मानहानि के एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस द्वारा कुछ अवसरों पर गड़बड़ियां हो सकती हैं लेकिन लोकतंत्र के व्यापक हित को देखते हुए इन्हें नज़रअंदाज़ करने की ज़रूरत होती है.
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि भारत में अगर प्रेस पर दबाव बनाया गया तो यह नाज़ी स्टेट (तानाशाह देश) में तब्दील हो जाएगा.
उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी इंडिया टुडे पत्रिका के तमिल संस्करण के ख़िलाफ़ मानहानि के एक मामले को रद्द करते हुए की. 2012 में उच्च न्यायालय में इंडिया टुडे के ख़िलाफ़ आपराधिक मानहानि की याचिका दाख़िल की गई थी.
मानहानि की यह याचिका साल 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की एआईएडीएमके सरकार ने दाख़िल की थी.
टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इंडिया टुडे के तमिल संस्करण ने आठ अगस्त 2012 को एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें दावा किया गया था कि वीके शशिकला के कहने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री केए सेनगोत्तैयान को हटा दिया था.
तत्कालीन तमिलनाडु सरकार ने दावा किया था कि इस लेख से जयललिता की छवि को नुकसान पहुंचाया गया है. इसके बाद पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (सरकारी वकील) ने जयललिता की तरफ से आपराधिक मानहानि कर याचिका दाख़िल की थी.
मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा है, ‘कोई ख़बर प्रकाशित करने के लिए अगर प्रेस पर प्रतिबंध लगाया गया तो इस देश में लागू लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा.’
जस्टिस पीएन प्रकाश ने कहा, ‘भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और बिना किसी संदेह के प्रेस लोकतंत्र का चौथा खंभा है. अगर लोकतंत्र के चौथे खंभे की आवाज़ इस तरह से दबाई गई तो भारत एक नाज़ी राज्य (तानाशाह देश) तब्दील हो जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘अगर यह तानाशाह देश बन गया तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और संविधान निर्माताओं की कड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी.’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘प्रेस द्वारा कुछ अवसरों पर गड़बड़ियां हो सकती हैं लेकिन लोकतंत्र के व्यापक हित को देखते हुए इन गड़बड़ियों को नज़रअंदाज़ करने की ज़रूरत होती है.’
टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी वकील ए. नटराजन की ओर से इंडिया टुडे के तमिल संस्करण में प्रकाशित लेख को पूरा पढ़ने के बाद मद्रास उच्च न्यायालय को ऐसा कुछ नहीं मिल सका जिसकी वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की छवि को नुकसान पहुंचा हो. इसके बाद उच्च न्यायालय ने पत्रिका के ख़िलाफ़ दायर आपराधिक याचिका रद्द कर दी.