इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, असम, नगालैंड और मेघालय के प्रमुख समाचार.
नई दिल्ली: सीबीआई ने मणिपुर में सेना और पुलिस पर ग़ैर-न्यायिक हत्याओं तथा फर्जी मुठभेड़ किए जाने के आरोपों से संबंधित मामलों में सीआरपीएफ, असम राइफल्स और इम्फाल पुलिस के जवानों के खिलाफ जानबूझकर हत्या करने के मामले में 5 एफआईआर दर्ज की हैं.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई से मणिपुर में हुई न्यायेतर हत्याओं की जांच करने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस पर कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं की जांच की मांग की है.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में सीबीआई के पांच अधिकारियों की एसआईटी गठित की थी और इन कथित ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के संदर्भ में प्राथमिकी दर्ज करने तथा जांच शुरू करने का आदेश दिया था.
Central Bureau of Investigation (CBI) registered five FIRs against CRPF, Imphal Police and Assam Rifles personnel in connection with alleged Manipur fake encounter cases under murder with common intention. The Supreme Court had earlier ordered the CBI to probe the killings. pic.twitter.com/oCMYfzXHib
— ANI (@ANI) December 8, 2018
इस बीच मणिपुर के कुछ पुलिसकर्मियों ने याचिका दायर की थी कि पीठ में शामिल जज मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लें. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि पीठ ने कुछ आरोपियों को पहले अपनी टिप्पणी में ‘हत्यारा’ बताया था. इन आरोपियों के खिलाफ मुठभेड़ मामलों में एसआईटी ने आरोप पत्र दायर किया था.
इस याचिका को ख़ारिज करते हुए जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा था कि एसआईटी और इन मामलों में उसके द्वारा की जा रही जांच पर इन पुलिसकर्मियों के संदेह करने का कोई कारण नहीं है. न्यायपालिका और सीबीआई की सांस्थानिक पवित्रता को अवश्य कायम रखा जाना चाहिए.
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में एसआईटी को मणिपुर में गैर-न्यायिक हत्याओं में शामिल होने के आरोपी सेना के जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था.
अदालत के इस निर्देश के बाद सेना के 356 सेवारत जवानों ने ‘उत्पीड़न और मुकदमा चलाने’ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. 30 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सैनिकों की इस याचिका को खारिज कर दिया था.
असम: छात्रसंघ ने उठाए एनआरसी पर सवाल, कहा- एनआरसी में शामिल बांग्लादेशियों के नाम, हटाने के कदम उठाए सरकार
गुवाहाटी: अखिल असम छात्र संघ (एएएसयू) ने बुधवार को राज्य सरकार से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से बांग्लादेशियों के नाम हटाने के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की.
एएएसयू सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने शुक्रवार को यहां संवाददाताओं से कहा कि सर्बानंद सोनोवाल नीत सरकार को इसके लिए अपनी ओर से सत्यापन अभियान चलाना चाहिए क्योंकि उसके पास ऐसा करने की शक्ति है.
20वीं सदी की शुरुआत से बांग्लादेश के लोगों का असम में प्रवेश जारी है और यह एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास एनआरसी है.
मालूम हो कि एनआरसी पहली बार 1951 में तैयार किया गया था. एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया जायेगा जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं.
उच्चतम न्यायालय की निगरानी में इसे अपडेट किया जा रहा है, जिसके चलते इसका पूर्ण मसौदा 30 जुलाई को प्रकाशित किया गया था.
इसमें कुल 3.29 करोड़ प्राप्त आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए और करीब 40 लाख लोगों का नाम इसमें नहीं आया था.
जिन लोगों के नाम इस मसौदे में नहीं थे, उन्हें दावे और आपत्तियां दर्ज करने का मौका भी दिया गया था, जो 25 सितंबर से शुरू हुआ था. ख़बरों के अनुसार 18 नवंबर तक मसौदे से बाहर किए गए 40 लाख लोगों में से करीब 3. 5 लाख लोगों ने दावा किया है कि वे भारतीय नागरिक हैं.
शुक्रवार को भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार आपत्तियां दर्ज कराने का बोझ विभिन्न संस्थानों पर डालने की बजाए खुद से पुष्टि करने के बाद विदेशियों के नाम हटा सकती है.
उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेशियों का नाम एनआरसी में शामिल हो चुका है और सरकार को उन्हें हटाना चाहिए और त्रुटि मुक्त एनआरसी राज्य के लोगों को दी जानी चाहिए.’
साथ ही उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस पर कदम नहीं उठाती है तो एएएसयू अदालत का रुख करेगा.
नगालैंड: खापलांग गुट ने संघर्ष विराम समझौते को रद्द करने का फैसला वापस लिया
कोहिमा: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) के खापलांग गुट ने केंद्र सरकार से हुए संघर्ष विराम समझौते को एकतरफा खारिज करने के फैसले को तुरंत प्रभाव से रद्द करने का निर्णय किया है. इस गुट ने एक बयान जारी करके गुरुवार को यह जानकारी दी.
