नॉर्थ-ईस्ट डायरी: पूर्वोत्तर के राज्यों से इस सप्ताह की प्रमुख ख़बरें

पूर्वोत्तर के राज्यों से इस सप्ताह की प्रमुख ख़बरें

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पूर्वोत्तर के राज्यों से इस सप्ताह की प्रमुख ख़बरें.

Manrega Labour Reuters
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

मनरेगा के अंतर्गत काम देने में मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम आगे

केंद्र सरकार की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार देने वाले राज्यों की सूची में पूर्वोत्तर के ये तीनों राज्य शीर्ष पर हैं.

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी गई इस रिपोर्ट के अनुसार मिजोरम पहली बार इस सूची में पहले नंबर पर आया है. मनरेगा के तहत किसी एक वित्तीय वर्ष में हर ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य है. मिजोरम में यह आंकड़ा 88.43 दिन व्यक्ति (प्रति परिवार) का है जो राष्ट्रीय औसत 45.21 दिन से लगभग दोगुना है.

त्रिपुरा जो पिछले सात वित्तीय वर्षों से पहले स्थान पर बना हुआ था, इस बार 79.88 दिन व्यक्ति (प्रति परिवार) के आंकड़े के साथ दूसरे स्थान पर है. सिक्किम पिछले साल की तरह ही इस बार भी तीसरे स्थान पर है. यहां 66.77 दिन व्यक्ति (प्रति परिवार) रोजगार उपलब्ध करवाया गया.

हालांकि मंत्रालय द्वारा जारी इस सूची में पूर्वोत्तर के दो अन्य राज्य मणिपुर और असम सबसे निचले दो पायदानों पर हैं, जहां इस वित्तीय वर्ष में क्रमशः 20.94 और 29.38 दिन व्यक्ति (प्रति परिवार) का आंकड़ा रहा.

हालांकि नियमानुसार मनरेगा के तहत किसी एक वित्तीय वर्ष में ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार के एक सदस्य को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य अब तक किसी राज्य ने पूरा नहीं किया है. मनरेगा के अंतर्गत गांवों में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए सड़कों और पुल निर्माण, तालाब व नहर आदि की खुदाई के काम दिए जाते हैं.

गौरतलब है कि मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है, वहीं त्रिपुरा में सीपीआई (एम) और सिक्किम में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट की. वहीं असम में पिछले साल मई में भाजपा सरकार का गठन हुआ था और मार्च में मणिपुर में भाजपा के सत्ता में आने से पहले वहां 15 सालों से कांग्रेस की सरकार थी.

अरुणाचल प्रदेश: 50 साल बाद मिलेगा चीन युद्ध के लिए सेना द्वारा ली गई ज़मीन का मुआवज़ा

50 सालों के लंबे इंतज़ार के बाद अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर बसे तीन गांवों के 152 परिवारों को जल्द ही 1962 में चीन युद्ध के समय सेना द्वारा ली गई ज़मीन का मुआवज़ा मिलेगा. यह ज़मीनें सेना की चौकी बनाने के लिए ली गई थीं.

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मुख्यमंत्री पेमा खांडू और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू से मुआवज़े का चेक देते हुए. (फोटो साभार: ट्विटर)

बीते 13 अप्रैल को सेइंगरेई गांव में हुए एक कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री किरेन रिजिजू और मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कुल 53, 92,71,110 रुपये के चेकों के प्रतिरूप सेइंगरेई, नकमाडुंग के लोगों को सौंपे.

जनता को संबोधित करते हुए रिजिजू ने बताया कि प्रत्येक परिवार को 4,20,000 रुपये का मुआवज़ा मिलेगा जो सीधे उनके बैंक खातों में आएगा. उन्होंने यह भी बताया कि इस कार्यक्रम से पहले इस रकम को ट्रांसफर नहीं किया जा सका क्योंकि लाभार्थियों के नामों को लेकर कुछ संशय बाकी था. स्थानीय ख़बरों की मानें तो इसे आने वाले हफ़्तों में सुलझा लिया जाएगा.

मेघालय: दो लोकसभा सांसदों ने 3 ईसाई मिशनरियों को वीज़ा देने के लिए पीएम को लिखा पत्र

मेघालय के लोकसभा सांसदों विंसेंट एच पाला और कॉनराड संगमा ने विदेशी ईसाई मिशनरियों को वीज़ा से जुड़ी मदद मुहैया करवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है.

दोनों ही सांसदों ने 3 विदेशी मिशनरियों का नाम प्रमुखता से लिखा है- गुजरात की जीवन ज्योति सोसाइटी से 1951 से जुड़े स्पेन के फादर इग्नासियो ज़ुआज़ुआ, पिछले 42 सालों से बिहार के मिशनरीज ऑफ चैरिटी से जुड़ी ऑस्ट्रेलिया की सिस्टर लॉरेल जूडिथ सॉटन और बीते 51 सालों से झारखंड के रांची जेज़ुएट सोसाइटी के साथ काम कर रहे बेल्जियम के ऑरेल ब्रिस.

कांग्रेस के नेता विंसेंट पाला पूर्व में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रह चुके हैं, वहीं संगमा भाजपा की नार्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायन्स की नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष हैं.

