इस महीने असम की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में एक साल पूरे करने जा रहे सर्बानंद सोनोवाल का कहना है कि एक सुदृढ़ शासन व्यवस्था बनाने के लिए जनता की आवाज़ को भी सुना जाना ज़रूरी है.
पूर्वोत्तर भारत में पहली बार भाजपा की सरकार असम में बनी थी. इस महीने असम में भाजपा सरकार के एक साल पूरे होने वाले हैं. 23 मई को सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में बनी इस सरकार का एक साल पूरा होने जा रहा है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री की ज़िम्मेदारी निभा चुके सर्बानंद सोनोवाल ने पहली बार मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद को संभाला था. पिछले एक साल के कार्यकाल में राज्य में कई विवाद सामने आए हैं. राज्य में भ्रष्टाचार, नागरिकता संशोधन विधेयक और बीफ़ को लेकर हो रही राजनीति पर उनसे बातचीत.
केंद्रीय खेल मंत्री से मुख्यमंत्री… पिछले एक साल का सफ़र कैसा रहा?
मेरे काम करने के समय और नज़रिए की बात करूं तो बहुत कुछ बदल गया है. हमें जो जनादेश मिला था उससे हमारी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई है. हमारी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में ‘पोरिबर्तन’ (परिवर्तन) का नारा दिया था. जनता हमारी सरकार से परिवर्तन की उम्मीद करती है.
मैं हमेशा खुद को याद दिलाता हूं कि मैं जनता का प्रतिनिधि हूं. मुझे सभी को साथ लेकर चलना है और मैं जनता के प्रति जवाबदेह हूं. मुझे उनके पास जाना है और मुझे उम्मीद है अगर असम की जनता मेरे साथ है, तो मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता है. उन्हीं के समर्थन से मुझे ताकत मिलती है, जिसे पाने के लिए मैं प्रयास करता रहूंगा.
अगर काम की बात करें तो पिछले एक साल में बहुत से बदलाव आए हैं. सामान्य दिनों में मैं सुबह 9 बजे से काम शुरू करता हूं जो रात के करीब 11:30 बजे तक चलता है. कई बार तो देर रात 1-2 बजे तक भी काम करना पड़ता है.
मैं किसी पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा हूं पर असम की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को ओवरहॉलिंग की ज़रूरत है, उसे और मज़बूत करने की ज़रूरत है, जिसे संभालने की मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं.
पिछले एक साल में सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?
भ्रष्टाचार, इसमें कोई दो राय नहीं है. न केवल ऊपरी स्तर पर बल्कि नीचे तक पूरी व्यवस्था में इसकी पैठ है. असम लोकसेवा आयोग में नौकरी के लिए रिश्वत देने, राज्य के सामाजिक कल्याण विभाग में 2,250 करोड़ रुपये का घोटाला, प्रदेश के कृषि विभाग में 700 करोड़ रुपये का घोटाला जैसे भ्रष्टाचार के कितने ही मामले सामने आए हैं. हम इस पर कार्रवाई कर रहे हैं. इससे लोगों का सिस्टम पर भरोसा बढ़ेगा.
इस भ्रष्ट व्यवस्था के चलते असम की आम जनता का सरकार पर भरोसा कम हुआ है; मैं उनका यह भरोसा वापस लाना चाहता हूं. इसीलिए हाल ही मैंने जनता के लिए एक डिजिटल मंच की शुरुआत की है, जहां वे सरकार की योजनाओं पर अपने विचार साझा कर सकते हैं.
एक सुदृढ़ शासन व्यवस्था बनाने के लिए उनकी आवाज़ को भी सुना जाना बेहद ज़रूरी है. मैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए गए ‘लेस गवर्नमेंट, मोर गवर्नेंस’ के सिद्धांत पर काम करता हूं.
