सोशल मीडिया पर राजनीतिक संवाद तर्क पर कम और मन के विश्वास पर ज़्यादा आधारित है

मुद्दा ये नहीं है कि आप किसका समर्थन करते हैं. आप बिल्कुल उन्हीं को चुने जिसका आपको मन है, लेकिन ये उम्मीद ज़रूर है कि आप अपने विवेक पर पर्दा न डालें.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

मुद्दा ये नहीं है कि आप किसका समर्थन करते हैं. आप बिल्कुल उन्हीं को चुने जिसका आपको मन है, लेकिन ये उम्मीद ज़रूर है कि आप अपने विवेक पर पर्दा न डालें.

प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स
प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स

विगत कुछ महीनों से सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर कुछ लोगों के साथ मीठी तकरार वाली राजनीतिक बातचीत चलती आ रही है. उसमें आत्मवलोकन की संवेदना भी है और कटाक्ष का मज़ा भी. 

आजकल का राजनीतिक युद्ध वैसे भी एंकरों द्वारा समाचार चैनलों के स्टूडियो और वॉट्सऐप के मैसेजों पर लड़ा जा रहा है. इसमें कुछ परिजनों और प्रिय लोगों से नोक-झोंक, बाता-बाती हो, ये बिल्कुल सामान्य है.

कम से कम ये राजनीतिक होने का एहसास तो दिलाती है, वरना कभी ऐसा भी लगता था कि मॉल वाली उपभोक्ता-गिरी में राजनीतिक सोच रखने वालों का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा. खेमे बंट गए हैं.

राजनीतिक विचार उबाल पर है. मीम और मैसेज दनादन दागे जा रहे हैं. इंटरनेट पर तथ्य की खोज हो रही है, और साथ ही वहीं पर कुतथ्य भी गढ़े जा रहे हैं. विश्लेषण कम और चुटकुले ज़्यादा साझा हो रहे हैं.

इन सब में एक अच्छी बात देखी जा सकती है. फैमिली वॉट्सऐप ग्रुप में दो तरह के ही मैसेज चलते थे. एक सुबह का सुविचार और दूसरा दिन भर का पति-पत्नी के चुटकुले. अब उंगली की थपथपाहट पर राजनीति भी आ गई है हमारी आम दिनचर्या में, ये ठीक है, लेकिन किस तरह से आई है, ये अभी और भी सोचने का विषय है.

दो बातें स्पष्ट होती हुई दिख रहीं हैं. पहली, इस नोंक-झोंक और तकरार के माहौल में किसी के बात का बुरा लगना स्वाभाविक भी है और बेमानी भी.

स्वाभाविक इसलिए कि कल (यानी कुछ वर्षों पहले) तक जो लोग आपकी ‘उपलब्धि’ पर ख़ुश होते थे, आज वही उपलब्धि, बदले हुए राजनीतिक शब्दकोश के अनुसार गाली बन गई है. ‘झोलाधारी’ उनमें से एक है. मतलब आप समझ गए होंगे. किसी खास यूनिवर्सिटी का अभिप्राय छुपा नहीं है.

इस तरह के इल्ज़ाम अब वैसे साधारण-सी बात बन गए हैं. पिछले कुछ सालों में इस इल्ज़ाम के बढ़ते शब्दकोश में नए-नए लफ़्ज़ जुड़ते चले गए हैं.

राष्ट्रवादी, राष्ट्र-विरोधी से ये सफ़र शुरू हुआ था, अरबन नक्सल पर गाड़ी अंतिम आकर रुकी है. उम्मीद है, गाड़ी पर कोई ‘स्टैच्यू’ नहींं बोलेगा. इंशाअल्लाह, फौरन ही फिर चल पड़ेगी.  

लेकिन इन बातों का बुरा लगना बेमानी भी है. वो इसलिए है कि क्यों न ये शब्द, जो लंबे समय से अपने भीतर एक ही अर्थ को संजोये बैठे थे, गाली बने?

