नियामगिरी आंदोलन से जुड़े प्रफुल्ल सामंतरा को ग्रीन नोबल पुरस्कार

ओडिशा की नियामगिरी पहाड़ियों पर रहने वाले डोंगरिया कोंड जनजाति के भूमि अधिकारों पर सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा ने उल्लेखनीय काम किया है.

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2017 Goldman Environmental Prize winner Prafulla Samantara

ओडिशा की नियामगिरी पहाड़ियों पर रहने वाले डोंगरिया कोंड जनजाति के भूमि अधिकारों और पहाड़ियों को खनन से बचाने के लिए अभियान चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा को 2017 के ‘गोल्डमैन एन्वॉयरमेंटल सम्मान’ से नवाज़ा गया है.

2017 Goldman Environmental Prize winner Prafulla Samantara
प्रफुल्ल सामंतरा (फोटो साभार: Goldmanprize.org)

ओडिशा की नियामगिरी पहाड़ियों में खनन और डोंगरिया कोंड जनजाति के भूमि अधिकारों लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा को साल 2017 के ‘गोल्डमैन एन्वॉयरमेंटल प्राइज़’ से सम्मानित किया गया है.

24 अप्रैल को सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) में पर्यावरण सुरक्षा में योगदान के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों की घोषणा की गई. इस सम्मान को पर्यावरण क्षेत्र के नोबल पुरस्कार के समान माना जाता है. इसलिए इसे ग्रीन नोबल भी कहा जाता है.

नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे सामंतरा के लोक शक्ति अभियान संगठन ने ओडिशा के डोंगरिया कोंड जनजाति के भूमि अधिकारों के लिए 12 सालों तक चली क़ानूनी लड़ाई का नेतृत्व किया था.

सामंतरा के अलावा 5 अन्य लोगों को भी इस सम्मान से नवाज़ा गया है. यह पुरस्कार मानव सभ्यता वाले छह इलाकों- एशिया, अफ्रीका, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी व मध्य अमेरिका और द्वीप व द्वीपीय देशों में बुनियादी स्तर पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को दिया जाता है.

एशिया से सामंतरा के अलावा इस साल यह पुरस्कार यूरोप से उरोस मासेर्ल, उत्तर अमेरिका से मार्क लोपेज़, द्वीप और द्वीपीय देशों से वेंडी बोमैन, दक्षिण और मध्य अमेरिका से रॉड्रिगो टॉट, अफ्रीका से रॉड्रिग कटेंबो को मिला है.

सामंतरा यह सम्मान पाने वाले छठे भारतीय हैं. उनसे पहले यह सम्मान मेधा पाटकर, एमसी मेहता, रमेश अग्रवाल, रशीदा बी और चंपा शुक्ला को मिल चुका है.

पूर्वी ओडिशा की नियामगिरी पहाड़ियां जैव विविधता का प्रमुख केंद्र हैं. इन्हें तमाम औषधीय पौधों, लुप्त होते जानवरों का घर माना जाता है. यहां रहने वाली डोंगरिया कोंड जनजाति इन पहाड़ियों को पवित्र मानती हैं, साथ ही ख़ुद को इनका संरक्षक भी कहती है.

इन पहाड़ियों पर कई बड़ी कंपनियां खनन का काम शुरू करना चाहती थीं, पर यहां के रहवासियों के विरोध के कारण ऐसा हो नहीं पाया. नियमगिरी के लांजीगढ़ में ब्रिटेन की नामचीन वेदांता एलुमिना की एक इकाई स्टरलाइट इंडस्ट्रीज राज्य की माइनिंग कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर एक खदान परियोजना लाने वाली थी पर सामंतरा के लोक शक्ति अभियान ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की ग्रीन पैनल सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी में याचिका दायर की, जिसके बाद 2010 में पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना को नामंज़ूर कर दिया.

Prafulla Samantara Goldman Prize
प्रफुल्ल सामंतरा डोंगरिया कोंड जनजाति के लोगों के साथ (फोटो: Goldmanprize.org)

इसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस जनजाति को इस परियोजना पर फैसला लेने का अधिकार दिया, जहां 12 ग्राम परिषदों ने  इसके ख़िलाफ़ वोट दिया और अगस्त 2015 में आख़िरकार वेदांता ने यहां एल्युमीनियम रिफाइनरी को बंद करने की घोषणा कर दी.

इसके अलावा सामंतरा दक्षिण कोरिया की पोस्को कंपनी के ख़िलाफ़ भी लड़ रहे हैं. ओडिशा के जगतसिंहपुर में लोहे और स्टील का प्लांट शुरू करने जा रही पोस्को को भी नियामगिरी जैसे नागरिक विरोध का सामना करना पड़ा. 2011 में पर्यावरण मंत्रालय इस योजना को मंजूरी तो दे दी पर यह शुरू नहीं हो सकी.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सामंतरा ने कहा, ‘नियामगिरी मामला इस बात का सबूत है कि अगर आप सही कारण के लिए खड़े हैं तो जनता की ताकत कॉरपोरेट को हरा सकती है. हम पैसे के लिए नहीं, हम अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. यूं तो ये केवल दो शोपीस प्रोजेक्ट थे, पर ये जनता के हितों के ख़िलाफ़ था. लोग सामने आए, वे लड़े. ये दोनों उदाहरण दिखाते हैं कि जनता द्वारा किए जाने वाले आंदोलन कितने ज़रूरी हैं.’

65 वर्षीय सामंतरा की परवरिश साधारण किसान परिवार में हुई है और उन्होंने वक़ालत की पढ़ाई की है. 2003 में उन्होंने ओडिशा के आदिवासियों द्वारा वेदांता के ख़िलाफ़ किए जा रहे संघर्ष के बारे में पढ़ा और इसका हिस्सा बन गए. इसके लिए उन्होंने रैलियां की, लोगों को साथ लाकर जागरूकता फैलाई.