विशेष रिपोर्ट: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जहां भाजपा ने क़रीब 21 प्रतिशत टिकट स्थापित नेताओं के परिजनों को बांटे हैं, वहीं कांग्रेस ने ऐसे 10 प्रतिशत उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं.
राजनीति में वंशवाद या परिवारवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं. जो कांग्रेस के आला नेतृत्व पर गांधी परिवार की एकतरफा कमान से लेकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) पर मुलायम सिंह यादव के ख़ानदान और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद यादव के ख़ानदान तक फैली हुई हैं.
गाहे-बगाहे परिवारवाद चुनावी मुद्दा भी बना है. राजनीतिक दलों की तरफ से परिवारवाद को बढ़ावा न दिए जाने वाले झूठे दिलासे भी दिए गए हैं. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला है.
अगर बात करें परिवारवाद के विरोध की तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मामले में शीर्ष पर रही है. कांग्रेस के परिवारवाद को मुद्दा बनाकर जहां वह केंद्र में सरकार बनाए बैठी है तो वहीं उत्तर प्रदेश में सपा के परिवारवाद को भी उसने विधानसभा चुनावों में ख़ूब भुनाया था.
लेकिन, उसी भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनावों के लिए मध्य प्रदेश में टिकट वितरण के मामले में परिवारवाद को बढ़ावा देने में कीर्तिमान स्थापित किया है.
28 नवंबर को प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के प्रत्याशियों की घोषणा करते वक़्त भाजपा ने करीब 21 प्रतिशत टिकट स्थापित नेताओं के परिजनों को बांटे हैं.
कुछ 230 टिकट में से 48 टिकट पार्टी की ओर से विभिन्न नेताओं को परिजनों को दिए गए हैं.
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस इस मामले में पीछे रही हो. उसने 10 प्रतिशत (23) प्रत्याशी मैदान में ऐसे उतारे हैं जो कि परिवारवाद की श्रेणी में आते हैं.
इस तरह देखें तो प्रदेश के दोनों ही मुख्य दलों ने 230 सीटों पर 71 प्रत्याशी ऐसे उतारे हैं जो कि वंशवाद की बेल को आगे बढ़ा रहे हैं.
भाजपा की ओर से नेताओं के परिजनों को मिले 48 टिकटों में से 34 पुत्र-पुत्रियों को तो 14 अन्य परिजनों को मिले हैं तो वहीं कांग्रेस की ओर से दिए गए 23 टिकटों में से 14 पुत्र-पुत्रियों और नौ अन्य परिजनों को बांटे गए हैं.
मध्य प्रदेश को क्षेत्रवार बांटते हुए परिवारवाद का ज़िक्र करें तो मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा 26 टिकट, मध्य भारत में 17, बुंदेलखंड में 9, विंध्य में 8, ग्वालियर-चंबल में 6 और महाकौशल में 5 टिकट नेताओं के परिजनों को मिले हैं.
भाजपा ने मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा (20) तो कांग्रेस ने मध्य भारत और मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा (6-6) नेताओं के परिजनों को टिकट बांटे हैं.
ये 71 प्रत्याशी कुल 68 सीटों पर उतारे गए हैं. छतरपुर, सिरमौर और लांजी सीटों पर मुकाबला वंशवाद बनाम वंशवाद उम्मीदवारों के बीच होगा. इस तरह प्रदेश की लगभग 30 प्रतिशत सीटों पर वंशवाद हावी है.
वंशवाद के चलते टिकट बांटने में भाजपा आगे है तो एक ही परिवार में कई टिकट बांटने के मामले में कांग्रेस ने बाजी मारी है.
गौरतलब है कि भाजपा ने टिकट वितरण से पहले घोषणा की थी कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा. टिकट बांटते समय पार्टी ने इसे ध्यान में रखा. इसलिए कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज के मंत्री गौरीशंकर शेजवार जैसे दिग्गजों को अपने बेटों को टिकट दिलाने के एवज में अपना टिकट कुर्बान करना पड़ा है.
भाजपा में केवल संजय शाह और विजय शाह दोनों भाई एक ही परिवार से टिकट पाने में कामयाब रहे हैं. दोनों ही वर्तमान विधायक हैं.