सामाजिक परिवेश भाषा और लफ़्ज़ों को मायने भी देता है और उनको बदलता भी है. नए राजनीतिक शब्दकोश में पुराने शब्दों के नए अर्थ निकाले जाएंगे, ये स्वाभाविक है, इसलिए इसका बुरा मानना बेकार है.

सोचने-बोलने, लिखने-पढ़ने के कवायद पर ‘बुद्धिजीवी’ होने का तिलक सिर्फ चंद लोगों के माथे पर ही क्यों लगा रहे? बाकी अनपढ़ तो हैं नहींं, और अनपढ़ हैं भी तो क्या? गांधी को महात्मा तो आख़िरकार ‘किसान-ओटियार’ (peasant-volunteer शब्द का आंचलिक रूप) ने ही बनाया था. गांधी को गांधी-बाबा उनके विश्वास ने बनाया था.

सामान्य अभिप्राय यह है कि बुद्धिजीवी वर्ग समाज का विश्लेषण समाज से कटकर तो कर नहींं सकते. जनता से जुड़कर ही जनता की बात करिए– ऐसा अक्सर बतौर तोहमत बोल दिया जाता है.

सवाल ये है कि क्या बुद्धिजीवी वर्ग सच में इतने कटे थे या अभी, आज के राजनीतिक परिवेश में, ये एक ऐसी प्रबल धारणा बन गई है या तमाम हथकंडों को अपना कर बनाई गई है?

अपने छात्र जीवन में झोलाधारी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए ऐसे बहुत से लोग लालायित रहे हैं जो आज उसी जगह को मिटा देने की बात करते हैं. राजनीतिक सरगर्मी का असर है या निजी विफलता की कशिश– वो तय करें. बात अभिमान की नहींं, तर्क और संदर्भ की है.

बहुत से लोग पूछते हैं नारा तो लगा था वहां, तो क्यों नहीं उस पूरी जगह को ही एक सटीक सीख सिखलाई जाए- उसके स्वरूप को बदल दिया जाए.

सुना है वहां टैंक लगा है देशभक्ति बढ़ाने के लिए. ज़रूर स्टील की रेलिंग से घिरा होगा, 15 अगस्त और 26 जनवरी को कुछ सूखे फूल भी पड़े होंगे. टैंक तो बेचारा वैसे ही ख़ामोश खड़ा रहेगा, हां उसके आस-पास ज़रूर बीच-बीच में टैंक लगाने वालों का गर्जन सुनाई देगा.

उन गरजने वालों से एक सवाल है. अगर कुछ लोगों के तथाकथित नारे के कारण पूरी जगह को बदल देना वाज़िब है, तो जब कोई डॉक्टर गुर्दा का खरीद-फरोख़्त करता है तो क्यों नहींं पूरे डॉक्टर समुदाय को एक न भूलने वाला सबक सिखलाया जाता है?

जब कोई बैंकर घूस लेता है (और बाद में ‘निर्मल बाबा’ का भक्त बन जाता है) तो क्यों नहींं पूरे बैंक-प्रणाली को छिन्न-भिन्न कर ‘दुरुस्त’ कर दिया जाता है? जब कोई साधु और बाबा अपने घर में ‘पाप’ की सुरंग खोदता है तो क्यों नहीं पूरे साधु समाज को उसका ‘दंड’ मिलता है?

ये सारे तर्क तो तब लागू होते हैं जब ये मान लिया जाए कि कुछ लोगों ने नारा लगाया था. सवाल ये है कि सरकार ने अब तक केस क्यों नहीं चलाया है जब उसे ‘सच्चाई’ इतने पुख्ता रूप से पता था कि फौरन राष्ट्रद्रोह के अंदर गिरफ़्तारी तो हो गई लेकिन मुक़दमा नहीं चला?

दो साल तक कोई केस नहीं. लगता तो यही है कि मीडिया ट्रायल कराकर समाज में किसी एक संस्था और समुदाय के प्रति ज़हर घोलना ही एकमात्र मक़सद था. मक़सद पूरा हुआ, इसमें कोई दो राय नहींं.

खुद की बात करें, अब ट्रेन में सफ़र करते वक़्त ये बतलाने में डर लगता है कि पढ़ाई जेएनयू से हुई है. लिंच हो गया तो? एक तरह से अच्छा ही है कि सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर ही नोंक-झोंक और बयानबाज़ी सीमित है. जान है तो जहान है.  

ये इल्ज़ाम इस नोंक-झोंक और तकरार का एक हिस्सा है. ऐसा नहींं कि दूसरी तरफ से बयानबाज़ी नहीं होती है. कोई भक्त और दंगाई है तो कोई दोगला, झोलाधारी और नक्सल.

लेकिन एक पलड़ा अगर सरकारी तंत्र से जुड़कर बयानबाज़ी करे, या उसके मुंह में शब्द और उंगलियों पर मीम थमा दिया जाए, तो उसका प्रभाव कुछ और ही ढंग का होता है. सीधे तौर पर एक डर का निर्माण होता है. और इसी डर का दूसरा पहलू है ख़ामोशी.

इसका एक तीसरा पहलू भी है, जो है आत्म-विवेक पर अस्थायी कम्बल ओढ़ा देना. इस पर चर्चा करेंगे पहले डर की बात. सब डरे और ख़ामोश नहींं हैं. और होना भी नहीं चाहिए.

राजनीति का ये स्वरूप जो आम तौर पर हमारे समाज, परिवार और स्मार्ट फोन से अभिन्न होकर घुल-मिल गया है, उसमें एक और भी गंभीर बात है और ये एक छोटे से उदाहरण से दिखता है.

बिहार की राजनीति के बारे में बात चल रही थी. जब नीतीश कुमार एनडीए के साथ थे तो वे ‘नीतीश जी’ थे, ‘सुशासन बाबू’ थे, जब उन्होंने लालू यादव के साथ महागठबंधन बना लिया, तो वो नीतीश जी से ‘नीतीशवा’ हो गए.

अभी वे फिर से नीतीश जी हो गए हैं. आदर फिर से बहाल हो गया है. विश्वास वापस आ गया है कि वो काम बढ़िया कर रहे हैं. एक पलटी अगर और लगी तो फिर से ‘नीतीशवा’ पर आ सकते हैं.

अगर आंखें मींच लेने से राजनीति की हवा बदलती है तो लफ़्ज़ों के बदलने से तर्क विश्वास के पल्लू में छिपा नज़र आता है. अब ये मान लिया जाए कि राजनीतिक संवाद, तर्क पर कम और मन के विश्वास (belief system) पर ज़्यादा आधारित रहेगा.

ये विश्वास अपना तर्क खुद ढूंढ लेगा. बहस करने वाले आरग्युमेंटेटिव इंडियन (Argumentative Indian) अब पुरानी बात हो गई है. Believing Indian यानी विश्वास करने वाले भारतीय नई पहचान हैं.

एक मीम देखा जिसमें पेट्रोल के 76 रुपये से 80 रुपये हो जाने को सही ठहराया गया था. घर की मरम्मत हो रही है, कुछ ख़र्चा-पानी तो ज़्यादा लगेगा – एक ‘तर्क’ आया.  ये सवाल अगर उठे कि गिरती कीमत का लाभ उपभोक्ता को क्यों नहीं दिया गया तो जवाब आएगा देशद्रोही हो क्या?

आप वीडियो दिखलाकर कुछ लोगों को याद दिलाएंगे कि 4 साल पहले गिरते रुपये के कीमत को भारत की गिरती शान के साथ जोड़ा गया था. अब इसकी गिरती कीमत को किस चीज़ से जोड़ा जाए? वो बोलेंगे, तुम पक्षपाती हो.

