वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने कहा है कि किसानों को फसल बीमा योजनाओं की ओर आकर्षित करने के लिए इनमें पर्याप्त पूंजी आवंटन की ज़रूरत है.
नई दिल्ली: संसद की एक समिति ने सुझाव दिया है कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को फसल बीमा योजनाओं की ओर आकर्षित करने के लिए इन योजनाओं में पर्याप्त पूंजी आवंटन की जरूरत है. समिति ने साथ ही उल्लेख किया कि सरकार द्वारा चलाई जा रही दोनों फसल बीमा योजनाओं में पारदर्शिता की कमी सहित कई समस्याएं हैं.
वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई वाली प्राक्कलन समिति ने जैविक खेती करने वाले किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कृषि बीमा योजना के पुनर्गठन की सिफारिश की है. इस योजना में बहु-फसल प्रणाली को भी शामिल किए जाने की अनुशंसा की गई है.
संसद की प्राक्कलन समिति (एस्टीमेट कमेटी) ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के प्रदर्शन पर अपनी 30वीं रिपोर्ट में कहा है कि टिकाऊ कृषि से जुड़ा राष्ट्रीय मिशन टिकाऊ खेती के लिए पहल करते समय किसानों पर ध्यान देने से ‘चूक’ जाता है.
समिति ने कहा है कि अगर किसानों को खुद को स्थिरता प्रदान करने का मौका दिया जाता है तो ही कृषि एक टिकाऊ पेशे के रूप में बना रहेगा. इसके लिए जरूरी है कि किसानों को बेहतर बीज मिले. उन्हें सर्वश्रेष्ठ कृषि तकनीक की जानकारी हो और सरकार की ओर से खतरों को कवर करने के लिए समर्थन मिले.
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समिति ने 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई तरह की समस्यायें गिनाई हैं. इसमें फसल काटने के अनुभवों में होने वाली देरी और उससे जुड़ी ऊंची लागत जैसी समस्यायें बताई गई हैं. इसके साथ ही बीमा दावों के भुगतान में देरी अथवा भुगतान नहीं होना जैसी समस्यायें भी सामने रखी गई हैं. योजना में पारदर्शिता की कमी भी बताई गई है.
इससे पहले द वायर ने रिपोर्ट किया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लागू होने के बाद फसल बीमा द्वारा कवर किसानों की संख्या में सिर्फ 0.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं दूसरी तरफ फसल बीमा के नाम पर कंपनियों को चुकायी गई प्रीमियम राशि में 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत साल 2016-17 और साल 2017-18 के बीच निजी और सरकारी बीमा कंपनियों ने प्रीमियम के तहत कुल 47,408 करोड़ रुपये इकट्ठा किया. इसमें से 7,263 करोड़ रुपये का प्रीमियम किसानों द्वारा दिया गया.
वहीं राज्य सरकारों ने 17,212 करोड़ रुपये और केंद्र सरकार ने 16,973 करोड़ रुपये का प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया है.
हालांकि इस बीच किसानों को सिर्फ़ 31,613 करोड़ रुपये का ही दावा चुकाया गया. इस हिसाब से सिर्फ़ दो सालों में ही इस समय बीमा कंपनियों के खाते में 15,795 करोड़ रुपये की अधिक राशि मौजूद है.
अगर खरीफ 2018 सीजन का भी प्रीमियम जोड़ें तो 8 अक्टूबर, 2018 तक बीमा कंपनियों को कुल 66,242 करोड़ रुपये का प्रीमियम दिया जा चुका है.
द वायर को सूचना के अधिकार आवेदन के तहत मिले सरकारी आंकड़ों का आकलन करने पर ये जानकारी सामने आई है कि दो सालों में बीमा कंपनियों ने किसानों को 2,829 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान नहीं किया है.
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साल 2016-17 और 2017-18 के बीच किसानों का कुल अनुमानित दावा 34,441 करोड़ रुपये स्वीकार किया गया था. इसमें से बीमा कंपनियों ने अभी तक 31,612 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है.
इस हिसाब से किसानों का 2,829 करोड़ रुपये बीमा कंपनियों के पास मौजूद है और उन्होंने इतनी राशि का भुगतान नहीं किया है.
नियमों का उल्लंघन कर भुगतान में हो रही देरी
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि बीमा योजना को लेकर किसानों की मुख्य तकलीफ ये होती है कि जितनी उनकी फसल बर्बाद होती है, उसके मुकाबले उन्हें बहुत कम दावा मिलता है और समय पर दावे का भुगतान नहीं किया जाता है.
कृषि मंत्रालय ने द वायर को आरटीआई आवेदन के जवाब में बताया है कि ‘रबी 2017-18 के लिए अधिकतर दावों को अभी तक अनुमानित/स्वीकृत नहीं किया गया है. साल 2017-18 में भुगतान किए गए दावों में 99 प्रतिशत हिस्सा पिछले साल के खरीफ़ सीजन का है जबकि सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा रबी सीजन का है.’
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दिशानिर्देशों के मुताबिक फसल कटने के दो महीने के भीतर दावों का भुगतान किया जाना चाहिए. हाल ही में सरकार ने ये भी घोषणा किया है कि अगर दावा भुगतान में देरी होती है तो बीमा कंपनियों पर 12 प्रतिशत का जुर्माना लगाया जाएगा.
हालांकि किसानों की बीमा भुगतान में लगातार देरी की जा रही है. खरीफ सीजन के कटाई का महीना नवंबर-दिसंबर के बीच का होता है. इस हिसाब से साल 2017 के खरीफ सीजन को बीते दस महीने से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी तक किसानों के 2,200 करोड़ रुपये के करीब राशि का भुगतान नहीं किया गया है.
वहीं साल 2016 के खरीफ और रबी दोनों सीजन को बीते एक साल से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अब तक लगभग 500 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान नहीं हुआ है. इतना ही नहीं, 2017-18 के रबी सीजन को गुज़रे भी चार महीने हो चुके हैं, लेकिन बीते 10 अक्टूबर तक सरकार द्वारा किसानों का दावा अनुमानित/स्वीकृत नहीं किया गया था.
तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बीमा कंपनियों ने काफी कम दावे का भुगतान किया है. साल 2017-18 में हिमाचल प्रदेश के किसानों का जितना अनुमानित दावा था उसका सिर्फ 8.5 प्रतिशत ही भुगतान किया गया. इसी तरह तमिलनाडु के किसानों को भी साल 2017-18 के अनुमानित दावे का सिर्फ 13.83 प्रतिशत दावे का भुगतान किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)