दलित बहनों का गैंगरेप, आत्महत्या और कुछ गंभीर सवाल

राजस्थान के नीम का थाना क्षेत्र में पांच अप्रैल की घटना, प्रशासन पर सवर्ण आरोपियों को बचाने का आरोप.

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राजस्थान के नीम का थाना क्षेत्र में पांच अप्रैल की घटना, प्रशासन पर सवर्ण आरोपियों को बचाने का आरोप.

Neem Ka Thana indiarailinfo.com
फोटो साभार: indiarailinfo.com

राजस्थान के सीकर ज़िले के नीम का थाना क्षेत्र में दो दलित लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद दोनों के आत्महत्या कर लेने की वीभत्स घटना सामने आई है. आरोपी सवर्ण वर्ग से हैं, जबकि लड़कियां दलित समुदाय से थीं. आरोप है कि घटना के वक़्त दोनों बहनें घर में अकेली थीं जिसका आरोपियों ने फ़ायदा उठाया.

पुलिस ने काफ़ी आनाकानी के बाद एफ़आईआर दर्ज की और दो आरोपियों-बजरंग सिंह और विक्रम सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया है, जबकि एक की गिरफ़्तारी नहीं हुई है. राजस्थान के कई सामाजिक संगठनों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने मामले में हद दर्जे की लापरवाही बरती. पहले तो पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही थी. फिर मुश्किल से आत्महत्या का केस दर्ज किया.

सामाजिक कार्यकर्ताओं और कुछ संगठनों के दवाब के बाद पुलिस ने 10 अप्रैल को अनुसूचित जाति/ जन जाति अत्याचार निवारण, बलात्कार एवं पॉक्सो की धाराएं जोड़ीं. हालांकि, केस दर्ज करने के बाद अब दलित परिवार पर केस वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है. लड़कियों के परिवार में दहशत का माहौल है. लड़कियों के चाचा की सदमे की बजह से 13 अप्रैल को हार्ट अटैक से मौत हो गई है.

घटना के मुताबिक, लालचंद बलाई की दो बेटियां रेणु और पूजा नीम का थाना के सरकारी महाविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थीं. बीते पांच अप्रैल की सुबह से दोनों घर पर थीं. पिता लालचंद बलाई मिस्त्री का काम करने नीम का थाना गए थे. मां श्रावणी, गांव के ज़मींदार भीम सिंह राजपूत के खेत पर गेहूं की कटाई के लिए गईं हुई थीं. बड़ी बहन किरन नीम का थाना के सरकारी कॉलेज में परीक्षक की ड्यूटी पर गई थी. बड़ा भाई राजेश हरियाणा में मज़दूरी करने गया था. छोटा भाई अक्षय कुमार वर्मा भी काम की तलाश में नीम का थाना गया था.

अक्षय जब क़रीब 10 से 11 बजे के बीच वापस घर आया तो उसने घर के दरवाज़े खुले हुए देखे और कमरे के अन्दर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. वह कमरे के अंदर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी बहनों के कपड़े फटे हुए थे और उसे देखते ही वहां पर उपस्थित तीन लड़के, विक्रम सिंह, बजरंग सिंह और कान्हा भागने लगे. उनमें से दो भाग निकले, एक को अक्षय ने पकड़ा, वह भी उसको धक्का देते हुए भाग गया.

अक्षय के बयान के मुताबिक, ‘रेणु और पूजा ने चिल्लाते हुए बोला कि इन सभी को छोड़ना मत और इन लोगों ने हमारे साथ ग़लत काम किया है.’ अक्षय उन लड़कों का पीछा करते हुए गांव के बाहर तक गया. जब वह लौटा तो देखा कि दोनों बहनें घर पर नहीं हैं. अक्षय उन्हें ढूंढने लगा लेकिन वे दोनों कहीं नहीं मिलीं. जब उनकी मां ज़मींदार के खेत से एक बजे दोपहर घर आईं तो भाई ने उसे लड़कियों के ग़ायब होने के बारे में बताया.