एनएससीएन (के) के प्रमुख खांगो कोन्याक और महासचिव इसाक सुमी के एक संयुक्त बयान में कहा गया कि बीते एक महीने से चल रहे नागरिक समाज समूहों और गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) से विस्तृत विचार विमर्श के बाद वह सर्वसम्मति से इस नतीजे पर पहुंचा है.
एनएससीएन के खापलांग गुट ने केंद्र के साथ 2001 में संघर्ष विराम पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन इसे मार्च 2015 में एकतरफा ढंग से रद्द कर दिया था. उस समय तक गुट के प्रमुख एसएस खापलांग जीवित थे.
बयान में कहा गया है कि विभिन्न संगठनों की अपील और केंद्र सरकार के ‘सकारात्मक प्रत्युत्तरों’ की वजह से यह फैसला किया गया है.
असम: पंचायत चुनाव में हुआ 50 फीसदी मतदान, मतपत्र में गड़बड़ियों की खबर
गुवाहाटी: असम में बुधवार को पंचायत चुनाव के पहले चरण में करीब 50 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. हालांकि अधिकारियों ने बताया कि मतदान के दौरान कई स्थानों पर मतदाताओं ने मतपत्र एवं मतदाता सूची में गड़बड़ियों की शिकायत की.
राज्य निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने बताया कि तीन बजे मतदान समाप्त होने के समय तक करीब 50 फीसदी मत डाले गए. कामरूप, तिनसुकिया, बिश्वनाथ और जोरहाट जिलों के कई स्थानों पर मतपत्र एवं मतदाता सूची में गड़बड़ियों की बात सामने आई.
कामरूप जिले के नगरबेरा इलाके और तिनसुकिया जिले के तिपाईमुख से मतपत्रों में उम्मीदवारों के नाम एवं पार्टी में मिलान नहीं होने की शिकायतें आईं जबकि कामरूप जिले के लचितगढ़ गांव में मतपत्रों में उम्मीदवारों के गलत नामों की भी जानकारी मिली.
जोरहाट जिले के तिताबोर में मतपत्रों से उम्मीदवारों के नाम भी गायब थे.राज्य निर्वाचन अधिकारी एच एन बोरा ने पीटीआई-भाषा को बताया कि मतदान प्रक्रिया को जारी रखने के लिए नए मतपत्र प्रिंट कर गड़बड़ियों को स्थानीय रूप से दुरुस्त करने की कोशिश की गई.
बोरा ने इन गड़बड़ियों के लिए ‘लापरवाह मुद्रण’ को जिम्मेदार ठहराया. ऐसी भी खबरें थीं कि नौगांव जिले के हाथीपारा में कागजों की खराब गुणवत्ता का आरोप लगाते हुए कुछ मतपत्रों को जला दिया गया जिससे मतदान प्रक्रिया कुछ समय के लिए प्रभावित हुयी.
बोरा ने कहा कि वह इस संबंध में पुलिस रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं. दुलियाजन, जालुकबारी, प्रागज्योतिषपुरा और गुवाहाटी के पास अमसिंग, बिश्वनाथ जिले के गोहपुर इलाके के तातुनबारी में मतदाता सूची से नाम गायब होने पर भी लोगों ने निराशा जताई.
बोरा ने कहा कि यह जिम्मेदारी मतदाताओं की है कि वे चुनाव से पहले देख लें कि उनके नाम मतदाता सूची में हैं या नहीं.
उन्होंने बताया कि चुनाव के लिए मतदाताओं के नाम 2016 विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची से लिए गए थे. साथ ही 2017 तक अपडेट की गई एक पूरक सूची जोड़ी गई.
बोरा ने कहा कि जिला प्रशासन से रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद अगर जरूरत हुई तो पुन: चुनाव के आदेश दिए जाएंगे.
सूत्रों ने बताया कि पंचायती राज की तीन श्रेणियों – जिला परिषद, आंचलिक पंचायत और गांव पंचायत में 15,899 पदों के लिए दावेदारी पेश कर रहे 43,515 उम्मीदवारों की किस्मत के फैसले के लिए पहले चरण के चुनाव 16 जिलों में हुए थे.
दूसरे चरण का मतदान नौ दिसंबर को होना है और मतों की गिनती 12 दिसंबर को की जाएगी.
चुनाव के पहले चरण के दौरान एक व्यक्ति जख्मी
गोलाघाट/गुवाहाटी: असम में पंचायत चुनाव के पहले चरण के मतदान के दौरान बुधवार को गोलाघाट जिले में एक मतदान केंद्र पर धारदार हथियार से सुरक्षा बलों पर हमला करने वाला व्यक्ति पुलिस की गोलीबारी में जख्मी हो गया.
पुलिस ने कहा कि पुलिस को शक है कि व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है. उसने हबीबुल गांव के मतदान केंद्र पर सुबह सात बजे कतार में खड़े कुछ मतदाताओं के साथ भी मारपीट की थी.
