पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में अलग-अलग घटनाओं में दो चचेरे भाइयों गौरव और सचिन के साथ एक अन्य युवक शाहनवाज कुरैशी की हत्या हो गई थी जिसके बाद पूरे इलाके में हिंसा फैल गई थी. इस दौरान 62 लोगों की मौत हुई थी जबकि 50 हजार से ज़्यादा लोग विस्थापित हो गए थे.
नई दिल्ली: मुज़फ़्फ़रनगर 2013 दंगा मामलों में वहां की एक मेट्रोपॉलिटन अदालत ने शुक्रवार को सात दोषियों को उम्रकैद की सजा दी. इसके साथ ही अदालत ने प्रत्येक दोषी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. पांच दोषी जेल में हैं जबकि दो को पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी.
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, इससे पहले अदालत ने कवाल कस्बे में दो चचेरे भाइयों की हत्या की आरोप में सातों को दोषी ठहराया था. इसी हत्या के कारण 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा फैला था.
27 अगस्त, 2013 को अलग-अलग घटनाओं में दोनों चचेरे भाइयों गौरव और सचिन के साथ एक अन्य युवक शाहनवाज कुरैशी की हत्या हो गई थी. इसके बाद पूरे इलाके में हिंसा फैल गई थी. इस दौरान 62 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 50 हजार से ज़्यादा लोग विस्थापित हो गए थे.
अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश हिमांशु भटनागर ने मुजम्मिल, मुजसिम, फुरकान, नदीम जनांगीर, अफजल और इकबाल को गौरव और सचिन की हत्या के साथ उसके बाद हुए दंगे का दोषी पाया. इस मामले की जांच एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने की थी और उसने 175 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया था.
जहां दंगों के वास्तविक कारण पर अभी भी विवाद है, वहीं ऐसा आरोप है कि कवाल गांव में शाहनवाज ने एक जाट लड़की का उत्पीड़न किया था. इसके जवाब में लड़की के रिश्तेदार सचिन और गौरव ने शाहनवाज की हत्या कर दी. इसके बाद जब दोनों भाई भागने लगे तो मुस्लिमों की भीड़ ने दोनों की पीट-पीटकर हत्या कर दी. एफआईआर के अनुसार, पांच दोषियों ने दोनों युवकों को मौत के घाट उतार दिया.
इसके कुछ दिनों बाद 27 सितंबर को तब दंगा भड़क उठा जब महापंचायत से लौटने वाले लोगों पर हमला किया गया. इसके बाद दंगों की आग मुज़फ़्फ़रनगर के अन्य इलाकों और आस-पास के जिलों में भी फैल गई.
2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों की जांच के लिए 2016 में गठित किए गए जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने हिंसा के लिए खुफिया विफलता और कुछ शीर्ष अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था.
पिछले साल फरवरी में भाजपा सांसद संजीव बालियान के नेतृत्व में खाप चौधरियों के एक दल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर मांग की थी कि इस मामले में हिंदुओं पर दर्ज मामलों को वापस ले लिया जाए. इसके एक महीने बाद ही सरकार ने दंगों के 131 मामलों की रिपोर्ट जिला प्रशासन से मांगी थी.
इसके साथ ही जनहित में मामलों को वापस लेने पर सरकार ने जिला मजिस्ट्रेटों, एसएसपी और सरकारी वकीलों से राय मांगी थी. इसके साथ ही उसने दो ऐसे मामलों की जानकारी और उन पर राय मांगी थी जिनमें हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची और अन्य आरोपी बनाए गए थे.