मध्य प्रदेश की बुदनी सीट से तीन बार विधायक रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर यहीं से चुनाव मैदान में हैं. कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को उतारा है.
‘विकास तो यहां बिल्कुल नहीं हुआ. न तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में हुआ और न कांग्रेस के राज में.’ यह बुदनी के वार्ड 14 में रहने वाले 25 वर्षीय प्रकाश सिंह ठाकुर के शब्द हैं. वे क्षेत्र में एक फर्नीचर की दुकान चलाते हैं.
हालांकि उनकी मां कमला ठाकुर कुछ अलग सोचती हैं और उनका मानना है कि प्रदेश के मामा यानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सबको काफी कुछ दिया है.
वे कहती हैं, ‘उन्होंने एक रुपये में बारह आना काम किया है. चवन्नी भर नहीं किया है. 15 साल में बहुत कुछ किया है.’
बहरहाल, होशंगाबाद से जब आप अपने वाहन से बुदनी की ओर बढ़ते हैं तो कुछ एक किलोमीटर लगभग 15 मिनट की दूरी तय करने के बाद आप नर्मदा ब्रिज पर पहुंच जाते हैं. कह सकते हैं कि यह पुल पार करते ही बुदनी की सीमा शुरू होती है.
हालांकि, जब आप पुल के ऊपर होते हैं तो अपने दोनों ओर नर्मदा को बहता हुए देखते हैं. यह कल-कल की ध्वनि नहीं करती, इसका शांत बहाव बताता है कि वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. पुल से बायीं ओर नीचे देखेंगे तो नर्मदा में कुछ नाविक अपनी-अपनी नाव खींचते दिखेंगे. तो वहीं नदी किनारे अस्थायी छप्परनुमा निर्माण दिखेंगे. और नदी घाट पर नहाते कुछ लोग भी.
पुल को पार करते ही बायीं ओर एक ढलान है जो बुदनी के बेरखेड़ी गांव का रास्ता है. ढलान पर पक्की सड़क तो डाली गई है लेकिन वह जगह-जगह खुदी है. ढलान से उतरते ही एक बाइक सवार वहां से गुज़रता है, जो बेरखेड़ी गांव ही जा रहा होता है. उसके पूछने पर मैं उसे बता देता हूं कि मुझे भी बेरखेड़ी गांव ही जाना है तो वह अपनी बाइक पर बिठा लेता है.
इस दौरान सड़क के बड़े-बड़े गड्ढों से बचाता हुआ वो बाइक चलाता है. उससे पूछने पर कि इस बार चुनाव में किसे जिताओगे, वह तपाक से कहते हैं, ‘शिवराज का काम डल रहा है. (सत्ता से जा रहे हैं)’ क्यों? इसके जवाब में वह कहता है, ‘बहुत अच्छा काम किया है उसने, सड़क देख ही रहे हो ये, चल ही रहे हो इस पर.’
मध्य प्रदेश का ज़िला सीहोर. यहां चार विधानसभा सीटें हैं, आष्टा, इछावर, सीहोर और बुधनी. इनमें बुधनी का अपना एक महत्व है. बुधनी किसी और का नहीं, स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विधानसभा क्षेत्र है.
वे यहां से तीन बार के विधायक हैं. 2005 के उपचुनाव में पहली बार जीतकर वे विधानसभा पहुंचे थे. उसके बाद 2008 और 2013 में भी उन्होंने यहां जीत दर्ज की.
लेकिन, पिछले कुछ दिनों से बुधनी सुर्ख़ियों में छाया हुआ है. पहले यह सुर्ख़ियों में तब आया, जब शिवराज ने प्रदेश की सड़कों को अमेरिका से अच्छा बताया.
उनके इस बयान पर लोगों ने बुदनी की सड़कों के फोटो वायरल करना शुरू कर दिए. फिर इसे सुर्ख़ियों में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ लेकर आए. उन्होंने शिवराज के विधानसभा क्षेत्र बुदनी और अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा के विकास की तुलना की, तब से लगातार बुधनी सुर्ख़ियों में बना हुआ है.
कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को यहां से शिवराज के सामने उम्मीदवार बनाया है और वे क्षेत्र के विकास न होने को मुद्दा बनाकर ही चुनाव लड़ रहे हैं.
बहरहाल, बाइक सवार युवक मुझे बीच सड़क पर हो रही पानी की निकासी दिखाते हुए कहता है, ‘देखो बीच सड़क से पानी की निकासी हो रही है. उन्हें कुछ नहीं करवाना, खाना है बस. रोज़गार के बुरे हाल हैं और स्कूली शिक्षा की बात करें तो सब बेवकूफ बनाने के कार्यक्रम हैं. बस अपने खेत बेचो, डंपर खरीदो, रेत चुराओ और खूब कमाओ.’