दोपहर के करीब यह व्यक्ति धारदार हथियार के साथ मतदान केंद्र लौटा और वहां तैनात सुरक्षा कर्मियों पर हमला कर दिया. पुलिस ने कहा कि सुरक्षा बलों ने आत्मरक्षार्थ हमलावर के पैर पर गोली मार दी.
उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान ज्ञानेंद्र राजखोवा के तौर पर हुई है. उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है.
कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में 2016 में विधानसभा चुनाव और 2013 में पंचायत चुनावों में वोट डाल चुके कुछ मतदाताओं ने शिकायत की है कि इस बार उनके नाम मतदाता सूची में नहीं हैं. इस वजह से चुनाव अधिकारियों के साथ उनकी तीखी बहस भी हुई.
मिज़ोरम: मिजो नेशनल फ्रंट ने कहा- भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति के चलते कभी राज्य में गठबंधन नहीं
आइजोल: भाजपा के नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) के घटक मिजो नेशनल फ्रंट ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इस बयान को खारिज किया है कि उनकी पार्टी 2019 का चुनाव जीती तो 50 साल तक देश पर शासन करेगी.
मिज़ोरम में मुख्य विपक्षी दल को हालांकि विश्वास है कि आम चुनाव में कांग्रेस या संप्रग जीत हासिल नहीं कर पाएगा.
पूर्व मुख्यमंत्री और मिजो नेशनल फ्रंट प्रमुख जोरमथंगा ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को एक दिए साक्षात्कार में कहा कि भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति के चलते उनकी पार्टी कभी राज्य में उससे गठबंधन नहीं कर सकती.
उन्होंने कहा, ‘मुझे संदेह है, वह (शाह) भगवान नहीं हैं. वह राजनीति में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते.’
जोरमथंगा ने कहा, ‘अमित शाह यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आएगी, लेकिन 50 या 100 साल की भविष्यवाणी करना अतिशयोक्ति है.’
गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सितंबर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़ी मेहनत की वजह से पार्टी 2019 का चुनाव जीतेगी और उसके बाद भाजपा को 50 साल तक सत्ता से कोई नहीं हटा सकता.
मिजो नेशनल फ्रंट के भाजपा से रिश्तों के बारे में पूछे जाने पर दो बार मुख्यमंत्री रह चुके जोरमथंगा ने कहा कि विचारधारा और अन्य बातों को लेकर वह भाजपा के पूरी तरह खिलाफ हैं.
उन्होंने कहा, ‘क्योंकि हम ईसाई हैं. वे हिंदुत्व का प्रचार करना चाहते हैं. जहां तक इन चीजों की बात है तो हम साथ नहीं आ सकते. हमारी विचारधारा अलग है.’
उन्होंने कहा, ‘जहां तक देश की बात है तो राजग संप्रग से बेहतर है, इसीलिए हम केंद्र में उसके साथ आए. लेकिन विचारधारा के मामले में हम बिल्कुल अलग हैं. भाजपा भी इस बात को अच्छी तरह जानती है.’
मिज़ोरम में 28 नवंबर को हुए विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट ने कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ा है.
एमएनएफ और कांग्रेस ने 40-40 जबकि भाजपा ने 39 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई है. मिज़ोरम में वर्ष 2008 से कांग्रेस की सरकार है. 11 दिसंबर को मिज़ोरम चुनाव के नतीजे घोषित किये जाएंगे.
मेघालय: आरटीआई कार्यकर्ता पर हमले की सीबीआई जांच की मांग
शिलांग: आरटीआई कार्यकर्ता आग्नेस खरशिंग और उनकी सहयोगी अमिता संगमा के परिजनों ने दोनों महिलाओं पर आठ नवंबर को हुए हमले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है.
पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले के शोश्री गांव में संदिग्ध कोयला माफिया के नेतृत्व में 30-40 लोगों के समूह ने खरशिंग और संगमा पर हमला किया था जिसमें दोनों गंभीर रूप से घायल हो गई थीं.
दरअसल दोनों महिलाएं सड़क पर कोयले से लदे ट्रकों की तस्वीर लेने के लिए रुकी थीं, उसी दौरान यह घटना हुई. परिवार के सदस्यों का कहना है कि सीबीआई जांच जरूरी है क्योंकि पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में कथित कोयला माफिया की जिला प्रशासन के साथ खुल्लमखुल्ला साठगांठ है.
मुख्यमंत्री को मंगलवार को दिए अपने ज्ञापन में खरशिंग और संगमा के परिजनों ने कहा कि यदि हमले की जांच राज्य की एजेंसियों से कराई गयी तो समाज स्वतंत्र जांच और हमले के दोषियों को सजा दिलाने पर अपना विश्वास खो देगा, इसलिए हम तय समय सीमा के भीतर सीबीआई से इस मामले की जांच कराने की मांग दुहरा रहे हैं.
हमले को अंजाम देने वाले और जिला प्रशासन के बीच साठगांठ का आरोप लगाते हुए परिवार के सदस्यों ने कहा कि हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश करें.
मेघालय सरकार पहले ही मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे चुकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)