भ्रष्टाचार के पुराने मामले और लुई बर्गर जैसे हाई प्रोफ़ाइल मामले के बारे में क्या कहना चाहेंगे? राज्य की सीआईडी दो बार गुवाहाटी हाईकोर्ट को रिपोर्ट देने में असफल रही है. यह वही रिपोर्ट है, जिसे अमेरिकी अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंस कर तैयार किया गया था. इस देर की क्या वजह है?
हम इसे भी देखेंगे.
कोई अन्य चुनौतियां?
राज्य में विविधताओं की वजह से कई चुनौतियां हैं. बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि असम के दिमा हासाओ और कार्बी आंगलोंग जैसे जिलों में कुछ ऐसी जनजातियां हैं, जिनकी संख्या इतनी कम है कि विधानसभा में कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व ही नहीं है पर उनकी उम्मीदें तो हैं.
मैंने सरकार के राजस्व मंत्रालय के अंतर्गत ‘डिस्कवर असम’ नाम की एक योजना शुरू की है, जो इस तरह के मुद्दों पर काम करेगी. यहां मेरे लिए चुनौती यही है कि मैं कैसे इन आवाज़ों को सरकार के कामों में जोड़ पाऊं.
कुछ चुनौतियां राज्य की भौगोलिक स्थिति की वजह से भी हैं. जैसे कई पहाड़ी जिलों के ऐसे गांव हैं, जहां अब तक बिजली पहुंच ही नहीं पाई है, क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थिति के चलते वहां बिजली की लाइन को नहीं ले जाया जा सकता. अब हम इस तरह के मुद्दों से निपटने के नए तरीके तलाश रहे हैं. ऐसी कई चुनौतियां हैं वहां.
आपकी नज़र में पिछले एक साल में सरकार की उपलब्धियां क्या रहीं?
मुझे लगता है कि कुछ हद तक हम भ्रष्टाचार पर काबू पाने में कामयाब रहे हैं. यह बात इस आंकड़े से साबित होती है कि 2016-17 में सरकार को 12,800 करोड़ रुपये का राजस्व मिला, जो 2015-16 की तुलना में 20.5 प्रतिशत ज़्यादा है. हम कुछ कमियों को दूर करने में सफल हुए हैं, हमने विजिलेंस विभाग का इस्तेमाल किया. इस बढ़त का फायदा जनता को ही मिलेगा.
पिछले एक साल में गैर-कर राजस्व भी 27.41 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,500 करोड़ रुपये हो गया. हमारी सरकार ने एक वर्ष के भीतर मनरेगा पर 1502 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं, जबकि पिछली सरकार ने 2015-16 में 20.90 करोड़ रुपये ही ख़र्च किए थे.
राज्य में बहुत-से औद्योगिक यूनिट भी लगी हैं, जिसमें लगभग 5,000 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. इन सभी यूनिट ने इसकी निश्चित समयसीमा 31 मार्च 2017 से पहले ही उत्पादन भी शुरू कर दिया था. यह निवेश 2007 में बनाई गई नार्थ ईस्ट इंडस्ट्रियल इंवेस्टमेंट प्रमोशन पॉलिसी के ज़रिये आया.
यह नीति 2017 में ख़त्म होनी थी. हालांकि मैंने नीति आयोग के सीईओ आमोद कांत के साथ एक हालिया बैठक में कहा है कि जब तक कोई नई पॉलिसी नहीं बनती, इसे ही इस्तेमाल करें क्योंकि इससे अच्छा निवेश आ रहा है.
इसके अलावा स्वच्छ भारत अभियान के तहत हमारी सरकार ने 8.5 लाख घरेलू शौचालयों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा था, पर हम 10.47 लाख शौचालयों का निर्माण करने में सफल रहे. नोटबंदी के बाद हमने चाय बागानों में काम करने वाले करीब 8 लाख मजदूरों के बैंक खाते खोले. आज की तारीख में सरकार की कम से कम 46 सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है.