आगे जाकर बेरखेड़ी गांव के छोटे से मैदान में एक मंच सजा दिखता है जिसके आगे चंद महिलाएं बैठी हुई होती हैं. हमें पता चलता है कि यहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और बुदनी से उम्मीदवार अरुण यादव आने वाले हैं.
मैदान से नर्मदा का वह स्थान साफ दिखता है जो पुल से दिख रहा था जहां कुछ छप्परनुमा निर्माण थे, नाविक नाव खींच रहे थे और लोग स्नान कर रहे थे.
लोगों ने बताया कि उसे खर्रा घाट बोला जाता है और जो छप्परनुमा निर्माण हैं वो घाट किनारे बनी पूजन सामग्री की दुकानें हैं, जिन्हें बेरखेड़ी गांव के लोग ही चलाते हैं.
जब उस घाट पर जाने की इच्छा जताई तो कहीं कोई रास्ता नजर नहीं आया. ग्रामीणों ने फिर एक रास्ता दिखाया. पहाड़ीनुमा ढलानभरे उस रास्ते पर 4-4 फीट गहरे गड्ढे थे. दायीं ओर एक बड़ा सा मंदिर और आश्रम बना था. रास्ते को गौर से देखें तो वहां पक्की सड़क का ढांचा दिखता है जो बताता है कि कभी रास्ते पर सड़क भी हुआ करती थी.
ग्रामीणों ने बातचीत में बताया कि सालों पहले सड़क थी जो उखड़ गई लेकिन फिर नहीं बनाई गई. वहीं उनका कहना था कि लंबे समय से घाट निर्माण के वादे किए जा रहे हैं लेकिन निर्माण नहीं हुआ है.
जब हम घाट पर नीचे उतरते हैं तो चारों और सिर्फ कचरा दिखाई देता है और उस कचरे के आसपास पूजन सामग्री की दुकाने हैं. घाट पर दर्शन-पूजन को आए लोग उसी कचरे के बीच अपना फर्श बिछाकर बैठे हुए हैं.
उसी ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर हमें मंदिर और आश्रम के महंत परमानंद गिरी उतरते दिखते हैं. वे बताते हैं, ‘वादा किया था कि यहां के सौंदर्यीकरण और विकास पर काम होगा. वो अब तक नहीं हुआ. हेल्पलाइन सेवा उपलब्ध है, उस पर फोन करो तो कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के लिए आपको फलां जगह जाना पड़ेगा. फिर यह हेल्पलाइन किस बात की? देखिए घाट किनारे पोल टूटे हैं, अभी तक नहीं बने हैं. ये हैं शासन की करतूतें. नदी किनारे गंदगी देखो, बस यही मिलेगी.’
वे कहते हैं कि सरकार की नज़र यहां पड़ती नहीं है. उनकी नज़र बस वहां जाती है, जहां उनके चमचे रहते हैं.
इसके बाद हम बुदनी के मुख्य बाज़ार की ओर बढ़े जिसका रास्ता भोपाल-इंदौर फ्लाईओवर से होकर गुज़रता है. पूरा फ्लाईओवर गड्ढों से पटा पड़ा है. जहां हिचकोले खाती गाड़ी आपको ठीक से बैठने ही नहीं देती.
इस फ्लाईओवर पर अगर आप खड़े जाएं तो छोटे से छोटे गुज़रते वाहन का भी कंपन महसूस कर सकते हैं. जब कोई बड़ा वाहन जैसे- बस, ट्रक आदि यहां से गुज़रता है तो लगता है मानो भूकंप आ गया हो. आपके पैर कांपने लगते हैं.
बुदनी के मुख्य बाज़ार में सड़कें तो अच्छी दिखती हैं लेकिन जैसे ही आप आसपास के गांवों या वार्डों का रुख़ करते हैं तो धूल भरे कच्चे-पक्के रास्तों से आपका पाला पड़ता है. धीमी गति पर वाहन चलाने पर भी आपके पीछे धूल का गुबार उठता है और वाहन के शीशे पर से आपको धूल हटानी पड़ती है.
बहरहाल, जब हमने स्थानीय लोगों से सड़कों की इस बदहाली पर बात की तो उनका कहना था कि हाल ही में सीवर का काम हुआ है इसलिए सड़कें खुदी पड़ी हैं.
हां, यह बात सही है. क्षेत्र के कुछ मोहल्लों में सीवर लाइन के एक सीध में खुदे गड्ढे नज़र भी आते हैं. लेकिन, जब माना नामक गांव की तरफ बढ़ते हैं तो रास्ते में कोई भी बसाहट नहीं दिखती जिसके लिए कि सीवर डालकर सड़क खोदी गई हो. जबकि सीवर लाइन जैसी खुदाई के कोई निशान भी वहां नहीं दिखते.
संभव है कि ग्रामीण जिन इलाकों में रहते थे, वहां की ही सड़कों की बदहाली का कारण बता रहे थे लेकिन अन्य इलाकों में स्थिति अलग थी.
बहरहाल, केवल इकलौती सड़कें ही विकास का पैमाना नहीं हो सकतीं. वो बात अलग है कि स्वयं मुख्यमंत्री प्रदेश की सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताते आए हैं और भाजपा ने 2003 में सड़कों की बदहाली के मुद्दे को ही भुनाकर प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी.
इसीलिए हमने बुदनी के लोगों से जानना चाहा कि वे क्या सोचते हैं? क्या वे शिवराज के साथ खड़े हैं? क्या मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में रहने के कारण उनके जीवनस्तर में सुधार हुआ है? उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर क्षेत्र में क्या काम हुए हैं?
इसी कड़ी में वार्ड 14 में प्रकाश ठाकुर और कमला ठाकुर से हमारी बातचीत हुई थी, जिसका कि ऊपर ज़िक्र किया.
बुदनी की और अधिक जानकारी हमें रोहित कुमार भैसाड़े से बातचीत में मिली. वे भी वार्ड 14 में रहते हैं. सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं.
उनसे पूछा कि बुदनी की जनता किसे जिताएगी. उन्होंने तुरंत भाजपा का नाम ले लिया.
उनका कहना था कि मुख्यमंत्री यहां से हैं तो उस हिसाब का विकास दिखता भी है. लेकिन इतना ज़्यादा भी नहीं है.
वे कहते हैं, ‘अब यहां दो कंपनियां आ गईं हैं जिससे बुदनी का थोड़ा भला हुआ है और यहां के लोगों को रोज़गार मिल गया है. इसलिए हमारा झुकाव उनकी तरफ है. बुदनी वाले सब उन्हें ही वोट देंगे.’
बिजली, सड़क और पानी के मुद्दे पर वे कहते हैं, ‘यहां पानी की तो दिक्कत है. लेकिन इतनी ज़्यादा नहीं, पर ये भी नहीं कह सकते कि नहीं है. किसी-किसी के घर में तो नल ही नहीं है. पानी में बहुत सी दिक्कतें आती हैं लेकिन फिर भी बगल में नर्मदा नदी है इसलिए किल्लत लोग महसूस नहीं कर पाते, ज़रूरत पड़ने पर वहां से इंतज़ाम कर लेते हैं. लेकिन नल के ज़रिये पानी पहुंचाने का काम अधूरा है. सड़क भी उस हिसाब से नहीं हैं. बस काम चल रहा है.’
स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर वे बताते हैं, ‘इस मामले में तो यहां कुछ नहीं है. अगर कोई गंभीर बीमार हो जाए तो उसे होशंगाबाद ले जाना होता है. वहां चौहान जी का ही नर्मदा अस्पताल है. एक बार वहां पहुंच जाओ तो गरीब व्यक्ति का सब-कुछ बिक जाता है, उसके पास कुछ नहीं बचता.’
वार्ड 13 के मयंक राजपूत और दिलीप भरैया तथा उनके एक मित्र तीनों बुदनी के ही आईटीआई से पढ़ाई कर रहे हैं. वह कहते हैं, ‘जीतेंगे तो मामा ही. उन्होंने बिजली का बिल माफ कर दिया. पहले दो-दो हज़ार आता था और अब बस 200 रुपये.’
मयंक हमें पीछे पलटकर देखने के लिए कहते हैं. हमारे मुड़ते ही वे हाथ से इशारा करके बताते हैं, ‘वो सफेद पानी की टंकी दिख रही है न, वो कॉलोनी है, उन्होंने ही गरीबों के लिए बनवाई है. पूरे मोहल्ले में ऐसा कोई घर नहीं होगा जिसमें लैट्रिन-बाथरूम न हो. सब उन्होंने बनवाई है. पहले तो शौच के लिए सब रेलवे स्टेशन पर जाते थे.’
जब हमने उनसे पूछा कि इतना ही काम किया है तो बुदनी की सड़कें खस्ताहाल क्यों हैं? दिलीप ने बताया, ‘सीवर सप्लाई के लिए गड्ढे खोदे गए हैं जिससे सड़कें खराब हो गई हैं.’
