‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल में महिलाओं को शामिल किया जाता तो अच्छा होता. यह 2018 है. फिल्म निर्देशक लीना यादव ने कहा कि यह दुखद है कि महिलाओं की आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है.
मुंबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बीते 18 दिसंबर को हिंदी फिल्म जगत के एक प्रतिनिधिमंडल ने भेंट की, लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल में किसी महिला के नहीं होने पर बुधवार कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और फिल्मकारों ने सवाल खड़े किए और आलोचना की.
निर्माता और निर्देशक करण जौहर, अभिनेता अजय देवगन, निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर, अभिनेता अक्षय कुमार, निर्माता निर्देशक ऋतेश सिद्धवानी और सीबीएफसी के प्रमुख प्रसून जोशी समेत 18 सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और फिल्म उद्योग को अगले चरण पर कैसे ले जाया जाए, इस पर चर्चा की थी.
एक महिला निर्माता ने इसे ‘मैनेल’ करार देते हुए कहा कि इस उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘पुरुषों’ के प्रतिनिधिमंडल में कोई महिला नहीं थी. फिल्मी जगत में महिलाएं न सिर्फ अभिनय के क्षेत्र में, बल्कि निर्देशन, निर्माता और लेखिका के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाती हैं.
उन्होंने नाम न छापने के अनुरोध पर कहा कि मनोरंजन उद्योग समेत कार्यस्थलों पर लैंगिक राजनीति पर तीखी बहस हुई थी और भारत में अपनी ‘मी टू’ की मुहिम चली थी जिसमें कई बड़े नाम सामने आए थे.
‘मी टू’ भारत के ट्विटर अकांउट से ट्वीट किया गया, ‘फिल्म उद्योग की महिलाएं कहां हैं?’
Where are the women of the industry? https://t.co/KGMcg8J2J9
— #MeTooIndia (@IndiaMeToo) December 19, 2018
पार्च्ड, राजमा चावल जैसी फिल्मों की निर्देशक लीना यादव ने कहा कि यह दुखद है कि महिलाओं की आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. ऐसा तब हो रहा है जब महिला निर्देशकों की फिल्में बेहद सराही जा रही हैं.
लीना की नई फिल्म ‘राजमा चावल’ हाल में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है.
‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने ट्विटर पर कहा, ‘इस प्रतिनिधिमंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व होता तो अच्छा होता. यह 2018 है.’
Would be great to have female representation in these delegations. It is 2018. https://t.co/HoxGbptgwX
— Alankrita Shrivastava (@alankrita601) December 18, 2018
निर्माता गुनीत मोंगा ने कहा, ‘यह अच्छा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की और मुझे यकीन है कि यह उद्योग को आगे लेकर जाएगा. यह अच्छा होता अगर मुलाकात में महिलाएं भी होतीं.’
उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं जानती इसकी योजना कब बनी. मैं इसे लेकर आहत नहीं हूं, मुझे लगता है कि यह अच्छा है कि उद्योग के लोगों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. मुझे उम्मीद है कि जीएसटी में सुधार होगा और इसका उद्योग को लाभ होगा. अगर महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी होता तो अच्छा होता.’
मोंगा की ‘पीरियड. एंड ऑफ सेनटेंस’ ने ऑस्कर की 2019 की 10 फिल्मों में अपनी जगह बनाई है. इसके अलावा मोंगा ‘द लंचबॉक्स’ और ‘मसान’ जैसी फिल्मों की निर्माता रही हैं.
अभिनेत्री दीया मिर्ज़ा ने बृहस्पतिवार को अक्षय कुमार को टैग करते हुए ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर की और तंज किया, ‘बहुत खूब! अक्षय कुमार क्या इस बात की कोई वजह है कि बैठक में एक भी महिला नहीं है?’
This is wonderful! Is there a reason why there were no women in this room? @akshaykumar https://t.co/oO9teT3Gyi
— Dia Mirza (@deespeak) December 19, 2018
अभिनेत्री का यह पोस्ट ‘गोल्ड’ के अभिनेता के उस पोस्ट का रीट्वीट था, जिसमें अक्षय ने पैनल को अपना समय देने के लिये प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया था.
सोशल मीडिया पर एक यूज़र ने यह सवाल उठाया कि बैठक के आयोजकों से यह सवाल पूछना चाहिए कि समूह में सिर्फ़ पुरुषों को चुनने की आवश्यकता क्यों पड़ी.
इस पर दीया ने कहा, ‘सही बात है. काश, किसी पुरुष ने भी यह सवाल किया होता. आख़िर समूचे मनोरंजन उद्योग का प्रतिनिधित्व सिर्फ पुरूष कैसे कर सकते हैं?’
एक और ट्विटर यूजर ने कहा कि आखिर हर जगह पुरुषों से महिलाओं की तुलना की आवश्यकता क्यों है? इस पर अभिनेत्री ने यह कहकर उस यूज़र की बोलती बंद कर दी कि बहस ‘प्रतिस्पर्धा’ की नहीं है.
उन्होंने लिखा, ‘यह मौलिक चीज़ है. अगर हम समानता हासिल करना चाहते हैं तो निश्चित तौर पर हमें हर बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए! इसमें कोई शक नहीं कि महिलाएं अच्छा कर रही हैं. हम यह जानते-समझते हुए अच्छा कर रहे हैं कि हमें इसमें शामिल नहीं किया जा रहा है और हमें इसे बदलने की ज़रूरत भी नहीं है.’
अभिनेत्री संध्या मृदुल ने भी अक्षय के पोस्ट को रीट्वीट किया और नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, ‘बहुत बढ़िया. हम महिलाओं के पास के तो चर्चा के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है… ज़ाहिर है.’
https://twitter.com/sandymridul/status/1075487164673208322
लीना यादव, अलंकृता श्रीवास्तव और गुनीत मोंगा जैसी फिल्मकारों एवं निर्देशकों सहित फिल्म नगरी से जुड़े कई लोगों ने इस साल कार्यस्थल पर लैंगिक राजनीति को लेकर जोरदार बहस का नेतृत्व किया, जिसमें ‘मी टू’ अभियान का भी योगदान रहा.
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस प्रतिनिधिमंडल में महिलाओं को शामिल नहीं किए जाने की आलोचना की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)