लेकिन, कांग्रेस में ऐसी कोई नीति नहीं थी. इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने परिवार में तीन टिकट, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के परिवार में दो टिकट, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद कांतिलाल भूरिया के परिवार में दो टिकट और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के परिवार में भी दो टिकट आवंटित किए गए हैं.
भाजपा द्वारा पुत्र-पुत्रियों को बांटे गए टिकटों की सूची
दिव्यराज सिंह: सिरमौर से टिकट मिला है. पूर्व विधायक पुष्पराज सिंह के बेटे हैं. पुष्पराज सिंह पिछले दिनों भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
शिवनारायण सिंह: बांधवगढ़ से टिकट मिला है. शहडोल के सांसद ज्ञान सिंह के बेटे हैं.
विक्रम सिंह: रामपुर बघेलन से टिकट मिला है. भाजपा की वर्तमान शिवराज सरकार में जल संसाधन मंत्री हर्ष सिंह के बेटे हैं. पिछले चुनाव में इस सीट पर हर्ष सिंह ने जीत दर्ज की थी. हर्ष सिंह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के बेटे हैं. इस बार तीसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही है.
देवेंद्र वर्मा: वर्तमान विधायक खंडवा सीट से मैदान में हैं. पूर्व विधायक और मंत्री किशोरीलाल वर्मा के पुत्र हैं. किशोरीलाल की 2006 में हत्या कर दी गई थी. वे 90 के दशक की भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे थे.
मंजू दादू: नेपानगर से चुनाव लड़ रही हैं. इसी सीट पर उनके पिता राजेंद्र दादू विधायक हुआ करते थे. जिनकी एक कार दुर्घटना में 2016 में मौत हो गई थी. बाद में उपचुनाव में भाजपा ने मंजू को मैदान में उतारा और वे जीतीं. अब भाजपा ने फिर उन पर भरोसा जताया है.
अर्चना चिटनिस: बुरहानपुर से मैदान में उतारी गई हैं. शिवराज सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं. इनके पिता बृजमोहन मिश्र भाजपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री भी रहे थे.
अनिल फिरोजिया: तराना से चुनाव लड़ेंगे. ये आगर सीट से पूर्व विधायक भूरेलाल फिरोजिया के पुत्र हैं. इनकी बहन रेखा रत्नाकर पिता के निधन के बाद आगर सीट से विधायक रह चुकी हैं.
राजेंद्र पांडे: मंदसौर से आठ बार सांसद रहे लक्ष्मीनारायण पांडे के बेटे हैं. जावरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
राधेश्याम पाटीदार: सुवासरा सीट से लड़ रहे हैं. वे पूर्व विधायक नानालाल पाटीदार के पुत्र हैं. 2008 में जब पहली बार मैदान में उतरे तो वंशवाद को लेकर इनका विरोध भी हुआ था. 2013 में वंशवाद के आरोप लगाकर पार्टी कार्यकर्ता इनके ख़िलाफ़ खड़े हो गए थे. नतीजतन इनकी हार हुई. लेकिन इस बार फिर मैदान में इन्हें उतारा गया है.
यशपाल सिंह सिसौदिया: मंदसौर से मैदान में हैं और पूर्व विधायक किशोर सिंह सिसोदिया के बेटे हैं.
माधव मारू: मनासा सीट से चुनाव लड़ेंगे. वे भाजपा नेता रामेश्वर मारू के पुत्र हैं. रामेश्वर मारू संघ के क़रीबी माने जाते थे. लेकिन भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रहे सुंदरलाल पटवा से मतभिन्नता के चलते टिकट नहीं पा सके थे. लेकिन भाजपा ने अब उनके पुत्र पर भरोसा जताया है.
जितेंद्र पंड्या: बड़नगर से टिकट मिला है. उनके पिता उदय सिंह पंड्या तीन बार विधायक रहे थे.
ओमप्रकाश सकलेचा: जावद से चुनावी मैदान में हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र हैं.
दीपक जोशी: हाटपिपल्या से भाजपा उम्मीदवार हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे हैं.
आकाश विजयवर्गीय: सूची में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं. भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री और अंबेडकर नगर से विधायक कद्दावर कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं. कैलाश ने अपने बेटे की राजनीति चमकाने अपनी सीट कुर्बान की है. आकाश इंदौर-1 से उम्मीदवार हैं.
