साक्षात्कार: मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ़ बुदनी सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. मुख्यमंत्री से उनकी चुनावी भिड़ंत और प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पर दीपक गोस्वामी की उनसे बातचीत.
शिवराज के बुदनी को आप कैसा पाते हैं? प्रचार के दौरान आपको यहां क्या-क्या समस्याएं दिखीं?
बड़ा दुख हो रहा है कि एक मुख्यमंत्री ने 15 सालों तक यहां पर राज किया और अपने ही विधानसभा क्षेत्र को कुछ लोगों को ठेके पर दे दिया. उन लोगों ने बुरी तरह से 15 सालों तक जनता और क्षेत्रीय संपदा को लूटा.
15 साल बाद भी यहां न सड़क है, न पानी और न ही शौचालय की व्यवस्था. आधारभूत सुविधाओं तक की भी वे यहां पूर्ति नहीं कर पाए हैं. कुछ चुनिंदा लोग ही यहां अपनी ठेकेदारी प्रथा चला रहे हैं और अपने घर भरते जा रहे हैं.
ऐसी चर्चा है कि आप अपने क्षेत्र खरगोन से चुनाव मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने आपको बुदनी भेजकर जान-बूझकर बलि का बकरा बनाया है.
मैं कहना चाहूंगा कि यह मुझे मिला एक सुनहरा मौका है. मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ मुझे लड़ने का अवसर मिला है, पार्टी ने यह अवसर दिया है और अब मेरी पार्टी ने मुझे ही इस काम के लिए चुना है तो अब क्या करूं बताओ?
अरुण यादव बाहरी हैं, बुदनी की जनता उन्हें क्यों चुने?
जनता मुझे नहीं कांग्रेस को चुनेगी. शिवराज के कुशासन के ख़िलाफ़ जनादेश देगी.
जब आप प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए थे, तब आपने ऐलान किया था कि आप न तो विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और न ही लोकसभा? फिर ये हृदय परिवर्तन कैसे?
मैंने तो कहा था कि मैं नहीं लड़ूंगा और मैं तो ख़ुद से लड़ भी नहीं रहा हूं. यह तो पार्टी ने मेरे बारे में निर्णय लिया है. अब पार्टी ने कहा कि इस बार सरकार बनानी है और आपको शिवराज के ख़िलाफ़ जाकर चुनाव लड़ना है. मैं पार्टी के निर्देश पर यहां आया हूं. राहुल गांधी जी के निर्देश पर आया हूं.
साढ़े चार सालों तक आप कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे. कहा जाता है कि कांग्रेस को प्रदेश में जिस तरह से सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दों को भुनाना चाहिए था, वह भुना नहीं सकी. बात चाहे व्यापमं घोटाले की हो या कुपोषण या किसी अन्य मुद्दों की.
आज आप प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा देख रहे हो. चुनावों में आज कांग्रेस एक अग्रणी दल के रूप में उभरा है. तो क्या कारण हैं? हमने चार साल काम किया, कांग्रेस को खड़ा किया, लोगों को बाहर निकाला.
व्यापमं हो, कुपोषण हो, भ्रष्टाचार हो, किसान हो, दलित आदवासी हो, रेत हो, अवैध उत्खनन हो, इन सब मुद्दों पर हमने साढ़े चार सालों तक काम किया. तब जाकर आज हम जनता का विश्वास जीत सके और जनता व कार्यकर्ता हमारे साथ खड़ा नज़र आ रहे हैं.
आप पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे, साढ़े चार साल पार्टी संभाली. अब कमलनाथ अध्यक्ष हैं. आपके नज़रिये से बात करें तो एक प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कमलनाथ को क्या फैसले लेने चाहिए थे और क्या नहीं?
यह बड़ा ही क्रिटिकल सवाल है. कमलनाथ जी प्रदेश ही नहीं, देश के बहुत ही वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और स्वाभाविक तौर पर उनका अनुभव मुझसे बहुत ज़्यादा है. मैंने निश्चित तौर पर साढ़े चार सालों तक प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने के लिए बहुत काम किया. गली-गली पदयात्राएं, धरना, प्रदर्शन, सैकड़ों-हज़ारों आंदोलन किए, तो कहूंगा कि कमलनाथ जी राजनीति के बहुत ही वरिष्ठ, अनुभवी और मंझे खिलाड़ी हैं. उनके आने से स्वाभाविक रूप से पार्टी को मज़बूती और संबल मिला है और सबको साथ लेकर वो चलते हैं.