पहले साल में हम केवल अंतरिम बजट ही पेश कर सके थे, हमें पूरा साल नहीं मिला, पर सिर्फ 9 महीने में ही अच्छे परिणाम सामने आने लगे. मुझे इस बात की सबसे ज़्यादा खुशी है.
राज्य में कुछ उग्रवादी संगठनों से जुड़े गुट (उल्फा का एक कैडर, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के दो दल) कई सालों से सरकार के सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौते के चलते राज्य के कैंपों में रह रहे हैं. सरकार द्वारा कोई स्थायी समाधान न निकले जाने को लेकर उनमें रोष और निराशा है. वे उनका स्टायपेंड बढ़ाए जाने की भी मांग कर रहे हैं, कुछ का यह भी कहना है कि उन्हें नियमित स्टायपेंड नहीं मिल रहा है.
हां, मार्च में ही मैंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उनका स्टायपेंड बढ़ाए जाने की बात की थी. (सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन के तहत उन्हें 3,000 रुपये/मासिक स्टायपेंड मिलता है.) हालांकि अब हम किसी स्थायी समाधान के बारे में सोच रहे हैं.
हम उन्हें केंद्र सरकार के कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ने की सोच रहे हैं. यह बाकी उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए एक मिसाल की तरह होगा. (मणिपुर और नगालैंड में भी ऐसे संगठनों के कई कैंप हैं)
24 अप्रैल को नई दिल्ली में मेरी इस बारे में केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता राज्यमंत्री राजीव प्रताप रूडी से चर्चा भी हुई है कि इन कैंपों में रहने वाले कैडर सहित युवाओं को किस तरह रोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है. हम असम में एक कौशल विकास विभाग ला रहे हैं, जिससे प्रतिवर्ष करीब डेढ़ लाख युवाओं को कौशल सिखाने की योजना है.
हर इंसान इज्ज़त की ज़िंदगी जीना चाहता है; इन कैंपों में रहने वाले भी. यही वजह है कि अब हम उन्हें इज्ज़त की ज़िंदगी देने के तरीकों पर काम कर रहे हैं. हमने इस पर काम भी शुरू कर दिया है.
पिछले महीने से इनमें से एक कैडर के एक बैच को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसे अब राज्य के नए कौशल विकास विभाग के तहत औपचारिक रूप दिया जाएगा.
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) अपडेशन के लिए समयसीमा दिसंबर 2017 तय की गई है, पर इस वक़्त सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित असम फॉरेन ट्रिब्यूनल द्वारा बहुत-से विदेशी राज्य के विभिन्न हिस्सों में बने डिटेंशन कैंपों में रह रहे हैं. एनआरसी अपडेशन के बाद ऐसे लोगों के बारे में सरकार ने क्या सोचा है? इन लोगों को वर्क परमिट दिए जाने की बात भी सुनी जा रही है. मोदी सरकार के वर्तमान बांग्लादेश सरकार से दोस्ताना संबंध हैं. क्या वर्क परमिट देना कोई व्यावहारिक समाधान है?
देखिए, विदेशी घोषित किए गए नागरिकों के लिए हमारे पास पहले से ही क़ानून मौजूद है. मैं एनआरसी अपडेशन को एक ऐसी प्रक्रिया की तरह देखता हूं, जिससे बाकियों के सामने एक मिसाल क़ायम होगी. किसी और राज्य को यह मौका नहीं मिला है. लेकिन यह मौका जितना क़ानून को परखने का है, उतना ही हमारे अपने नागरिकों की उम्मीदों का सम्मान करने का भी.
हमें इस अवसर के लिए सतर्क रहना होगा क्योंकि हो सकता है कि ऐसा मौका दोबारा न आए. हमें यह भी याद रखना होगा कि यह लोगों से जुड़ा मसला है. कुछ समस्याओं के लिए वर्क परमिट को समाधान के बतौर देखा जा रहा है. कुछ और संभावनाएं भी हैं. बांग्लादेश के रूप में हमारे पास एक दोस्ताना पड़ोसी भी है. असम के मुख्यमंत्री के रूप में, मैं निश्चित रूप से यह चाहता हूं कि पड़ोसी देश से अच्छे संबंध बने.
