राफेल सौदा: आरोपों पर दासो एविएशन के सीईओ की सफ़ाई, रिलायंस को हमने ही चुना है

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में दासो एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने रिलायंस के साथ हुए क़रार को लेकर लगे आरोपों पर कहा कि मैंने जो पहले कहा वही सच है. मैं झूठ नहीं बोलता हूं. एक सीईओ होकर आप झूठ नहीं बोल सकते.

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Eric Trappier, Dassault Aviation Chairman and Chief Executive Officer, speaks during the company's 2014 First-Half results presentation in Saint Cloud near Paris July 25, 2014. REUTERS/Philippe Wojazer/Files

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में दासो एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने रिलायंस के साथ हुए क़रार को लेकर लगे आरोपों पर कहा कि मैंने जो पहले कहा वही सच है. मैं झूठ नहीं बोलता हूं. एक सीईओ होकर आप झूठ नहीं बोल सकते.

Eric Trappier, Dassault Aviation Chairman and Chief Executive Officer, speaks during the company's 2014 First-Half results presentation in Saint Cloud near Paris July 25, 2014. REUTERS/Philippe Wojazer/Files
दासो एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर (फोटो: रॉयटर्स)

मारसिले (फ्रांस): राफेल विमान बनाने वाली दासो एविएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एरिक ट्रैपियर ने भारत के साथ हुए विमान सौदे को लेकर कथित घोटाले के आरोपों को ख़ारिज किया है.

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक विशेष साक्षात्कार में बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा लगाए अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों पर एरिक ट्रैपियर ने कहा, ‘मैं कभी झूठ नहीं बोलता. जो सच मैंने पहले कहा था और जो बयान मैंने दिए, वे सच हैं. मेरी छवि झूठ बोलने वाले की नहीं है. बतौर सीईओ मेरी स्थिति में रहकर आप झूठ नहीं बोलते हैं.’

अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के साथ क़रार को लेकर एरिक ने कहा, ‘अंबानी को चुनना हमारा फैसला था और रिलायंस के अलावा 30 ऐसी और कंपनियां भी साझीदार हैं. भारतीय वायुसेना को इन विमानों की जरूरत है इसलिए वह इस सौदे का समर्थन कर रही है.’

मालूम हो कि बीते अक्टूबर महीने में एक फ्रेंच वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ ने दासो एविएशन के दस्तावेज़ के हवाले से बताया था कि राफेल का अनुबंध हासिल करने के लिए दासो का अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से पार्टनरशिप करना ‘अनिवार्य’ था.

इस रिपोर्ट के बाद दासो की ओर से सफाई दी गई कि ऐसा नहीं है और उसने बिना किसी दबाव के रिलायंस को चुना था.

राफेल सौदे के बाद से ही विमानों की संख्या और कीमत को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे. विमानों की कीमत पर एरिक ने कहा, ‘जब आप 36 विमानों की कीमत बिल्कुल वही है, जो तैयार किए 18 विमानों की थी. 36 अट्ठारह का दोगुना होता है. तो जहां तक मैं समझता हूं इसकी कीमत भी दोगुनी होनी चाहिए थी, लेकिन चूंकि यह ‘सरकार से सरकार’ के बीच का सौदा था, इसलिए बातचीत हुई और हमें कीमत में 9 फीसदी की कमी करनी पड़ी.’

उन्होंने यह भी कहा कि 36 विमानों वाले करार में तैयार किये गए राफेल विमान (Rafale in Flyaway Condition) की कीमत 126 विमान के पिछले करार की अपेक्षा कम है.

लड़ाकू विमान बनाने का कोई अनुभव न होने के बावजूद रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर के रूप में चुनने के सवाल पर एरिक ने स्पष्ट किया कि उनके द्वारा सीधे रिलायंस में नहीं बल्कि उनके संयुक्त उपक्रम में पैसा लगाया जा रहा है, जिसमें दासो भी शामिल है. जहां तक सौदे के औद्योगिक हिस्से का सवाल है, इसमें दासो के इंजीनियर और कर्मचारी ही आगे रहते हैं.

हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ हुए करार और इसके सौदे से हटने के सवाल पर एरिक ने कहा कि अगर 126 विमानों का सौदा सफल हुआ होता तो वे एचएएल और मुकेश अंबानी की रिलायंस के साथ काम करने में नहीं हिचकिचाते।

उन्होंने यह भी बताया कि ऑफसेट साझीदारी के लिए उनकी कई और कंपनियों से बातचीत हुई थी, लेकिन उन्होंने आखिरकार रिलायंस को चुना क्योंकि उसके पास बड़ी इंजीनियरिंग सुविधाएं थीं.