जितेंद्र गहलोत: आलोट से उम्मीदवार हैं. सांसद और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के बेटे हैं.
मनोज पटेल: देपालपुर से मैदान में हैं. सुंदरलाल पटवा की सरकार में मंत्री रहे तीन बार के विधायक निर्भय सिंह पटेल के बेटे हैं. वर्तमान विधायक हैं.
अजीत बौरासी: कांग्रेस से सांसद रहे प्रेमचंद गुड्डू के बेटे हैं. प्रेमचंद गुड्डू और अजीत बोरासी ने नामांकन के तीन रोज़ पहले ही कांग्रेस छोडकर भाजपा का दामन थामा है. बदले में भाजपा ने प्रेमचंद के बेटे को घट्टिया से मैदान में उतारा है.
राजेंद्र वर्मा: सोनकच्छ से मैदान में उतारे गए हैं. उनके पिता फूलचंद वर्मा इसी सीट से विधायक रहे हैं.
सुधीर यादव: सुरखी से चुनाव लड़ रहे हैं. सागर से सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे हैं. सुधीर यादव इस वजह से भी विवादों में रहे हैं कि वे अपने पिता की सांसदी का दुरुपयोग करते हैं और विभिन्न कार्यक्रमों में पिता की जगह स्वयं सांसद बनकर पहुंच जाते हैं.
हरवंश राठौर: बंडा से टिकट मिला है. प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हरनाम सिंह राठौर के बेटे हैं. हरनाम के निधन के बाद बंडा सीट पर 2013 से उनकी विरासत हरवंश संभाल रहे हैं.
राजेश प्रजापति: चंदला से वर्तमान विधायक आरडी प्रजापति के बेटे हैं. पार्टी ने इस बार पिता का टिकट बेटे को दिया है.
प्रणय पांडे: पूर्व विधायक प्रभात पांडे के बेटे हैं. बहोरीबंद सीट से मैदान में हैं. 2014 में पिता की मौत के बाद भाजपा ने उपचुनाव में उन पर भरोसा जताया था. तब वे हार गए थे.
संजय पाठक: विजयराघवगढ़ से मैदान में हैं. प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे सत्येंद्र पाठक के बेटे हैं. 2008 से विधायक हैं. 2014 तक कांग्रेस में थे.
यशोधरा राजे: इन्हें शिवपुरी से टिकट दिया गया है. वे भाजपा की संस्थापक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुत्री हैं, तो वहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन और मध्य प्रदेश सरकार में शहरी विकास मंत्री माया सिंह की भांजी हैं. कांग्रेसी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की वे बुआ हैं.
मुदित शेजवार: सांची से विधायक और शिवराज कैबिनेट के मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बेटे हैं. पिता की सीट पर इस बार उन्हें मौका मिला है.
हेमंत खंडेलवाल: बैतूल विधायक हैं. फिर से मैदान में हैं. उनके पिता विजय खंडेलवाल बैतूल से सांसद थे. 2007 में निधन हो गया तो उपचुनाव में पिता की सीट पर भाजपा ने बेटे को उतार दिया था. सांसदी उन्हें रास न आई तो विधायकी लड़ ली.
महेंद्र सिंह चौहान: भेंसदेही से चुनाव लड़ेंगे. इनके पिता केशर सिंह चौहान भी इसी सीट से विधायक रहे थे. महेंद्र तीन बार के विधायक हैं.
आशीष शर्मा: खातेगांव सीट से प्रत्याशी हैं. वर्तमान विधायक हैं. इनके पिता भी इसी सीट से विधायक रहे.
कुंवर कोठार: सारंगपुर से पांच बार विधायक रहे अमरसिंह कोठार के बेटे हैं. पिता की सीट 2013 में विरासत में मिली थी.
विश्वास सारंग: शिवराज सरकार में मंत्री हैं. भोपाल के नरेला से विधायक हैं. इनके पिता कैलाश नारायण सारंग सांसद रहे हैं.
फ़ातिमा रसूल सिद्दीक़ी: भोपाल उत्तर से भाजपा की एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार हैं. उनके पिता रसूल अहमद सिद्दीक़ी कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे. इसी सीट से वे विधायक रहे थे. फातिमा ने नामांकन की तारीख़ से दो दिन पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है.