ये सारे जवाब, जो सवालों से मीलों दूर है, एक नए विश्वास को दिखलाता है. आप सवाल पूछ कर गुमराह न करें. काम हो रहा है ये विश्वास करें, इसका सबूत न मांगे.

स्पेन-मोरोक्को सीमा की तस्वीर को भारत के गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में भारत-पाकिस्तान और भारत-बांग्लादेश का बॉर्डर बताकर विद्युतीकरण की वाहवाही लूटी गई, लेकिन आप इस पर चुप रहें, इसकी विवेचना मत करें.

अगर तथ्य मांगे या बतलाए, चित्र या न्यूज़ की पुष्टि मांगी, तो दोगला अथवा गद्दार कहला सकते हैं. भक्ति रखें. कबीर वाली नहींं, शायद हनुमान वाली.

एक-दो बातें खटकती हैं इस सारे प्रकरण में. बात जब भी वर्तमान की होती है, तो पहला संदर्भ 60 साल पहले का आता है, ऐसा क्यों? थोड़ा हास्यास्पद लगता है जब लोग ऐसा करते हैं- आप बोलें कि अभी के राजनीति की फलां बात गलत लगती है, तो जवाब हाज़िर है- पहले ऐसा नहीं था क्या?

समझ में नहीं आता है कि अगर पहले वाले से ही अपना औचित्य सिद्ध करना था तो नए वाले को लाने की ज़रूरत क्या थी!

आप तो ये कहते थे आप अलग हैं, फिर आप अपनी साख को दूसरों के अतीत से क्यों मिलाते हैं? पहले ये तय कर लें, क्या आप अलग हैं या वही पुराने हुजूम के नए पात्र? कम से कम जैकेट तो अलग बनवा लेते. लेकिन वो भी नहीं हुआ. ये सरकार टैग बदलती है, सामान नहीं. और अगर सामान बदलती है तो वही जिससे रंजिशें पैदा हो.

लेकिन आप ऐसा कह नहीं सकते, किसी का विश्वास टूट जाएगा. और आपसे फिर 60 साल का हिसाब पूछा जाएगा. आप ज़रूर मानेंगे कि 60 साल का राज भी बहुत सारी गलतियों से भरा था.

तो फिर जवाब आएगा, तो सिर्फ इस सरकार की ग़लती क्यों गिनायी जाए. आप उन्हें याद दिलाएंगे कि आप अलग होने का दावा करते थे. बात गोल-गोल घूमती रहेगी. स्थिति ऐसी है कि 2014 के पहले भारत में कुछ अच्छा था भी कि नहीं अब बताना मुश्किल हो जाएगा.

आप जानते तो ज़रूर हैं लेकिन बोलेंगे नहींं. और जो लोग बोलेंगे उन पर फिर से टैग लगेगा. आप भारत की चमचमाती सड़क निर्माण का सपना रूसी सड़कों की चकाचौंध से देखेंगे, लेकिन विश्वास के बोझ तले चुप रहेंगे.

टैग से याद आया, वैसे 2015 में एक मशीन तंत्र वाला बाघ आया था मेक इन इंडिया का मैस्कॉट बनकर. लगता है पेरिस से होकर बाघ किसी घने जंगल में छुप गया है. शायद कलपुर्ज़े की मरम्मत हो रही है. पेट्रोल वाली बचत उसी में ख़र्च हो रहा है. जब तक बाघ आएगा बाहर, तब तक गाय से ही राजनीति की जाए.

दूसरी चीज़ जो खटकती है वो है इस विश्वास के तहत एक अंदर तक घर की हुई आहत और पीड़ित होने की मानसिकता. ये 60 साल का कंगारू उछाल, थोड़ी बौखलाहट के साथ, मर्माहत होने का प्रतीक है.

