देवास्वोम बोर्ड का यू-टर्न, कहा- सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का करता है समर्थन

उच्चतम न्यायालय ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर अपना आदेश बाद में सुनाएगा.

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Sabarimala: Devotees enter the Sabarimala temple as it opens amid tight security, in Sabarimala, Friday, Nov. 16, 2018. (PTI Photo) (Story no. MDS18) (PTI11_16_2018_000138B)
Sabarimala: Devotees enter the Sabarimala temple as it opens amid tight security, in Sabarimala, Friday, Nov. 16, 2018. (PTI Photo) (Story no. MDS18) (PTI11_16_2018_000138B)

उच्चतम न्यायालय ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर अपना आदेश बाद में सुनाएगा.

Sabarimala: Devotees enter the Sabarimala temple as it opens amid tight security, in Sabarimala, Friday, Nov. 16, 2018. (PTI Photo) (Story no. MDS18) (PTI11_16_2018_000138B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केरल के सबरीमला मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में अपना रुख़ बदलते हुए कहा कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी फैसले का समर्थन करता है.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह उचित समय है कि किसी वर्ग विशेष के साथ उसकी शारीरिक अवस्था की वजह से पक्षपात नहीं किया जाए.

द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 25 (1) सभी व्यक्तियों को धर्म का पालन करने का समान अधिकार देता है.

त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड में राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं.

बोर्ड ने इससे पहले इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका का जबर्दस्त विरोध करते हुए कहा था कि सबरीमला मंदिर में भगवान अयप्पा का विशेष धार्मिक स्वरूप है और संविधान के तहत इसे संरक्षण प्राप्त है.

द्विवेदी ने कहा कि शारीरिक अवस्था की वजह से किसी भी महिला को अलग नहीं किया जा सकता. समानता हमारे संविधान का प्रमुख आधार है. उन्होंने कहा कि जनता को सम्मान के साथ शीर्ष अदालत का निर्णय स्वीकार करना चाहिए.

शीर्ष अदालत 28 सितंबर, 2018 के संविधान पीठ के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. संविधान पीठ ने 4:1 से बहुमत के अपने में कहा था कि आयु वर्ग के आधार पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित करना उनके साथ लैंगिक आधार पर भेदभाव करना है.

पिछले साल 28 सितंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को जाने की इज़ाज़त दे दी थी. न्यायालय ने कहा था कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इज़ाज़त न देना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है. लिंग के आधार पर भक्ति (पूजा-पाठ) में भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं.

बता दें कि इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और चूंकि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है, जिससे मंदिर की पवित्रता बनी नहीं रह सकेगी.

सबरीमला मामले में निर्णय पर पुनर्विचार के लिए याचिकाओं पर सुनवाई पूरी, आदेश बाद में

उच्चतम न्यायालय ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली. न्यायालय इस पर अपना आदेश बाद में सुनाएगा.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने शीर्ष अदालत के 28 सितंबर, 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इस पर आदेश बाद में सुनाया जाएगा.

शीर्ष अदालत के इस निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर केरल सरकार, नायर सर्विस सोसायटी, त्रावणकोण देवास्वोम बोर्ड और अन्य पक्षकारों को सुना. इस मामले में कुल 64 याचिकाएं न्यायालय के समक्ष थीं.

पीठ ने अंत में कहा कि 28 सितंबर, 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार करने या नहीं करने के बारे में वह अपना आदेश बाद में सुनाएगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)