प्रदेश में कांग्रेस को लेकर चर्चा होती है तो सबसे ज़्यादा चर्चा उसकी गुटबाज़ी पर होती है. ऐसा क्यों है?
पार्टी में गुटबाज़ी तो है, मैं इसे नकारता नहीं हूं. ऐसा इसलिए कि हमारी अब इतनी बड़ी और पुरानी पार्टी है. लेकिन, हम अब चुनाव के अवसर पर साथ मिलकर काम कर रहे हैं.
तो क्या ये गुटबाज़ी कांग्रेस के सत्ता पाने के लक्ष्य को नुकसान नहीं पहुंचाएगी?
वर्तमान में कोई गुटबाज़ी नहीं है. लक्ष्य स्पष्ट है, सरकार बनानी है, सब कार्यकर्ता एक साथ हैं.
तो फिर कांग्रेस नेतृत्व बिखरा क्यों दिखता है? फैसले लेना, घोषणाएं करना और फिर उनसे कदम पीछे खींच लेना? बात टिकट वितरण संबंधी विभिन्न नीतियों की रही हो, सरकार बनने पर घोषाणाएं संबंधी रही हो या चुनाव में पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट न देने की?
देखिए, राजनीति में कभी-कभी हालातों के हिसाब से कुछ मजबूरियां होती हैं. उन्हें अमल में लाना है तो सब देखना होता है. मैं समझता हूं कि हमारे अध्यक्ष जी फैसले तो स्पष्ट लेते हैं.
प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो, इसमें आपने निजी तौर पर सक्रियता दिखाई थी. फिर यह संभव क्यों नहीं हो सका?
इससे संबंधित बहुत सारे मुद्दे थे, जिनका हम लोग संज्ञान नहीं ले सके. कहीं हमारी भी कमी रही तो कहीं वहां भी कमी रही. जिसके चलते हमारा गठजोड़ बन नहीं सका. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी पार्टी से हमारा गठजोड़ पहले से है ही. उत्तर प्रदेश में गठजोड़ है ही. एक बिंदु यह भी था कि सीट बंटवारे पर भी सहमति नहीं बन सकी.
प्रदेश की शिवराज सरकार के कामकाज पर क्या टिप्पणी करेंगे?
2003 में हम चुनाव हारे और उसके बाद लगातार तीन बार जनता ने भाजपा को यहां से जिताकर उनकी सरकार बनाई. बहुत सारी वजह थीं कि हम जनता का विश्वास नहीं जीत पाए.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 साल राज जरूर किया, लेकिन ये सरकार झूठ के पुलिंदों की सरकार थी. ये सरकार सिर्फ झूठ और मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाकर यहां पर राज करती रही.
मुख्यमंत्री वादे और घोषणाएं ज़रूर करते रहे, उन्होंने अमल नहीं किया और इसका सबसे बड़ा उदाहरण ख़ुद का विधानसभा क्षेत्र है जहां पर विकास की राह अब तक जनता देख रही है. इससे बड़ा उदाहरण मुख्यमंत्री के लिए कुछ और नहीं हो सकता है.
विधानसभा का जो भी नतीजा होता है, आगे हम अरुण यादव का क्या भविष्य देखते हैं. लोकसभा चुनाव लड़ेंगे?
मैं पार्टी वर्कर हूं. यह मेरे लिए बड़ा सौभाग्य है कि मुझे कई पदों पर पार्टी ने बैठाया. 30-32 की उम्र में मैं संसद पहुंचा. दो बार केंद्र सरकार में मंत्री रहा, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सचिव रहा. और भी अन्य कई पदों पर पार्टी ने मुझे मौका दिया. मेरा कोई भी भविष्य होगा, वह पार्टी तय करेगी. लोकसभा में लड़ना है या नहीं, राहुल गांधी जी और पार्टी तय करेंगे.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)