बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 2008 मालेगांव बम विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जमानत दे दी लेकिन सह आरोपी और पूर्व कर्नल श्रीकांत पुरोहित को कोई राहत देने से इनकार कर दिया.
अदालत ने कहा कि 44 वर्षीय साध्वी प्रज्ञा के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता. अदालत ने साध्वी से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को अपना पासपोर्ट सौंपने और पांच लाख रुपये का नकद मुचलका पेश करने का आदेश दिया. साध्वी प्रज्ञा को नौ साल पहले गिरफ्तार किया गया था.
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति शालिनी फनसाल्कर जोशी की खंडपीठ ने कहा, यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त आधार है कि पुरोहित के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं.
अदालत ने साध्वी को सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने और जरूरत के अनुसार एनआईए अदालत में रिपोर्ट करने का निर्देश दिया.
गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक बाइक में बम लगाकर विस्फोट किया गया था जिसमें आठ लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 लोग जख़्मी हो गए थे.
साध्वी और पुरोहित को 2008 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वे जेल में हैं. कैंसर से पीड़ित साध्वी का मध्य प्रदेश के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है जबकि पुरोहित महाराष्ट्र के तलोजा जेल में बंद हैं.
इस मामले में जांच की जिम्मेदारी एटीएस से एनआईए को दी गई थी. एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा को क्लीनचिट देते हुए उच्च न्यायालय में कहा था कि साध्वी को ज़मानत पर रिहा करने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है. हालांकि एजेंसी ने पुरोहित की जमानत याचिका का विरोध किया था.
अदालत ने कहा कि हमारी राय में, अगर एटीएस और एनआईए दोनों की रिपोर्टों पर एक साथ गौर किया जाए तो जहां तक साध्वी का सवाल है, यह नहीं कहा जा सकता कि यह भरोसा करने के लिए पर्याप्त आधार हैं कि उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं.
न्यायाधीशों ने कहा कि अगर एक बार ऐसा हो तो अपीलकर्ता को ज़मानत का लाभ नहीं रोका जा सकता, भले ही एटीएस द्वारा उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप गंभीर हैं.
अदालत ने साध्वी की याचिका पर अपने 78 पृष्ठों के आदेश में कहा कि आरोपी एक महिला हैं जो 2008 से ही जेल में हैं और कैंसर से पीड़ित हैं.
पीठ ने पुरोहित की याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं.
पीठ ने कहा कि यह राज्य की एकता और अखंडता के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने की तरह है और वह भी बम विस्फोट जैसे हिंसक तरीके से, ताकि लोगों के मन में आतंक पैदा किया जा सके.
एनआईए द्वारा दाखिल रिपोर्ट (आरोपपत्र) का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि पुरोहित ने हिंदू राष्ट्र के लिए अलग भगवा रंग के झंडे के साथ अलग संविधान तैयार किया. पीठ ने कहा कि उन्होंने हिंदुओं पर मुस्लिमों द्वारा अत्याचार के लिए बदला लेने के बारे में भी चर्चा की.
अदालत ने पुरोहित की दलीलों को ख़ारिज कर दिया.
आदेश का स्वागत करते हुए साध्वी के एक रिश्तेदार भगवान झा ने कहा कि परिवार राष्ट्रव्यापी स्तर पर जश्न मनाएगा. अदालत के बाहर चॉकलेट बांटते हुए झा ने संवाददाताओं से कहा, आखिरकार हम जीत गए. अब हम राष्ट्रीय स्तर पर जश्न मनाएंगे.
पीड़ितों के परिवार ने साध्वी प्रज्ञा की ज़मानत अर्ज़ी को चुनौती देने के लिए हस्तक्षेप अर्ज़ी दायर की हुई है. उन्होंने अदालत से आदेश पर रोक लगाने की मांग की ताकि वे इसके ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकें.
जांच एजेंसी के मुताबिक, विस्फोट को दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत ने कथित तौर पर अंजाम दिया था और पुरोहित और प्रज्ञा सहित कुल 11 लोग इस मामले में अभी जेल में है.
साध्वी ने अपनी अपील में दलील दी थी कि निचली अदालत उनके मामले में बदली स्थितियों का संज्ञान लेने में विफल रही है, जिसमें एनआईए ने अपने आरोप पत्र में उनके ख़िलाफ़ कोई साक्ष्य नहीं पाने और उनके ख़िलाफ़ अभियोजन हटा देने की बात कही थी.
एनआईए को यह मामला बहुत बाद में दिया गया था. एजेंसी ने पहले उच्च न्यायालय से कहा था कि उसे साध्वी की अर्ज़ी पर कोई आपत्ति नहीं है.
विस्फोट के कुछ पीड़ितों के परिवारों ने दलील दी कि अर्जी को ख़ारिज किया जाए क्योंकि एटीएस के आरोप पत्र में पर्याप्त सबूत हैं जिससे यह साबित होता है कि साध्वी विस्फोट की एक प्रमुख साजिशकर्ता है.
एनआईए ने पुरोहित की ज़मानत की अर्ज़ी का विरोध किया और दलील दी कि ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग, कॉल डाटा के तौर पर उनके ख़िलाफ़ पहली नज़र में मामला बनता है और गवाहों के बयान यह साबित करते हैं कि वह मामले में शामिल थे.
एनआईए के मुताबिक, पुरोहित ने साज़िश रचने वाली बैठकों में सक्रियता से हिस्सा लिया है और वे विस्फोट में इस्तेमाल करने के लिए विस्फोट का इंतज़ाम करने को भी राज़ी हो गए थे.
पुरोहित ने दलील दी थी कि एनआईए कुछ आरोपियों को आरोपमुक्त करने में भेदभाव कर रही है और एजेंसी ने उन्हें मामले में बलि का बकरा बनाया है.
इस महीने की शुरुआत में साल 2007 में हुए अजमेर दरगाह बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और संघ के नेता इंद्रेश कुमार को क्लीनचिट दे दी थी.
जयपुर की विशेष एनआईए अदालत में जांच एजेंसी ने मामले की क्लोज़र रिपोर्ट दाख़िल की थी, जिसमें कहा गया था कि साध्वी प्रज्ञा, संघ नेता इंद्रेश कुमार के अलावा दो अन्य आरोपी रमेश वेंटकराव महाल्कर और राजेंद्र उर्फ समंदर के ख़िलाफ़ ठोस सबूत नहीं मिल सके हैं.
साथ ही मामले के एक अन्य आरोपी स्वामी असीमानंद को अदालत ने बरी कर दिया था. वहीं 22 मार्च को इसी मामले में विशेष अदालत भावेश पटेल और देवेंद्र गुप्ता को उम्रक़ैद की सज़ा सुना चुकी है.
मिलिट्री अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित की ओर से कथित तौर पर चलाए जा रहे हिंदू अतिवादी संगठन अभिनव भारत का सदस्य होने का आरोप साध्वी प्रज्ञा पर है. इस मामले के अलावा 29 सितंबर 2008 को हुए मालेगांव बम धमाका मामले में भी उन्हें क्लीनचिट मिल चुकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)