिया में थे और कानूनी रूप से सीबीआई निदेशक को उनकी नियुक्ति से लेकर दो साल तक नहीं हटाया जा सकता है.
अगर किसी विशेष परिस्थिति में निदेशक को हटाना है तो उस चयन समिति की सहमति लेनी होती है जिसने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति की सिफारिश की थी. इस चयन समिति में भारत के प्रधानमंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते हैं.
केंद्र की मोदी सरकार की ओर से आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने पर विपक्ष ने सवाल उठाए थे. विपक्षी दलों का कहना था कि राकेश अस्थाना को बचाने और राफेल सौदे की जांच से बचने के लिए आलोक वर्मा को अचानक छुट्टी पर भेज दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आलोक वर्मा कुछ ऐसे बेहद संवेदनशील मामलों की जांच करने के अलावा कुछ ऐसे मामले देख रहे थे जिनकी जांच की शुरू होने वाली थी.
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इसमें सबसे मुख्य मामला है कथित राफेल सौदा घोटाला: पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिंहा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले को लेकर चार अक्टूबर को सीबीआई में 132 पेज का शिकायत पत्र सौंपा था, जिसे आलोक वर्मा ने स्वीकार किया था. इस शिकायत की सत्यापन प्रक्रिया एजेंसी के अंदर चल रही थी. सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस पर जल्द ही फैसला लिया जाना था.
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सीबीआई मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रिश्वत मामले में हाई-प्रोफाइल लोगों की भूमिका की जांच कर रही थी. इस मामले में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी को गिरफ्तार किया गया था. सूत्रों ने बताया कि कुद्दूसी के खिलाफ चार्जशीट तैयार कर ली गई थी और सिर्फ आलोक वर्मा का हस्ताक्षर होना बाकी था.
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मेडिकल एडमिशन में कथित भ्रष्टाचार मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला आरोप थे और एजेंसी ने इस मामले को अपनी जांच में शामिल किया था. सूत्रों ने बताया कि प्राथमिक जांच पूरी हो गई थी और इस पर सिर्फ आलोक वर्मा के हस्ताक्षर बाकी थे.
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भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा वित्त और राजस्व सचिव हसमुख अधिया के खिलाफ की गई शिकायत भी सीबीआई जांच के दायरे में थी.
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प्रधानमंत्री के सचिव आईएएस अफसर भास्कर कुल्बे की कोयला खदानों के आवंटन में कथित भूमिका को लेकर सीबीआई जांच कर रही है.
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एक अन्य मामले में दिल्ली स्थिति एक बिचौलिए के यहां अक्टूबर के पहले महीने में छापा मारा गया था. इस दौरान लोगों को किए गए भुगतान की एक कथित सूची और तीन करोड़ रुपये कैश में बरामद हुआ था. सीबीआई को ये बताया गया था कि इस व्यक्ति ने पीएसयू में सीनियर पदों पर नियुक्ति के लिए नेता और अधिकारियों को रिश्वत दी थी.
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सीबीआई नितिन संदेसरा और स्टर्लिंग बायोटेक मामले की जांच खत्म करने वाली थी. इस मामले में सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की कथित भूमिका को लेकर जांच की गई थी.