उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से सपा में घमासान जारी है तो बसपा प्रमुख मायावती के तेवर नरम पड़े हैं. वहीं कांग्रेसी ‘गठबंधन ग़लती था’ का राग अलाप रहे हैं.
यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस की हार को एक महीने से ज्यादा का वक़्त बीत चुका है. इस दौरान इन पार्टियों में तमाम तरह के फेरबदल हुए हैं. कई प्रमुख नेताओं ने अपनी पार्टी छोड़ दी है तो कुछ नेता अभी इसके फिराक़ में दूसरे दलों से मेलजोल बढ़ा रहे हैं, किसी दल में घमासान जारी है तो किसी पार्टी ने परिवारवाद की राह आगे बढ़ाई है. उत्तर प्रदेश में इसी साल नगर निगम चुनाव भी होने हैं. इसके लिए रणनीति बनाने का काम भी शुरू हो गया है.
इन तीनों प्रमुख विपक्षी दलों में हार के बाद से क्या समीकरण बने हैं इस पर एक नज़र डालते हैं….
सपा में घमासान जारी है….
समाजवादी पार्टी में विधानसभा चुनाव के पहले से जारी घमासान अब भी जारी है. मुलायम सिंह यादव ने मोदी के एक बयान को उदाहरण देकर बेटे अखिलेश पर निशाना साधा है. एक अप्रैल को मुलायम ने मैनपुरी में अखिलेश के लिए कहा कि ‘जो अपने बाप को नहीं हुआ वो आपका क्या होगा?’ तो वहीं शिवपाल यादव ने फिर से कुनबे के एकजुट होने की बात कही.
मुलायम समर्थक अखिलेश पर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने का दबाव डाल रहे हैं तो वहीं अखिलेश ने शिवपाल यादव और आज़म खान जैसे वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करके विधान परिषद में पार्टी के नेता के तौर पर अहमद हसन और विधानसभा में रामगोविंद चौधरी को पार्टी नेता बना दिया है.
अखिलेश यादव खुद विधानसभा और विधान परिषद, दोनों के संयुक्त नेता बन गए हैं. हालांकि इसके बाद से आज़म खान और शिवपाल यादव बुरी तरह से नाराज़ बताए जा रहे हैं.
इस दौरान शिवपाल ने विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है. उन्होंने इसे शिष्टाचार भेंट बताई हैं लेकिन सियासी हलके में इसके चर्चे खूब हो रहे हैैं.
शिवपाल के अलावा मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाक़ात कर चुकी हैं. पार्टी के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने भाजपा जॉइन कर ली है तो सपा की प्रदेश महिला विंग की अध्यक्ष स्वाति सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. स्वाति ने योगी के कामकाज की भी प्रशंसा की है.
हालांकि इस बीच सपा में हार के कारणों पर गहन मंथन हुआ. पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की मीटिंग में शिवपाल यादव का नाम लिए बिना ‘अलग पार्टी बनाने का ऐलान करने वालों’ के खिलाफ प्रस्ताव पास हुआ और भीतरघातियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई.
इसमें कहा गया कि कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा अलग पार्टी बनाए जाने जैसी बातों से अनुशासनहीनता फैलाने की कोशिशें की जा रही हैं, उससे पार्टी की छवि को धक्का लग रहा है.
क़रारी हार मिलने के बाद अब पार्टी ने अपना स्लोगन बदल दिया है. अब उनका नारा है- आपकी साइकिल सदा चलेगी, आपके नाम से, फिर प्रदेश का दिल जीतेंगे हम मिलकर अपने काम से.
पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की क़वायद में 15 अप्रैल से 15 जून तक सदस्यता अभियान भी चलाया जा रहा है.
मायावती के तेवर हुए नरम
विधानसभा चुनाव में क़रारी शिकस्त के बाद ईवीएम को जिम्मेदार ठहराने वाली मायावती ने कहा कि लोकतंत्र बचाने के लिए अब किसी भी दल से हाथ मिला सकती हैं.
मायावती ने अपने छोटे भाई आनंद कुमार को बसपा उपाध्यक्ष नियुक्त किया. उनके इस फैसले के बाद परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगा.
इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी में बड़ा परिवर्तन करते हुए पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सभी समितियों को भंग कर दिया.
पार्टी में नई जान फूंकने के इरादे से मायावती ने ज़ोनल, मंडल और जिला संयोजकों की पूरी टीम भंग कर दी. ब्राह्मण, ठाकुरों और मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास में बनायी गई भाईचारा समितियों को भी भंग कर दिया गया.
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसला करते हुए मायावती ने पार्टी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी को मध्य प्रदेश का संयोजक बना दिया. सिद्दीक़ी अब तक उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे. उन्हें लखनऊ ज़ोन का प्रभारी बनाया गया है.
पार्टी के सांसद (राज्यसभा) मुनकाद अली का कद बढ़ाते हुए उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का ज़िम्मा सौंपा गया है. इसमें 9 मंडल शामिल हैं. शेष अन्य मंडलों का दायित्व बसपा प्रदेशाध्यक्ष रामअचल राजभर संभालेंगे.
साथ ही कुछ पुराने नेताओं ख़ासकर पार्टी के संस्थापक नेताओं में शामिल पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद को दोबारा पार्टी में शामिल किया गया है.
मायावती ने ऐलान किया है कि दो दशक से अधिक समय बाद बसपा अब शहरी स्थानीय निकाय चुनाव पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ेगी.
गठबंधन को लेकर कांग्रेस में रार
इस एक महीने में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने दोबारा पार्टी को संगठित करने का प्रयास शुरू किया. इसके तहत नई दिल्ली में 15 अप्रैल को और लखनऊ में 16 अप्रैल को प्रदेश के अलग-अलग जिला और शहर अध्यक्षों की बैठक बुलाई गई .
हालांकि इस दौरान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्दशा के लिए जिला व शहर कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन के फैसले को जिम्मेदार ठहराया.
उन्होंने राजबब्बर और गुलाम नबी आज़ाद को संगठन को मजबूत बनाने के साथ पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह देने और अपने दम पर ही चुनावों में उतरने की सलाह दी.
साथ ही सीटों के बंटवारे और टिकटों के निर्धारण में संदिग्ध भूमिका निभाने वालों को चिह्नित करने की मांग की गई. जिला अध्यक्षों का कहना था कि राहुल गांधी की किसान यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनने लगा था लेकिन गठबंधन प्लान से पूरी मेहनत पर ही पानी फिर गया.
हालांकि कांग्रेस में इस बैठक के बाद से कोई फैसला नहीं लिया गया है. फैसले की जिम्मेदारी और रणनीति तय करने का काम केंद्रीय नेतृत्व को सौंप दिया गया है.