इसी बीच बड़ी बहन किरण भी कॉलेज से आ गई. ये लोग मिलकर दोनों लड़कियों को ढूंढने लगे. उनकी मां जब 3:30 बजे तक ज़मीदार के यहां वापस नहीं गई तो ज़मीदार भीम सिंह ने बड़ी बहन किरण को फ़ोन किया और उसकी मां के बारे में पूछा. फिर उसी ने बताया कि दो लड़कियां ट्रेन से कट करकर मर गईं हैं.

उसके बाद शाम पांच बजे किरण भागेगा स्टेशन पर गई और स्टेशन मास्टर से इस बारे में बात की. स्टेशन मास्टर ने किरण की पुलिस से बात करवाई जिन्होंने लड़कियों की लाश सामान्य राजकीय चिकित्सालय, नीम का थाना भेजने की बात कही. पहचान के चिन्ह बताने पर किरण ने उन्हें पहचाना कि वे उसकी दोनों बहनें हैं. सदर थानाधिकारी ने किरण से कहा कि गांव के सरपंच को लेकर थाने आ जाओ. किरण उसके बाद नीम का थाना के सामुदायिक चिकत्सालय पहुंची और वहां बहनों की पहचान कर घर लौट आई.

अगले दिन सुबह 10 बजे पिताजी लालचंद बलाई, भाई राजेश, अक्षय व अन्य रिश्तेदार सदर नीम का थाना पहुंचे और एफ़आईआर दर्ज करने के लिए पुलिस को रिपोर्ट दी. पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने से लगातर इनकार करती रही और परिजनों पर दवाब बनाती रही कि अस्पताल जाकर पोस्टमार्टम कराओ और लाश ले जाओ.

लेकिन परिजन एफ़आईआर दर्ज किए जाने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने पर अड़े रहे. जब परिजन किसी भी हालात में पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार नहीं हुए तो शाम पांच बजे पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की. एफ़आईआर दर्ज होने के बाद परिजनों ने अगले दिन सुबह पोस्टमार्टम कराने की बात कही. क्योंकि उनकी परंपरा के मुताबिक सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं किया जाता.

लड़कियों के परिजन अपने घर लौटे ही थे कि थाने से फ़ोन आया कि आपको आज ही पोस्टमार्टम कराना होगा. उसके बाद लड़कियों के पिता लालचंद अस्पताल पहुंचे और पोस्टमार्टम किया गया. इसके बाद लड़कियों की लाश परिजनों को सौंप दी गई. परिजनों पर पुलिस का दबाव था कि तुरंत अंतिम संस्कार किया जाए. लाशों को सीधे श्मशान ले जाया गया. रात 9 से 10 बजे के बीच दोनों बहनों का अंतिम संस्कार किया गया.

अंतिम संस्कार से पहले दोनों बहनों को घर भी नहीं ले जाया गया. बेटियों की मां उन्हें अंतिम समय देख भी नहीं सकी. सामाजिक संगठनों का आरोप है कि ‘पुलिस ने जिस तत्परता से अंतिम संस्कार करवाया उससे स्पष्ट है कि पुलिस लाशों का जल्दी दाह संस्कार कराना चाहती थी. इससे पुलिस की मंशा पर सवाल उठते हैं.’

संगठनों का कहना है कि ‘पुलिस की नीयत इससे भी साफ़ थी कि एफ़आईआर सिर्फ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दर्ज की गई. पुलिस ने शुरू से ही इसे बलात्कार या यौन शोषण का मसला मानने से इनकार किया क्योंकि प्रथम जांच अधिकारी से लेकर वर्तमान जांच अधिकारी तक सभी राजपूत जाति के हैं. उन्होंने आरोपियों को बचाने का प्रयास किया.’

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह एफ़आईर रेणू और पूजा के भाई अक्षय कुमार वर्मा द्वारा लिखी गई. इस रिपोर्ट में अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण की धाराएं नहीं जोड़ी गईं और ना ही बलात्कार से संबंधित धाराएं जोड़ी गईं. यह और ख़तरनाक है. इससे साफ़ है कि पुलिस अपराध को स्वीकार करने के लिए पहले से तैयार थी.

संगठनों ने 14 अप्रैल को प्रेस रिलीज जारी की, तब तक किसी आरोपी को गिरफ़्तार नहीं किया गया था. बाद में दो आरोपियों को गिरफ़्तार किया गया. कार्यकर्ताओं की ओर से जांच अधिकारी पुलिस उपाधीक्ष कुशल सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अपराधी मेरे क़ब्ज़े में हैं लेकिन जब तक एफएसएल की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक मैं किसी को गिरफ़्तार नहीं करूंगा.

