गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि मीडिया में यौन उत्पीड़न पीड़ितों के नाम प्रकाशित नहीं किया जा सकता है. परिजनों की अनुमति के बाद भी ऐसा नहीं किया जा सकता है.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया में यौन उत्पीड़न पीड़ितों के नाम को छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगा दी है. सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हालिया निर्देश पत्र में लिखा है कि पीड़ित का नाम केवल अदालत की अनुमति से सार्वजनिक किया जा सकता है.
निर्देश में कहा गया है, ‘मृत व्यक्ति या जीवित की पहचान परिजनों द्वारा अनुमति के बाद भी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है.’
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा, ‘पॉक्सो के तहत नाबालिग पीड़ितों के मामले में, उनकी पहचान को सार्वजनिक करने की अनुमति केवल विशेष न्यायालय द्वारा दी जा सकती है, यदि ऐसा खुलासा बच्चे के हित में हो.’
इस कदम के पीछे संबंधित अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल जम्मू कश्मीर के कठुआ में जिस प्रकार आठ वर्षीय बच्ची का बलात्कार और हत्या हुई थी, उस मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि कैसे उस बच्ची का नाम सार्वजनिक कर दिया गया.
गृह मंत्रालय के आदेश में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी स्थिति में पीड़िता का नाम उजागर नहीं किया जा सकता. नाम तभी सार्वजनिक होगा, जब वो पीड़िता के हित में होगा और इसका निर्णय अदालत करेगी. परिजनों द्वारा दी गई अनुमति भी मान्य नहीं होगी.
मंत्रालय ने निर्देश दिया है कि धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा), 376 (ए) बलात्कार और हत्या, 376 (एबी) बारह साल से कम उम्र की महिला से बलात्कार के लिए सजा, 376 (डी) (सामूहिक बलात्कार), 376 (डीए) सोलह वर्ष से कम उम्र की महिला पर सामूहिक बलात्कार के लिए सजा, 376 (डीबी) (बारह साल से कम उम्र की महिला पर सामूहिक बलात्कार के लिए सजा) या आईपीसी के 376 (ई) (पुनरावृत्ति अपराधियों के लिए सजा) और पॉक्सो के तहत अपराधों के पीड़िता का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता इसका मतलब उनका नाम किसी भी वेबसाइट पर नहीं डाले जाएंगे.
पुलिस अधिकारियों को भी निर्देश दिया गया है कि सभी दस्तावेजों को बंद लिफाफे में रखा जाए. असली दस्तावेजों की जगह सार्वजनिक तौर पर ऐसे दस्तावेजों को प्रस्तुत करें, जिसमें पीड़ित का नाम सभी रिकॉर्डों में हटा दिया गया हो.
2012 के दिल्ली गैंगरेप के बाद, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाने की मांग की गई थी और सुझाव भी दिया गया कि यौन उत्पीड़न के मामलों की एफआईआर को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने पिछले महीने यौन उत्पीड़न पीड़ितों के नाम पर निकाली जा रही विरोध रैलियों के बारे में तीखी टिप्पणी की थी. इसके अलावा, अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक वर्ष के भीतर प्रत्येक जिले में ‘वन स्टॉप सेंटर’ स्थापित करने और बलात्कार पीड़ितों के पुनर्वास सहित अन्य उपायों को अपनाने का निर्देश दिया था.