अशोक रोहाणी: पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के बेटे जबलपुर कैंट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इसी सीट पर उनके पिता ईश्वरदास भी लड़ा करते थे.
रमेश भटेरे: लांजी से टिकट मिला है. उनके पिता दिलीप भटेरे इसी सीट से चार बार विधायक रहे थे और निधन से पहले उमा भारती सरकार में मंत्री भी रहे.
भाजपा द्वारा बांटे गए अन्य परिजनों को टिकटों की सूची
गायत्री राजे: पूर्व मंत्री तुकोजीराव पवार की पत्नी हैं. देवास विधायक तुकोजीराव का निधन 2015 में हो गया था जिसके बाद भाजपा ने उपचुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे को उतारा और वे भारी बहुमत से जीत गईं. देवास से इस बार भी पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है.
मालिनी गौड़: इंदौर-4 से मैदान में उतारी गई हैं. वे इंदौर की वर्तमान महापौर हैं. प्रदेश सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मण सिंह गौर की पत्नी हैं. 2008 में एक कार दुर्घटना में लक्ष्मण की मौत के बाद पार्टी ने मालिनी को उनकी सीट इंदौर-4 से मैदान में उतारा था. वे 2015 तक विधायक रहीं और 2015 में इंदौर की महापौर का चुनाव जीता.
विजय शाह: शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री हैं. हरसूद से चुनाव मैदान में हैं. टिमरनी विधायक संजय शाह के भाई हैं.
अर्चना सिंह: छतरपुर से उम्मीदवार हैं. छतरपुर जिलाध्यक्ष पुष्पेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी हैं.
उमाकांत शर्मा: व्यापमं घोटाले में फंसे शिवराज सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई हैं. सिरोंज सीट से भाजपा का टिकट मिला है.
राजश्री सिंह: शमशाबाद से टिकट मिला है. वे कांग्रेस से पूर्व विधायक रहे रुद्रप्रताप सिंह की पत्नी हैं. स्वयं कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ज़िला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं.
सरला रावत: सबलगढ़ विधायक मेहरबान सिंह रावत की पत्नी हैं. पति की सीट पर इस बार वे ताल ठोक रही हैं.
राकेश चौधरी: भिंड से उम्मीदवार बनाए गए हैं. विधायक मुकेश चौधरी के भाई हैं. 2013 चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे. समझौते के तहत अपने भाई को मेहगांव से टिकट दिलाने में सफल रहे थे. इस बार स्वयं मैदान में हैं.
नीना वर्मा: धार से चुनाव मैदान में हैं. केंद्र और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे विक्रम वर्मा की पत्नी हैं.
अनूप मिश्रा: भितरवार से टिकट मिला है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं.
जालम सिंह पटेल: नरसिंहपुर से मैदान में हैं. शिवराज सरकार में मंत्री भी हैं. दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल के भाई हैं.
संजय शाह: टिमरनी से उम्मीदवार हैं. वर्तमान विधायक हैं. हरसूद से विधायक और मंत्री विजय शाह के भाई हैं.
सुरेंद्र पटवा: वर्तमान विधायक भोजपुर से मैदान में हैं. पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के भतीजे हैं. शिवराज सरकार में वर्तमान में मंत्री भी हैं.
कृष्णा गौर: पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू हैं. बाबूलाल गौर की गोविंदपुरा सीट पर उनकी विरासत आगे बढ़ाएंगी. वे भोपाल की महापौर भी रही हैं.
कांग्रेस द्वारा पुत्र-पुत्रियों और अन्य परिजनों को बांटे गए टिकटों की सूची
कमलेश्वर पटेल: सिंहावल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. इनके पिता इंद्रजीत पटेल प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे. 2013 में पिता की सीट विरासत में मिली.
सुंदरलाल तिवारी: गुढ़ से मैदान में हैं. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के बेटे हैं. वर्तमान विधायक हैं.
अरुणा तिवारी: श्रीनिवास तिवारी की नातिन बहू और सुंदरलाल तिवारी की भतीजा बहू हैं. इनके पति विवेक तिवारी पिछली बार इसी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार थे. इस बार पत्नी को मैदान में उतारा है. इस तरह तिवारी परिवार में दो टिकट गए हैं.