मयंक आगे कहते हैं, ‘पहले लाइट सिर्फ दो घंटे रहती थी, आज 24 घंटे में एक बार भी नहीं कटती. कांग्रेस के समय तो बिजली का कोई रोल ही नहीं था, गर्मीभर हाथ पंखे से हवा करके सोना पड़ता था. अब देखो न कि लड़का पैदा हो तो पैसे दे मामा, लड़की पैदा हो तो पैसे दे मामा. हर चीज़ में पैसे दे रहा है.’
इसी बीच हमारी बातें सुन रहे 55 वर्षीय हरिओम बोल पड़े, ‘मर रहे हैं तो भी पैसा मिल रहा है सर.’
उनसे पूछा कि सब तो कह रहे हैं कि मामा ने प्रदेश बर्बाद कर दिया. वे बोले, ‘अब हर घर में तो जाकर मामा काम कराएगा नहीं.’
उनसे पूछा गया कि ऐसा क्या काम कराया है. वे बोले, ‘यहां पर आईटीआई बनवा दिया. 500 से ऊपर मकान गरीबों को देने के लिए बन गए हैं. बच्चे पैदा होते ही पैसा मिलना चालू हो जाता है. आदमी के मरने पर भी पैसा मिल रहा है और क्या चाहिए? इलाज भी सही मिलता है. पहले तो यहां नाम का अस्पताल था. बस एक खंडहर इमारत, अब अस्पताल भी अच्छा हो गया है. दवाई भी अच्छी मिल रही है. बस बीमारी गंभीर है तो होशंगाबाद जाना होता है.’
वे आगे कहते हैं, ‘मामा अपनी भांजियों की शादी करा रहा है, 25,000 रुपये दे रहा है. आप अपनी लड़की की शादी कर रहे हो तो 25,000 रुपये मिलेंगे और अगर सम्मेलन से करो तो पूरा ख़र्च वही उठा लेते हैं. लाडली लक्ष्मी योजना भी चलाई है.’
सड़कों की बात पर उन्होंने भी वही दोहराया कि सीवर लाइन डाली जा रही है, इसलिए सड़कें खुद गई हैं. सड़कों के मसले पर हम आगे जिससे भी मिले, सभी का लगभग ऐसा ही कहना था.
कुछ आगे जाकर दूर खड़ी महिलाओं के एक झुंड की ओर हम बढ़े. उनसे कहा कि मामा ने यहां काम नहीं कराया है, ऐसा लोग कह रहे हैं. तो उन्होंने कहा, ‘गलत कह रहे हैं. मामा सब-कुछ तो करा रहा है. बच्चों को आईटीआई करवा दी. कॉलेज खुलवा दिया. एक रुपये किलो अनाज दे रहे हैं. लड़कियों की शादी करा रहे हैं.’
40 वर्षीय माया विल्लावी कहती हैं, ‘जितना काम था, उतना तो कराया उन्होंने, जैसे कि यहां घरों में लैट्रिन-बाथरूम नहीं थे, उन्होंने ही बनवाए. बच्चों की शिक्षा का इंतज़ाम किया और क्या चाहिए?’
महिलाएं बताती हैं कि बुदनी में अब उन्हें अच्छा इलाज मिलता है. अस्पताल में रात में भी इमरजेंसी डॉक्टर रहता है. पहले ऐसा कुछ नहीं थी. उनके अनुसार साढ़े बाहर साल से मामा सरकार में हैं तो कांग्रेस भी 50 साल सरकार में रही थी, उसने क्या किया?
हालांकि, वार्ड 12 की 60 वर्षीय प्रभा चौबे कुछ अलग सोचती हैं. वे कहती हैं, ‘जनता को जहां सुविधा मिलेगी, वहां जाएगी.’ उनसे पूछा कि सुविधाओं में कहां कमी है?
उन्होंने बताया, ‘बोल रहे थे मकान बनाने के लिए पैसे मिलेंगे. कहां मिले? अब चुनाव आ गया. कहते हैं कि चुनाव बाद मिलेंगे. अस्पताल है लेकिन इलाज नहीं होता. पैसे ख़र्च करो बाहर जाकर नहीं तो मर जाओ. अभी मैं प्राइवेट अस्पताल में भर्ती रही. 20 हज़ार लगे तब बची. मेरी बेटी फाइनल तक पढ़ी है लेकिन नौकरी नहीं है. प्राइवेट स्कूल में 2000 रुपये महीने पर बच्चों को पढ़ाती है. कौन-सी सुविधा दे रही है सरकार?’