आम के सवाल पर इमली का जवाब देना इसका नमूना है. नोटबंदी पर शाहबानो, राफेल पर सड़क निर्माण, सड़क निर्माण पर रूसी चित्र, और तकिए के नीचे नेहरू के भूत को हमेशा जगाकर रखना– ये विश्वास और मर्माहत दोनों के होने को दिखलाता है.

वैसे, यही बात दूसरी तरफ से भी उठती है, जिसे हम अपना तर्क मानते हैं वो हमारी ईर्ष्या है. हम खुद, झोलाधारी और दोगले होने के साथ साथ, मर्माहत हैं. किसी व्यक्ति या विचारधारा के मज़बूत होने से जल रहे हैं.

इन बातों का जवाब बहुत सरल है: ये सोच कि जो मौजूदा राजनीतिक तौर-तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं वो पक्षपात से ग्रसित हैं, आपकी अंधभक्ति की उपज है.

आपने 2014 के पहले तमाम क़िस्म के लोगों द्वारा उस समय के मौजूदा सरकार पर उठाए गए सवालों पर ‘सलेक्ट ऑल’ करके डिलीट मार दिया है. ये डिलीट शायद आपने खुद नहीं, आपके आका ने मारा है. दरअसल आपकी प्रोग्रामिंग हो गई है और आपको शायद ठीक से पता भी नहीं चला है.    

मुद्दा ये नहीं है कि आप किसका समर्थन करते हैं. जनाब, आप बिल्कुल उन्हीं को चुने जिसका आपको मन है. सवाल यह नहींं है कि कोई आपके मत और विचार बदलने की को ज़ोर-ज़बरदस्ती कर रहा है, लेकिन ये ज़रूर उम्मीद है कि आप अपने विवेक पर पर्दा न डालें.

आप बिल्कुल समर्थन कीजिए जिसका भी आप करना चाहते हैं, लेकिन साथ-साथ बिना गाली दिए, मर्माहत हुए, अपनी विवेचनात्मक पहचान ज़रूर बनाए रखिए. थोड़ा ग़लत को ग़लत बोलकर देखिए, खुद पर मज़ा और ग़ुरूर दोनों आएगा.

इस खेमे-बंटवारी में याद आती है यूनिवर्सिटी के दौरान सुनी हुई एक बात, जिनसे मत-भिन्नता होती है उनकी बात या विचारधारा का तर्क पढ़ना और जानना ज़्यादा ज़रूरी होता है बनिस्बत खुद की बातों को दोहराते रहने से. आपको ये पता होना चाहिए कि आपके वैचारिक विरोधी किन पहलुओं पर आपको धर दबोचते हैं.

थोड़ा दूसरों के तर्कों को शांत होकर सुनिए और जानिए. शब्द को लाठी में परिवर्तित मत करिए. अपने आराध्य का मुखौटा ज़रूर पहनिए, अगर खुद की शक्ल न पसंद हो तो. लेकिन अपने सोचने की शक्ति को नीलाम न करें. अभी तो बिक जाएगी, बिक ही रही है, क्या पता भविष्य में कोई ख़रीददार न मिले, और मुखौटे के रंग भी उतर जाएं.

(लेखक जे़डएमओ के सेंटर फॉर मॉडर्न ओरिएंटल स्टडीज़, बर्लिन में सीनियर रिसर्च फेलो हैं.)

bandarqq judi bola euro 2024 pkv games data macau data sgp data macau data hk toto rtp bet sbobet sbobet parlay judi bola parlay jadwal bola hari ini slot88 link slot thailand slot gacor pkv pkv bandarqq judi bola slot bca slot ovo slot dana slot bni judi bola sbobet parlay rtpbet mpo rtpbet rtpbet judi bola nexus slot akun demo judi bola judi bola pkv bandarqq sv388 casino online pkv judi bola pkv sbobet pkv bocoran admin riki slot bca slot bni slot server thailand nexus slot bocoran admin riki slot mania slot neo bank slot hoki nexus slot slot777 slot demo bocoran admin riki pkv slot depo 10k pkv pkv pkv pkv slot77 slot gacor slot server thailand slot88 slot77 mpo mpo pkv bandarqq pkv games pkv games pkv games Pkv Games Pkv Games BandarQQ/ pkv games dominoqq bandarqq pokerqq pkv pkv slot mahjong pkv games bandarqq slot77 slot thailand bocoran admin jarwo judi bola slot ovo slot dana depo 25 bonus 25 dominoqq pkv games idn poker bandarqq judi bola slot princes slot petir x500 slot thailand slot qris slot deposit shoppepay slot pragmatic slot princes slot petir x500 parlay deposit 25 bonus 25 slot thailand slot indonesia slot server luar slot kamboja pkv games pkv games bandarqq slot filipina depo 25 bonus 25 pkv games pkv games bandarqq dominoqq pkv games slot linkaja slot deposit bank slot x500 slot bonanza slot server international slot deposit bni slot bri slot mandiri slot x500 slot bonanza pkv games pkv games pkv games slot depo 10k bandarqq pkv games mpo slot mpo slot dominoqq judi bola starlight princess pkv games depo 25 bonus 25 dominoqq pkv games pkv games pkv games mpo slot pkv games pkv games pkv games bandarqq mpo slot slot77 slot pulsa pkv games bandarqq dominoqq pkv games pkv games bandarqq pkv games slot77 pkv games bandarqq bandarqq bandarqq dominoqq slot triofus slot triofus dominoqq dominoqq pkv games pkv games bandarqq slot triofus slot triofus slot triofus bandarqq bandarqq dominoqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq slot kamboja pg slot idn slot pkv games bandarqq pkv games pyramid slot bandarqq pkv games slot anti rungkad bandarqq depo 25 bonus 25 depo 50 bonus 50 kakek merah slot bandarqq pkv games pkv games bandarqq pkv games dominoqq poker qq pkv deposit pulsa tanpa potongan bandarqq slot ovo slot777 slot mpo slot777 online poker slot depo 10k slot deposit pulsa slot ovo bo bandarqq pkv games dominoqq pkv games sweet bonanza pkv games online slot bonus slot77 gacor pkv akun pro kamboja slot hoki judi bola parlay dominoqq pkv slot poker games hoki pkv games play pkv games qq bandarqq pkv mpo play slot77 gacor pkv qq bandarqq easy win daftar dominoqq pkv games qq pkv games gacor mpo play win dominoqq mpo slot tergacor mpo slot play slot deposit indosat slot 10k alternatif slot77 pg soft dominoqq login bandarqq login pkv slot poker qq slot pulsa slot77 mpo slot bandarqq hoki bandarqq gacor pkv games mpo slot mix parlay bandarqq login bandarqq daftar dominoqq pkv games login dominoqq mpo pkv games pkv games hoki pkv games gacor pkv games online bandarqq dominoqq daftar dominoqq pkv games resmi mpo bandarqq resmi slot indosat dominoqq login bandarqq hoki daftar pkv games slot bri login bandarqq pkv games resmi dominoqq resmi bandarqq resmi bandarqq akun id pro bandarqq pkv dominoqq pro pkv games pro poker qq id pro pkv games dominoqq slot pulsa 5000 pkvgames pkv pkv slot indosat pkv pkv pkv bandarqq deposit pulsa tanpa potongan slot bri slot bri win mpo baru slot pulsa gacor dominoqq winrate slot bonus akun pro thailand slot dana mpo play pkv games menang slot777 gacor mpo slot anti rungkat slot garansi pg slot bocoran slot jarwo slot depo 5k mpo slot gacor slot mpo slot depo 10k id pro bandarqq slot 5k situs slot77 slot bonus 100 bonus new member dominoqq bandarqq gacor 131