केंद्र सरकार इस फैसले को लागू करने के लिए संसद के आगामी बजट सत्र में एक विधेयक पेश कर सकती है. सामान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत कोटा के चलते केंद्र द्वारा संचालित सभी संस्थानों को 25 प्रतिशत सीटों को बढ़ाना होगा.
नई दिल्ली: जुलाई से शुरू होने वाले अगले अकादमिक सत्र से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को उच्च शिक्षा के लिए निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलेगा. मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को इसका एलान किया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, केंद्र सरकार मंगलवार के फैसले को लागू करने के लिए संसद के आगामी बजट सत्र में एक विधेयक पेश कर सकती है. ये मौका 12 साल बाद आ रहा है, जब निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करने को लेकर संविधान में संशोधन किया गया था.
हालांकि, सरकार केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए नए घोषित 10 फीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए विधायी मार्ग नहीं अपनाएगी. सूत्रों ने कहा कि इसे इस सप्ताह एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से लागू किया जाएगा.
जावड़ेकर ने इसकी भी पुष्टि की है कि ईडब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत कोटा के चलते केंद्र द्वारा संचालित सभी संस्थानों को 25 प्रतिशत सीटों को बढ़ाना होगा, ताकि ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत आने वाले छात्रों की सीट सुनिश्चित हो सके.
जावड़ेकर ने मंगलवार को मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘124वें संविधान संशोधन के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फैसला किया है कि इसी वर्ष से ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए आरक्षण लागू होगा. इसे लागू करते समय, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण प्रभावित न हो. इसलिए, सीटें अधिक होंगी.’
ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए आमदनी मापदंड क्या होगा, ऐसा पूछे जाने पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ओबीसी वर्ग के क्रीमी लेयर के लिए लागू होने वाला मापदंड ही इसी में लागू होगा,. आठ लाख रुपये से कम आमदनी वाले को इस आरक्षण का लाभ मिलेगा.
वर्तमान में आईआईटी, एनआईटी और आईआईएम जैसे केंद्रीय महत्व के संस्थान, केंद्रीय विश्वविद्यालय, ओपन यूनिवर्सिटी, कॉलेज, सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों में सालाना 9.28 लाख सीटें भरी जाती हैं.
केंद्रीय संस्थानों को 25 प्रतिशत की वृद्धि करने की अनुमति होगी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कितने वर्षों में यह पूरा होगा.
केंद्रीय संस्थानों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ के बारे में भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इशारा किया है. सूत्रों के मुताबिक, मंत्रालय के शुरुआती अनुमान से पता चलता है कि इसकी लागत 4,000 करोड़ रुपये हो सकती है.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि सरकार को भरोसा है कि निजी संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ ईडब्ल्यूएस कोटे के विस्तार का निर्णय संसद के दोनों सदनों में पारित होगा. यूपीए सरकार के दौरान 2006 में 93वें संविधान संशोधन से निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने का मार्ग प्रशस्त हो गया था.
मौजूदा स्थिति में कई निजी संस्थानों में छात्रों के लिए आरक्षण की सुविधा है, लेकिन किसी भी केंद्रीय कानून के न होने के चलते यह अनिवार्य नहीं है.
एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे के अनुसार, अधिकांश मान्यता प्राप्त निजी संस्थान छात्रों के लिए राज्य के अनुसार आरक्षण प्रदान करते हैं. उन्होंने बताया, ‘राजस्थान और पश्चिम बंगाल के अलावा लगभग सभी राज्य सरकारों ने तकनीकी संस्थानों और कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों के लिए आरक्षण प्रदान करना अनिवार्य रखा है.’
नाम न बताने की शर्त पर एक मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘अभी भी कई ऐसे संस्थान हैं जो आरक्षण प्रदान नहीं करते हैं. हम अभी तक इस बात का विवरण नहीं दे पाए हैं कि निजी क्षेत्र को आरक्षण कैसे लागू करना चाहिए. सभी संभावना हम उनके पास छोड़ देंगे और उन्हें अपनी वेबसाइट पर अपनी कार्य योजना करने के लिए कहेंगे.’
नोएडा स्थित बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी के निदेशक एच. चतुर्वेदी ने कहा, ‘यह आरक्षण देने के लिए एक कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता है. केंद्र को एक कानून पारित करना होगा और फिर राज्य विधानसभाओं को भी ऐसा ही करना होगा. अगर सरकार कानूनी प्रक्रिया का पालन करती है, तो हम (निजी संस्थान) इसका पालन करेंगे.’