पेशे से मज़दूर एक अन्य युवक नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘मेरा लड़का अस्पताल में भर्ती रहा. 80 हज़ार रुपये लगे. गरीबी रेखा के नीचे हूं, तब भी एक पैसा नहीं मिला. क़र्ज़ लेकर इन पैसों को चुका रहा हूं. लोग मदद नहीं करते तो क्या होता. इसलिए इस बार हम पार्टी बदलेंगे.’
हम फिर बुदनी घाट पहुंचे. घाट के सामने ही किराने की दुकान चलाने वाले आनंद मांझी बोले, ‘शिवराज सिंह की पत्नी और बेटे के ख़िलाफ़ जनता के गुस्से के जो वीडियो वायरल हुए हैं, साज़िशन तैयार किए गए हैं. वरना विकास तो पहले से बहुत ज़्यादा हुआ है. सड़कें, स्कूल बने हैं, बिजली 24 घंटे है. पहले तो बिजली ही नहीं मिलती थी. सुबह 8 बजे जाती और 12 पर आती. दोपहर बाद 3 बजे फिर कटती शाम को 6 बजे आती. इसलिए पढ़ाई ही नहीं कर पाए, खेलने निकल जाते थे तो करिअर ही बर्बाद हो गया.’
राजेश मांझी कहते हैं, ‘बुदनी घाट घूमकर आइए. हाल ही में बना है. पहले राष्ट्रीय राजमार्ग-69 के ऐसे हालात थे कि सड़क में गड्ढे नहीं थे, गड्ढों में सड़क थी. आज सायं-सायं चले जाओ. छोटे कस्बे के हिसाब से अस्पताल ठीक है. दिक्कत यही है कि यहां बड़े डॉक्टर नहीं हैं. मामा जीते तभी 2009 में फैक्ट्री लगी जिससे रोज़गार मिला है.’?
आनंद कहते हैं, ‘सीवर के कारण सड़कें खुदी हैं और विरोधी इसे हाइलाइट कर रहे हैं. मामा कहते हैं कि वोट मांगने नहीं आएंगे तो न आएं, वे 229 सीटें संभाले. यहां की चिंता न करें.’
बुदनी घाट पर ही चंद्रशेखर से मुलाकात हुई. वे अपने बच्चे को घुमाने लाये थे. उनका कहना था कि जीत तो शिवराज की ही होगी, बस जीत का अंतर कम हो जाएगा.
वह कहते हैं, ‘कुल मिलाकर शिवराज ने काम किया है. 15 साल पहले इस इलाके में सड़क नहीं हुआ करती थी. उनके आने के बाद तीन बार बनी है. वीआईपी रोड़ भी अभी बनी है. जो फैक्ट्रियां आईं, वहां पहले तो स्थानीय लोगों के लेते नहीं थे लेकिन अब लेने लगे हैं. यह सही है कि नौकरियां नहीं हैं लेकिन दूसरी चीज़ों में तो फायदा हुआ है.’
जब हमने शिवराज पर लगे व्यापमं घोटाले जैसे आरोपों पर बात की तो प्राइवेट स्कूल में शिक्षक चंद्रशेखर ने कहा, ‘शिवराज गलत नहीं हैं. उनकी छवि उनसे जुड़े लोगों और नेताओं ने ख़राब कर रखी है. उनकी योजनाएं अच्छी हैं, लाडली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना, तीर्थ दर्शन योजना.’
कुछ ऐसा ही बुदनी के मुख्य बाज़ार में किराने की दुकान चलाने वाले एक दुकानदार अपना नाम बताए बिना कहते हैं, ‘इस बार मुक़ाबला 50-50 का है. मामा ने विकास तो किया है लेकिन उनके छर्रों का विकास ज़्यादा हुआ है, आम आदमी का कम. सड़क बनवाने से किसी का पेट नहीं भरता. सड़क पर चलोगे या उसे खाओगे? रोज़गार कुछ नहीं है, फैक्ट्रयों में जिन्हें मिला भी है तो लेबर वर्क. कम पढ़े लिखे बाहर से आकर अधिकारी बन गए वहां. स्कूली शिक्षा भी प्राइवेट में अच्छी है सरकारी में तो होती नहीं है. पानी-बिजली ठीक है. शिवराज के पहले के बुदनी की अपेक्षा इस बुदनी में विकास है. लेकिन सवर्ण वोटर यहां ज़्यादा है. एट्रोसिटी एक्ट के मसले ने तूल पकड़ा तो शिवराज को दिक्कत होगी.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)