कार्यकर्ताओं का यह भी आरोप है कि घटना के बाद से ही लड़कियों के परिजनों के ऊपर लगातार दवाब बनाया जा रहा है कि वे इस मसले को आगे नहीं बढाएं. घर व समाज में इज़्ज़त के नाम पर, व बड़ी बेटी के ब्याह के नाम पर आरोपियों के बचाया जा रहा है. पीड़ित परिवार दहशत में है. सदमे की बजह से लड़कियों के चाचा की 13 अप्रैल को हार्टअटैक से मौत हो गई.

मानवाधिकार के लिए काम करने वाले प्रमुख संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), सूचना एवं रोज़गार अधिकार मंच, आॅल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच, सामाजिक न्याय एवं विकास समिति एवं कई अन्य संगठनों ने विस्तार से इस घटना के बारे में 14 अप्रैल को प्रेस रिलीज जारी की. इन संगठनों ने छह सूत्री मांगें भी रखीं. जन संगठनों की मांग थी कि मामले में जांच अधिकारी को बदला जाए और बाहर के किसी थाने के अधिकारी को जांच सौंपी जाए.

जन संगठनों की अन्य मांगें हैं कि जिन लोगों ने एफ़आईआर दर्ज करने में देरी की एवं आवेदन के अनुसार संपूर्ण अपराधों की धाराएं नहीं लगाईं उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित किया जाए और इन पर भारतीय दंड संहिता 166ए के तहत मुक़दमा दर्ज किया जाए. लड़कियों के सामूहिक बलात्कार एवं यौन शोषण के आरोपियों को तुरंत गिरफ़्तार किया जाए. पीड़ित परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई जाए. परिवार को क़ानून के अनुसार मुआवज़ा दिया जाए. चश्मदीद गवाह अक्षय वर्मा, ओमप्रकाश और किरन को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

पुराने जांच अधिकारी को हटाकर नई महिला अधिकारी को जांच सौंपी गई है, जिन्होंने बीते शनिवार को जाकर पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की. अब तक बलात्कार के दो आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है, जबकि एक को गिरफ़्तार नहीं किया गया है.

नई जांच अधिकारी के आने के बाद क्या न्याय की उम्मीद दिख रही है? इस सवाल पर पीयूसीएल से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा, ‘नई अधिकारी आने के पहले तक दो गिरफ़्तारी हो चुकी थी. पॉक्सो के तहत तुरंत मुआवजा घोषित होना चाहिए, वह अभी तक नहीं हुआ है. परिवार को सुरक्षा नहीं दी गई. सरकार की तरफ से कोई पहलक़दमी नहीं हुई. मामले के तूल पकड़ने के बाद जांच अधिकारी तो बदल दिया गया, लेकिन उदासीनता जस की तस बनी है.’

रविवार को पीड़ित परिवार से मिलकर लौटे पीयूसीएल के कैलाश मीना ने बताया, ‘हमारी मांग के बाद अभी दो आरोपी गिरफ़्तार हुए हैं और जांच अधिकारी बदल दिया गया है. पुराने जांच अधिकारी की तरफ से गड़बड़ी की जा रही थी. हमारी जो मांगें थीं उन्हें अभी तक माना नहीं गया है. पीड़ित परिवार और गांव के लोग भयभीत हैं. परिवार को या गांव में कोई सुरक्षा नहीं मुहैया कराई गई है. शुरुआती तौर पर जिस जांच अधिकारी ने मामले को बिगाड़ने की कोशिश की, उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई है.’

जांच अधिकारी ऐसा किसके दबाव में कर रहा था, इसके जवाब में कैलाश मीना का कहना है, ‘सरपंच से लेकर आरोपी और जांच अधिकारी तक सब राजपूत थे. सरपंच राजपूत, थानेदार राजपूत, एएसआई राजपूत, एमएलए राजपूत, आरोपी राजपूत, सिर्फ पीड़ित परिवार दलित है. इसलिए पुलिस कार्रवाई करने से बच रही थी. रविवार शाम को ही नई जांच अधिकारी वंदना भाटी आई हैं, उन्होंने परिवार से मुलाक़ात की है. अब आगे वे क्या करती हैं, देखना होगा.’