अजय सिंह: चुरहट से चुनाव लड़ रहे अजय प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे हैं. लगातार इस सीट पर विधायक हैं.
विक्रांत भूरिया: विक्रांत को झाबुआ सीट से मैदान में उतारा है. वह सांसद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं.
कलावती भूरिया: सांसद कांतिलाल भूरिया की भतीजी हैं और जोबट से चुनाव मैदान में हैं. इस तरह कांतिलाल भूरिया अपने परिवार में बेटे और भतीजी को दो टिकट दिलाने में सफल रहे हैं.
राजेंद्र भारती: उज्जैन उत्तर से टिकट मिला है. इनके पिता भी विधायक रहे हैं.
राजेंद्र वशिष्ठ: उज्जैन दक्षिण से मैदान में उतरे हैं. इनके पिता महावीर प्रसाद वशिष्ठ यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं.
सचिन यादव: पूर्व कांग्रेस दिग्गज सुभाष यादव के बेटे हैं. कसरावद से मैदान में हैं. उनके भाई अरुण यादव बुदनी से चुनाव लड़ रहे हैं.
अरुण यादव: पूर्व सांसद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बुदनी से शिवराज सिंह चौहान के सामने चुनावी मैदान में हैं. सुभाष यादव के बेटे हैं और सचिन यादव के भाई हैं. परिवार में इस तरह दो टिकट गए हैं.
उमंग सिंघार: पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी के भतीजे गंधवानी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
आलोक चतुर्वेदी: सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के भाई हैं. छतरपुर से मैदान में हैं.
रणवीर सिंह जाटव: पूर्व विधायक माखन जाटव के पुत्र हैं. गोहद से प्रत्याशी बनाए गए हैं. इनके पिता माखन जाटव की 2009 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी. बाद में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने रणवीर को आजमाया था और वे जीते थे.
हेमंत कटारे: कांग्रेस के मध्य प्रदेश सदन में पूर्व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के बेटे हैं. 2016 में सत्यदेव के निधन के बाद इस सीट की विरासत पार्टी ने उनके बेटे हेमंत को सौंप दी थी.
जयवर्द्धन सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे हैं. वर्तमान विधायक हैं. इनके चाचा लक्ष्मण सिंह भी चाचौड़ा से कांग्रेस उम्मीदवार हैं.
लक्ष्मण सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई चाचौड़ा से उम्मीदवार हैं. भतीजे जयवर्द्धन राघोगढ़ से मैदान में हैं.
प्रियव्रत सिंह: खिलचीपुर से मैदान हैं और ये भी पार्टी में दिग्विजय सिंह के कुनबे से हैं. उनके भतीजे हैं.
ओमप्रकाश रघुवंशी: सिवनी मालवा से मैदान में हैं. पांच बार के विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष हजारीलाल रघुवंशी के बेटे हैं.
सतपाल पालिया: सोहागपुर से लड़ रहे हैं और पूर्व विधायक अर्जुन पालिया के रिश्तेदार हैं.
अभय मिश्रा: भाजपा के टिकट पर 2008 में सेमरिया से विधायक रहे. वर्तमान में उनकी पत्नी नीलम मिश्रा सेमरिया से भाजपा विधायक हैं. अभय ने साल के शुरुआत में कांग्रेस का दामन थामा था और अब रीवा से शिवराज कैबिनेट के दिग्गज मंत्री राजेंद्र शुक्ला के ख़िलाफ़ ताल ठोक रहे हैं.
हिना कावरे: लांजी से विधायक हैं. कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे लिखीराम कावरे की बेटी हैं. लिखीराम की नक्सलियों ने मंत्री रहने के दौरान ही हत्या कर दी थी. इस सीट पर लिखीराम की पत्नी पुष्पलता भी चुनाव लड़ चुकी हैं.
रजनीश सिंह: केवलारी से मैदान में हैं. वर्तमान विधायक हैं. दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे हरवंश सिंह के पुत्र हैं.
संजय सिंह मसानी: प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रिश्ते में साले लगते हैं. लंबे समय तक भाजपा से जुड़े रहे. नामांकन की अंतिम तारीख़ से ठीक तीन रोज़ पहले कांग्रेस की दामन थाम लिया और वारासिवनी से टिकट भी मिल गया.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)