राज्य में केंद्र सरकार के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2016 का खासा विरोध हुआ है. इसका हल क्या है?
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) जैसी कुछ संस्थाएं हैं, जिन्होंने इस बारे में अपना संदेह ज़ाहिर किया है लेकिन यह केवल असम का मुद्दा नहीं है. यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है. अगर किसी धार्मिक अत्याचार के चलते वे (प्रवासी) हमारे देश में आए हैं, तो हमें उनका स्वागत करना होगा. हिंदू होने के कारण वे और कहां जा सकते थे? लेकिन हमने यह भी कहा है कि इसकी ज़िम्मेदारी पूरे देश को मिलकर उठानी होगी.
असम-बांग्लादेश सीमा पर हो रही तारबंदी कहां तक पहुंची है?
ये काम युद्ध स्तर पर चल रहा है. प्रधानमंत्री तारबंदी पूरी करवाने को लेकर दृढ़ हैं. यह उनकी सरकार द्वारा पूर्वोत्तर में शुरू करवाई गई पहली योजनाओं में से एक है. सीमा का लगभग 44 किलोमीटर तक का हिस्सा नदी से लगा हुआ है, जहां ज़ाहिर है आप बाड़ नहीं लगा सकते. इसके चलते केंद्र सरकार को नए तरीके तलाशने पड़े हैं. सरकार यह भी सोच रही है कि वहां कंक्रीट का एक प्लेटफ़ॉर्म बनवा कर वहां सुरक्षा चौकी बनवा दी जाए.
भाजपा ने असम विधानसभा चुनाव से पहले 6 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा देने का वादा किया था, वो कब पूरा होगा?
हम इसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. 24 अप्रैल को इन समुदायों के प्रतिनिधि नई दिल्ली में गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू से भी मिले थे. यहां असम सरकार का प्रतिनिधित्व संसदीय कार्य मंत्री चन्द्रमोहन पटवारी ने किया था. मैंने भी 25 तारीख को उनसे मिलकर उन्हें अपनी पार्टी के वादे के प्रति आश्वस्त किया.
केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए एक समिति का गठन भी कर दिया गया, जो जून में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. हालांकि कई अन्य प्रदेशों में भी कुछ समुदाय भी अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग कर रहे हैं, ऐसे में यह काफ़ी नाज़ुक मसला बन जाता है, इसलिए ज़्यादा सावधानी के कारण इसमें वक़्त लग रहा है पर हम अपना वादा निभाएंगे.
असम पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार माना जाता है. पूर्वोत्तर के बाकी राज्य इससे परिवार के मुखिया जैसी उम्मीद रखते हैं. ऐसे प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते पूर्वोत्तर के लिए आप क्या सोचते हैं?
सामान्य रूप से सभी पूर्वोत्तर को ‘डिस्टर्ब्ड’ या अशांत क्षेत्र मानते हैं. अब वक़्त आ गया है कि ये नज़रिया बदला जाए. मुझे यह भी लगता है कि बहुत कुछ इस नज़रिये पर भी निर्भर करता है. पूर्वोत्तर के एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते मेरी ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं इस नज़रिये को बदलने का प्रयास करूं.
इसके लिए हमने अपने पहले बजट में गुवाहाटी शहर के बीचोंबीच एक वैश्विक बिज़नेस सेंटर बनाने के लिए अलग से फंड रखा है. यहां दो इमारतें होंगी जहां राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बिज़नेस लीडर आकर यहां काम कर सकेंगे. बहुत से बड़े कॉरपोरेट घराने अभी इस क्षेत्र की बिज़नेस क्षमताओं को नहीं समझते.