पीयूसीएल की कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने बताया, ‘एफएसएल रिपोर्ट आ गई है जिसमें साबित हो रहा है कि अपराध हुआ है. दो आरोपियों को गिरफ़्तार किया गया है. तीसरे को उन्होंने छोड़ दिया है. वह नाबालिग है और पुलिस का कहना है कि वह शामिल नहीं था. उसका तो यूं ही नाम डाल दिया. हालांकि यह ग़लत बात है.’

क्या परिवारों में कोई रंज़िश थी, जिसके चलते युवकों ने हमला किया? इसके जवाब में कैलाश का कहना है कि ‘ऐसा कुछ नहीं था. वे बच्चियां घर में अकेली थीं, जिसका आरोपियों ने फ़ायदा उठाया. घर के सब लोग मज़दूरी करने गए थे या फिर बाहर थे. वहां तो सवर्ण जाति के लोग मानते हैं कि निचली जातियों के साथ कुछ भी कर लेने से कुछ बिगड़ता नहीं है. लेकिन यह हमला इतना भयानक था कि बच्चियों को आत्महत्या करनी पड़ी.’

राजस्थान, हरियाणा या इस पूरी पट्टी में दलितों पर ऐसे वीभत्स हमले क्यों होते हैं, इसके जवाब में कविता कहती हैं, ‘क्योंकि दलितों का उभार हो रहा है. वे भी आगे आ रहे हैं. वह परिवार मज़दूरी करता है, लेकिन उसकी ये दोनों बच्चियां पढ़ रही थीं. दोनों बीए की छात्रा थीं. जिस समय ऐसा हुआ, लड़कियों के मां बाप दोनों मज़दूरी पर थे. सवर्ण लोगों को यह डर नहीं है कि ऐसा करने से उनका कुछ बिगड़ेगा. जितने भी बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं, 35 प्रतिशत से ज़्यादा तो पुलिस जांच के दौरान ही बंद कर देती है. लोगों में कोई डर नहीं है. इस वक़्त की राजनीति भी ऐसी है. पहलू ख़ान केस हुआ तब भी भाजपा धौलपुर सीट जीत गई. राजनीति और प्रशासन ऐसा है कि लोगों में कोई डर नहीं है.’

नीम का थाना के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आॅफ पुलिस कुशल सिंह ने फ़ोन पर बातचीत में बताया, ‘हमने केस दर्ज कर लिया है. केस दर्ज के बाद सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे गए थे. यह रिपोर्ट 14 तारीख की शाम को 5 बजे आई. छह बजे हमने मुलजिमों को बुलाकर अरेस्ट कर लिया और कोर्ट में पेश किया. उनका डीएनए टेस्ट भी करा लिया गया है. मैं एसीओ हूं, मुझसे फाइल ट्रांसफर होकर एडिशनल एसपी क्राइम के पास गई, जो आईजी आॅफिस में बैठते हैं, उनके पास गई. वे भी मौक़े पर आ गए. उन्होंने ही मुलजिमों का मेडिकल कराया और रिमांड पर लेकर पूछताछ की.’

शुरुआत में पुलिस द्वारा बरती गई लापरवाही की बात पर कुशल सिंह का कहना है, ‘कोई सबूत मिलेगा तभी तो पुलिस कार्रवाई कर सकती है. हमने इस दृष्टिकोण से भी मेडिकल कराया कि सबूत मिले तो केस को आगे बढ़ाया जाए. दरअसल, कहानी तो यह थी कि लड़कियों के मां-बाप भाई-बहन सब लोग कहीं न कहीं गए हुए थे. लड़कियों ने लड़कों को ख़ुद बुलाया था, ये बात सिद्ध है, क्योंकि हमारे पास उनकी कॉल डिटेल है.’

अगर लड़कियों ने युवकों को ख़ुद बुलाया था तो ख़ुदकुशी क्यों कर ली, इस पर कुशल सिंह का कहना है कि ‘अचानक लड़कियों का भाई आ गया. उसने देख लिया तो बोला कि मां पापा को बताएंगे, इसलिए लड़कियों ने आत्महत्या कर ली.’ कुशल सिंह ने पीड़ित परिवार के दहशत में होने से भी इनकार करते हुए कहा, ‘ऐसी किसी बात की हमें जानकारी नहीं है. ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है. कोई भय का माहौल नहीं है.’

