केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी ने पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट में रिकॉर्ड की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को वापस लेने के लिए कहा था.
नई दिल्ली: केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) केवी चौधरी ने पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा से विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) में रिकॉर्ड की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को वापस लेने के लिए कहा था.
एपीएआर में अगर प्रतिकूल टिप्पणियां की गईं होती हैं तो अधिकारी के लिए भविष्य में प्रमोशन पाना या बड़े पदों पर पहुंचना मुश्किल हो जाता है.
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा की जा रही जांच की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके पटनायक को सौंपे जवाब में आलोक वर्मा ने कहा था कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी छह अक्टूबर को उनके घर पर आए थे और अस्थाना के खिलाफ की गई टिप्पणियां वापस लेने को कहा था.
सूत्रों ने द वायर को बताया कि केवी चौधरी ने वर्मा से कहा था कि अगर वे उनकी ये मांग मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. हालांकि आलोक वर्मा ने उनकी ये बात मानने से मना कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक वर्मा ने सीवीसी की जांच समिति के समाने कहा कि उन्होंने केवी चौधरी और सीवीसी के जूनियर अधिकारी शरद कुमार को बताया था कि अस्थाना के प्रदर्शन मूल्यांकन (एपीएआर) के मामले को उचित प्रक्रिया के माध्यम से हल किया जा सकता है और अस्थाना इसका लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र हैं.
उन्होंने जस्टिस एके पटनायक को लिखा, ‘जहां तक जांच (अस्थाना के खिलाफ) की बात है, यह निष्पक्ष तरीके से जारी रहेगा. अस्थाना द्वारा केवी चौधरी को लिए 10 पत्रों के आधार पर मैं ये बात आपके सामने लाना चाहता हूं कि यह स्पष्ट है कि उनके (अस्थाना) पास जांच की अंदरुनी जानकारी है और यही मेरे खिलाफ शिकायत की उत्पत्ति है.
वर्मा ने कहा, ‘इस कमरे में जस्टिस एके पटनायक का आना मेरे लिए राहत की बात है क्योंकि केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ मेरे पिछले अनुभव यह रहे हैं कि ये केवल किसी भी तरह से राकेश अस्थाना की मदद करने में दिलचस्पी रखते हैं.’
वर्मा ने एके पटनायक को दिए अपने बयान में बताया कि किस तरह सीवीसी और सत्ता के अन्य धड़ों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलकर सिर्फ एक अधिकारी राकेश अस्थाना को बचाने का काम किया. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से वे ठगा हुआ और निराश महसूस करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘राकेश अस्थाना पर बिल्कुल अलग नियम या यू कहे कि कोई भी नियम लागू नहीं होता है. मैं अब ये महसूस करता हूं कि वो मात्र एक अधिकारी नहीं हैं बल्कि सत्ता केंद्र के एक प्रतिनिधि हैं.’
वर्मा ने उनके खिलाफ की गई शिकायतों का जवाब देते हुए एके पटनायक को लिखा, ‘मेरे खिलाफ यह वर्तमान जांच राकेश अस्थाना के खिलाफ की गई शिकायत को लेकर नहीं है बल्कि चयन प्रक्रिया और संवेदनशील मामलों में स्वतंत्र सीबीआई जांच सुनिश्चित करने के लिए कानून के शासन का पालन करने की मेरी जिद के बारे में है.’
हालांकि उन्होंने ये नहीं बताता है कि वे कौन से ऐसे मामले हैं. उन्होंने कहा, ‘ये मामले राजनीतिक, कार्यकारी और न्यायपालिका के उच्च क्षेत्रों में शामिल लोगों के हैं.’
वर्मा लिखते हैं कि वह सीबीआई की अखंडता की रक्षा के लिए चुप थे. वर्मा ने कहा, ‘हालांकि, मेरी चुप्पी केवल प्रोत्साहन का स्रोत बनी. मेरी आपत्तियां और विरोध प्रदर्शन रिकॉर्ड में दर्ज हैं और निश्चित रूप से इसकी सराहना नहीं की गई है.’
इससे पहले आलोक वर्मा मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के जांच की निगरानी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक ने शुक्रवार को कहा कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली समिति ने उन्हें हटाने के लिए बहुत जल्दबाजी में फैसला लिया.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने एके पटनायक को आलोक वर्मा मामले में सीवीसी जांच की निगरानी के लिए चुना था.
जस्टिस पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘भ्रष्टाचार को लेकर वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं था. पूरी जांच सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की शिकायत पर की गई थी. मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीवीसी की रिपोर्ट में कोई भी निष्कर्ष मेरा नहीं है.’
वहीं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) टीएस ठाकुर ने कहा कि आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने से पहले उनका पक्ष न सुनना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है.
टीएस ठाकुर ने शनिवार को द टेलीग्राफ से कहा, ‘यदि सीबीआई निदेशक के पद से आलोक वर्मा को हटाने वाली चयन समिति ने उन्हें अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर नहीं दिया तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है.’
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आलोक वर्मा की सीबीआई निदेशक पद पर बहाली के बाद बीते गुरुवार को नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति ने 2:1 के फैसले से उनका तबादला कर दिया था. समिति में मोदी के अलावा सुप्रीम कोर्ट जज एके सीकरी और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे थे.
कांग्रेस नेता खड़गे ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने के खिलाफ विरोध पत्र दिया था. उनका कहना था कि वर्मा को कम से कम एक बार अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए.