केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 50 करोड़ रुपये और उससे अधिक का ऋण लेने और जानबूझकर उसे नहीं चुकाने वालों के नाम के संबंध में सूचना नहीं उपलब्ध कराने को लेकर आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस भेजा है.
नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने जानबूझकर बैंक ऋण नहीं चुकाने वालों की सूची का खुलासा करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ‘अनुपालना नहीं’ करने के लिए आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. सीआईसी ने इसके साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कहा है कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा भेजे गए एनपीए के बड़े घोटालेबाजों की सूची पर क्या कदम उठाया गया है.
इससे पहले द वायर ने आरटीआई दायर कर ये जानकारी दी थी कि आरबीआई, पीएमओ और वित्त मंत्रालय रघुराम राजन द्वारा भेजे गए एनपीए के बड़े घोटालेबाजों की सूची नहीं दे रहे हैं. केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने द वायर की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए रघुराम राजन की सूची पर क्या कदम उठाया गया है, इसके बारे में 16 नवंबर 2018 से पहले जानकारी देने के लिए कहा है.
द वायर को आरटीआई के तहत आरबीआई से मिले जवाब से पता चला था कि रघुराम राजन ने 4 फरवरी 2015 को एनपीए के बड़े घोटालेबाज़ों के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था. आरबीआई के मुताबिक राजन ने सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय ही नहीं, बल्कि वित्त मंत्रालय को भी ये सूची भेजी थी, जिसके मुखिया केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 50 करोड़ रुपये और उससे अधिक का ऋण लेने और जानबूझकर उसे नहीं चुकाने वालों के नाम के संबंध में आरबीआई द्वारा सूचना नहीं उपलब्ध कराने को लेकर नाराज सीआईसी ने उर्जित पटेल से यह बताने के लिए कहा है कि फैसले की ‘अनुपालना नहीं करने’ को लेकर उन पर क्यों न अधिकतम जुर्माना लगाया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन सूचना आयुक्त शैलेश गांधी के उस फैसले को बरकरार रखा था जिसमें उन्होंने जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के नामों का खुलासा करने को कहा था. सीआईसी ने कहा कि पटेल ने बीते 20 सितंबर को केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में कहा था कि सतर्कता पर सीवीसी की ओर से जारी दिशानिर्देश का उद्देश्य अधिक पारदर्शिता, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की संस्कृति को बढ़ावा देना और उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले संगठनों में समग्र सतर्कता प्रशासन को बेहतर बनाना है.
सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा, ‘आयोग का मानना है कि आरटीआई नीति को लेकर जो आरबीआई गवर्नर और डिप्टी गवर्नर कहते हैं और जो उनकी वेबसाइट कहती है उसमें कोई मेल नहीं है. जयंती लाल मामले में सीआईसी के आदेश की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुष्टि किए जाने के बावजूद सतर्कता रिपोर्टों और निरीक्षण रिपोर्टों में अत्यधिक गोपनीयता रखी जा रही है.’
उन्होंने कहा कि इस अवहेलना के लिए केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को दंडित करने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी क्योंकि उन्होंने संस्थान के बड़े अधिकारियों के निर्देश के तहत ये कार्य किया.
आचार्युलू ने कहा, ‘आयोग गवर्नर को डीम्ड पीआईओ मानता है जो कि खुलासा नहीं करने और सुप्रीम कोर्ट एवं सीआईसी के आदेशों को नहीं मानने के लिए जिम्मेदार हैं. आयोग उन्हें 16 नवम्बर 2018 से पहले इसका कारण बताने का निर्देश देता है कि इन कारणों के लिए उनके खिलाफ क्यों न अधिकतम जुर्माना लगाया जाए.’
उन्होंने आरबीआई के संतोष कुमार पाणिग्रही की इन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून की धारा 22 उनके द्वारा उद्धृत उन विभिन्न कानूनों को दरकिनार नहीं करती जो जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के नामों का खुलासा करने से रोकते हैं और इसलिए आरबीआई को खुलासे के दायित्व से मुक्त कर दिया जाना चाहिए.
आचार्युलू ने कहा कि पाणिग्रही की यह दूसरी दलील भी आधारहीन है कि मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक जनहित याचिका उन्हें खुलसा करने से रोकेगी क्योंकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित ऐसा कोई अंतरिम आदेश पेश नहीं किया जो जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के नामों का खुलासा करने से रोकता है या जो सीआईसी के समक्ष सुनवाई के खिलाफ हो.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)