कैलाश मीना का कहना है, ‘यह पुलिस की थ्यौरी है. यही इनका जांच करने का तरीक़ा है. इसी पर तो सवाल है. वे ग़रीब हैं, इसलिए ये कुछ भी बोलेंगे. ये वो कहानी है जो अपराधी कह रहे हैं. लड़कियों का भाई ख़ुद चश्मदीद गवाह है. पीड़ित लड़कियों में से एक नाबालिग है. सामूहिक तौर पर ज़्यादाती की गई है. ये कोई बात है क्या? लड़कियों के पास फोन ही नहीं था. कह रहे हैं कि लड़कियों ने किसी का फोन मांग कर फोन किया. यह काम तो लड़कों ने ख़ुद कर लिया होगा.’

मीना कहना है कि ‘पुलिस यह भी कह रही है कि यह बात उन्हें लड़कों ने बताई. वही बात पुलिस दोहरा रही है. आप अपराधियों की बात दोहरा रहे हैं तो जांच अधिकारी किस बात के? एक बार के लिए मान लीजिए कि लड़कियों ने ख़ुद ही फोन किया होगा तो इसका क्या मतलब कि उनके घर में घुसकर सामूहिक बलात्कार करेंगे? इसीलिए हम कह रहे हैं कि जांच अधिकारी से लेकर सरपंच तक सब एक जैसे लोग हैं, इसीलिए मामला सवालों के घेरे में है. अगर ये लड़कियां राजपूत होतीं और लड़के दलित होते तब यह तर्क नहीं दिया जाता. तब उम्मीद से परे जाकर कार्रवाई होती.’

भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘राजस्थान में काफ़ी समय से हम देख रहे हैं कि दलितों के प्रति क्रूरता बढ़ रही है. हत्याएं भी हो रही हैं तो बहुत जघन्य क़िस्म की हत्याएं हो रही हैं. इसके पहले आपने डांगावास कांड देखा. उन लोगों ने दलितों को मारा, गोली मार दी मर गया, फिर उसे ट्रक्टर से भी कुचला. मतलब आप सिर्फ़ मार रहे हैं, क्रूरता से मार रहे हैं. यह संदेश देने के लिए कि अगर दलित उठकर खड़ें होंगे, हमारे सामने आएंगे, अधिकार मांगेंगे तो हम उनका यह हाल करेंगे.’

राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों के प्रति इस तरह के जघन्य अपराध अक्सर देखने में आते हैं. इस प्रवृत्ति पर भंवर मेघवंशी कहते हैं, ‘इस पूरे बेल्ट में दलित उत्पीड़न अपने भयानक रूप में है. इन इलाक़ों में महिलाओं के प्रति यौन क्रूरतापूर्ण हिंसा भी बढ़ रही है. आज अभी झुंझनूं का भी एक केस हमारे पास आया है. अभी उसकी डिटेल आनी बाक़ी है. बच्चियों के साथ बलात्कार, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार, हत्या यह बढ़ रही है. यह दलितों के दमन का भयानक रूप है.’

सरकार की तरफ से उक्त मामले में उदासीनता के सवाल पर भंवर मेघवंशी भी कैलाश मीना की बातों को ही आगे बढ़ाते हैं कि ‘जो आरोपी हैं, उन्हीं के समुदाय का सरपंच है, उन्हीं के समुदाय का अधिकारी हैं, उसी समुदाय का भाजपा विधायक है, इसलिए पूरा प्रशासन उनकी गिरफ़्त में है. अक्सर देखने में आ रहा है कि जहां जहां इस तरह के अत्याचार हो रहे हैं, वहां की पूरी राजनीतिक मशीनरी और प्रशासन आरोपी के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं. पीड़ित की न्याय की आशा पहले ही दम तोड़ देती है. पीड़ित के साथ थाने से लेकर समाज तक ऐसा व्यवहार करता है कि उनकी सारी ताक़त इसी से लड़ने में लग जाती है.’