स्थानीय ख़बरों के मुताबिक 12 अप्रैल को पाला ने देश में सामान्य तौर पर ईसाइयों के खिलाफ नफ़रत और हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर ध्यान आकर्षित करते हुए पर प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग की ताकि मिशनरी गरीबों को दी जाने वाली अपनी सामाजिक और शैक्षणिक सेवाएं जारी रख सकें.

उन्होंने अपने पत्र में लिखा है, ‘देश में ईसाइयों के ख़िलाफ़ बढ़ रहे भेदभाव के चलते देश में सालों से रह रहे विदेशी नागरिकों, जो लंबे समय से समाज के वंचित वर्ग के लिए शिक्षा और समाज सेवा से जुड़ा काम कर रहे हैं, को परेशान करते हुए देश छोड़कर जाने के लिए कहा जा रहा है.’

वहीं संगमा ने गृहमंत्री को लिखे अपने पत्र में उनसे इस मुद्दे पर ध्यान देने कि गुज़ारिश की है. उन्होंने लिखा है, ‘ऐसे कई मामले हुए हैं जहां मिशनरियों को अपने वीसा की अवधि बढ़वाने में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. ऐसा पहले नहीं होता था. इस वजह से हमारे देश के गरीब और ज़रुरतमंदों के लिए इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं इन मिशनरियों को भ्रम और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.’

त्रिपुरा: 10 हज़ार से ज़्यादा शिक्षकों को योग्य घोषित करने के लिए जावड़ेकर से मिले सांसद

त्रिपुरा राज्य के सभी- दो लोकसभा और एक राज्यसभा सांसदों ने पिछले दिनों मानव संसाधन और विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाक़ात की. सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के इन सांसदों ने जावड़ेकर से राज्य में होने वाले के ‘टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट’ (टेट) के लिए शैक्षणिक योग्यताओं के पैमाने में बदलाव करने का निवेदन किया. उनका कहना था कि राज्य में मौजूदा पैमाने के हिसाब से टेट के लिए पर्याप्त योग्य उम्मीदवार नहीं हैं.

उनका यह निवेदन सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश के जवाब में आया है जहां शीर्ष कोर्ट ने राज्य के करीब 10,323 ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट अध्यापकों को 2001 में नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) द्वारा दी गई गाइडलाइंस पर खरा न उतरने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया था.

11 अप्रैल को दिल्ली में सीपीआई (एम) के सांसद जितेंद्र चौधरी ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया, ‘हमने उनसे अनुरोध किया है कि त्रिपुरा सरकार के प्रस्ताव पर गौर करते हुए वे अंकों और व्यावसायिक योग्यताओं से जुड़े नियमों में एक बार छूट दे दें क्योंकि त्रिपुरा में ऐसे अचानक इतनी संख्या में योग्य उम्मीदवार नहीं होंगे. इससे राज्य की स्कूली शिक्षा व्यवस्था प्रभावित होगी, जिससे विद्यार्थियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ेगा.’

उन्होंने यह भी बताया कि जावड़ेकर ने यह स्वीकारा कि कई और राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति है, साथ ही उन्होंने जल्द ही इस मसले पर एक विशेष बैठक रखने और इस मसले पर ध्यान देने का आश्वासन भी दिया.

वहीं राज्य में विपक्षी दल, खासकर भाजपा, अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस मसले पर मुख्यमंत्री माणिक सरकार को घेरने की योजना बना रहे हैं. 12 अप्रैल को त्रिपुरा के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बिप्लब कुमार देब ने कहा, ‘राज्य सरकार ने हज़ारों योग्य युवा उम्मीदवार होने के बावजूद ग़लत तरीकों से अयोग्य लोगों की बतौर अध्यापक नियुक्ति की. जब सुप्रीम कोर्ट ने इन नियुक्तियों को ग़ैर-क़ानूनी बता दिया है, तब सरकार नियमों में छूट देने की बात कैसे कर सकती है?’

अगरतला में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘इसके बजाय सरकार जिन अध्यापकों ने अपनी नौकरी गंवाई हैं, उनके लिए आजीविका के अन्य विकल्पों की व्यवस्था कर सकती है और नए योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया बनाकर भर्ती प्रक्रिया में तेज़ी ला सकती है.’

गौरतलब है कि 7 मई, 2014 को त्रिपुरा हाई कोर्ट ने 58 याचिकाओं के जवाब में राज्य सरकार द्वारा 2010 से 2013 के बीच नियुक्त किए गए 10,323 शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी थी. कोर्ट का कहना था कि इन शिक्षकों की भर्ती शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 में बताई गई योग्यता नीतियों के अनुरूप नहीं की गई थी. बीते 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के इस आदेश को क़ायम रखा. हालांकि शीर्ष कोर्ट ने प्रभावित शिक्षकों को इस साल 31 दिसंबर तक अपने पद पर काम करते रहने की छूट दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार राज्य में 31 मई तक टेट के माध्यम से नई नियुक्तियां करके इसे 31 दिसंबर तक पूरा करने को कहा है. उन्होंने यह भी कहा कि टेट में वे अध्यापक भी हिस्सा ले सकते हैं, जिनकी नियुक्ति रद्द हुई है.

ज्ञात हो कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए इन अध्यापकों में 1,100 शिक्षक पोस्टग्रेजुएट थे, वहीं 4,617 ग्रेजुएट और 4,606 अंडरग्रेजुएट थे.

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