अनिल अंबानी के साथ एरिक (फाइल फोटो: पीटीआई)
अनिल अंबानी के साथ एरिक (फाइल फोटो: पीटीआई)

गौरतलब है कि 2 नवंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि दासो ने अनिल अंबानी समूह की एक घाटे में चल रही कंपनी में  284 करोड़ रुपये लगाए थे, जिसका इस्तेमाल नागपुर में जमीन लेने के लिए हुआ.

इन आरोपों पर एरिक ने कहा कि हमारा कांग्रेस के साथ काम करने का पुराना अनुभव है और कांग्रेस अध्यक्ष के बयान से उन्हें दुःख पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के साथ काम करने का हमारा लंबा अनुभव है. भारत के साथ हमारा पहला सौदा 1953 में हुआ था, नेहरू के समय में और अन्य प्रधानमंत्रियों के साथ भी. हम भारत में काम करते रहे हैं. हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं करते. हमारा काम भारत सरकार और भारतीय वायुसेना को लड़ाकू विमान जैसे रणनीतिक उत्पाद सप्लाई करते हैं और हमारे लिए यही महत्वपूर्ण है.

मालूम हो कि सितंबर 2017 में भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.

इससे करीब डेढ़ साल पहले 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है.

इस सौदे के बाद से ही लगातार इस पर सवाल खड़े होते रहे हैं और इस पर बड़ा विवाद पैदा हो चुका है. आरोप लगे कि साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस सौदे में किए हुए बदलावों के लिए ढेरों सरकारी नियमों को ताक पर भी रखा गया.

यह विवाद इस साल सितम्बर में तब और गहराया जब फ्रांस की मीडिया में एक खबर आयी, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रेंच वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी दासो के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था.


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भारत में विपक्षी पार्टियों ने ओलांद के इस बयान के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा और उस पर करार में भारी अनियमितता करने का आरोप लगाया.

राफेल सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान के बाद भारत में भारी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया. ओलांद ने कहा था कि राफेल लड़ाकू जेट निर्माता कंपनी दासो ने आॅफसेट भागीदार के रूप में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसलिए चुना क्योंकि भारत सरकार ऐसा चाहती थी.

कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने एयरोस्पेस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं होने के बाद भी रिलायंस डिफेंस को साझेदार चुनकर अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया.

हालांकि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के इस बयान पर भारत सरकार की ओर से भी तुरंत प्रतिक्रिया आई थी, जिसमें कहा गया कि ओलांद के बयान की जांच की जा रही है और साथ में यह भी कहा गया है कि कारोबारी सौदे में सरकार की कोई भूमिका नहीं है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि ओलांद इस सौदे पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं. वित्त मंत्री ने कहा, ‘उन्होंने (ओलांद) ने बाद में अपने वक्तव्य में कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि भारत सरकार ने रिलायंस डिफेंस के लिए कोई सुझाव दिया. भागीदारों का चुनाव ख़ुद कंपनियों ने किया. सच्चाई दो तरह की नहीं हो सकती है.’

हालांकि, बाद में फ्रांस सरकार और दासो एविएशन ने पूर्व राष्ट्रपति के पहले दिए बयान को गलत ठहराया था. ओलांद के बयान के कुछ समय बाद फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि राफेल करार ‘सरकार से सरकार’ के बीच तय हुआ था और जब अरबों डॉलर का यह करार हुआ, उस वक्त वह सत्ता में नहीं थे.

मई 2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति बने मैक्रों ने बीते सितंबर के आखिरी हफ्ते में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के इतर हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए बताया, ‘मैं बहुत साफ-साफ कहूंगा. यह सरकार से सरकार के बीच हुई बातचीत थी और मैं सिर्फ उस बात की तरफ इशारा करना चाहूंगा जो पिछले दिनों प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी ने बहुत स्पष्ट तौर पर कही. मुझे और कोई टिप्पणी नहीं करनी. मैं उस वक्त पद पर नहीं था और मैं जानता हूं कि हमारे नियम बहुत स्पष्ट हैं.’

इसके बाद अक्टूबर में ‘मीडियापार्ट’ ने दासो एविएशन के दस्तावेज़ के हवाले से बताया कि राफेल का अनुबंध हासिल करने के लिए दासो का अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से पार्टनरशिप करना ‘अनिवार्य’ था.

इस रिपोर्ट के बाद दासो की ओर से सफाई दी गई कि ऐसा नहीं है और उसने बिना किसी दबाव के रिलायंस को चुना था.

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