अगले साल जनवरी में हम गुवाहाटी में एक ग्लोबल बिज़नेस सम्मलेन करने वाले हैं. मैं चाहता हूं कि यह देश की तरक्की का नया ज़रिया बनें. ऐसा होने से पूर्वोत्तर के राज्यों पर प्रभाव पड़ेगा ही.
वैसे भी केंद्र सरकार ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पर काम करने के लिए काफ़ी उत्सुक है, इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर- यानी इस हिस्से को दक्षिण एशिया से जोड़ने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग पर काम हो ही रहा है.
यही कारण है कि मैं इस क्षेत्र का उज्जवल भविष्य देख पाता हूं. हालांकि इसके लिए हमें कुशल लोगों की ज़रूरत होगी, जिसके लिए हम केंद्र के कौशल विकास अभियान पर काम कर रहे हैं.
केंद्र और असम सरकार ने हाल ही में ब्रह्मपुत्र की सालाना बाढ़ से निपटने के लिए ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के साथ क़रार किया है. ऐसा कहा जा रहा है कि नदी से निकाली गई गाद को एक्सप्रेस वे बनाने में इस्तेमाल किया जाएगा. आपने कुछ समय पहले नदी के नियंत्रण के लिए चीन से भी मदद मांगी थी. क्या इस क़रार में चीन भी शामिल है?
कभी चीन की नदी ह्वांग हो उनका सिरदर्द बनी हुई थी, पर विशेषज्ञों की मदद से उन्होंने इसे एक बहुपयोगी संसाधन में बदल लिया है. हम वैसा ही ब्रह्मपुत्र के साथ भी चाहते हैं. हमने उन विशेषज्ञों से मिलने के लिए एक टीम को चीन भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन से हुए समझौते की मदद से हम नदी की गहराई बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जिससे मानसून में ज़्यादा से ज़्यादा पानी जमा हो सके और उसमें आवागमन को संभव बनाया जा सके.
एक बार यह काम पूरा हो गया तो असम के सदिया से बांग्लादेश के चटगांव पोर्ट और पश्चिम बंगाल के हल्दिया पोर्ट जुड़ जाएंगे. एक बार आप बंगाल की खाड़ी में पहुंचे तो आप समंदर के रास्ते दुनियाभर में कहीं भी जा सकते हैं. इससे दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार को भी बल मिलेगा.
हां, नदी से निकली गाद को पूर्वी असम के सदिया से पश्चिमी असम के धुब्री के बीच बनने वाले एक्सप्रेस वे में इस्तेमाल किया जाएगा. इससे कनेक्टिविटी तो बढ़ेगी ही, साथ ही नदी का काटन भी रोका जा सकेगा.
आपकी सरकार ने हाल ही में ब्रह्मपुत्र के नाम पर नमामि ब्रह्मपुत्र उत्सव आयोजित किया था, जिसको लेकर कुछ विवाद भी हुआ था.
इस आयोजन के पीछे विचार था कि नदी को लेकर आम नज़रिया बदले. ब्रह्मपुत्र को सिर्फ इस नज़र से देखा जा रहा है कि इसकी वजह से हर साल सिर्फ बाढ़ आती है, लोगों का बहुत नुकसान होता है. पर ये वह नदी भी है जो हमारी संस्कृति से जुड़ी है; इससे पानी मिलता है, रेत और गाद मिलते हैं, जो ज़रूरी संसाधन हैं. इसके अलावा यह संचार का माध्यम तो है ही. इस ड्रेजिंग प्रोजेक्ट और आयोजन के ज़रिये हम बस नदी के इस पहलू को सामने लाने की कोशिश कर रहे थे.
बीते दिनों जोरहाट में एक नाबालिग सहित तीन लोगों को पुलिस हिरासत में लिया गया क्योंकि उन पर आरोप था कि उन्होंने बीफ (गोमांस) पकाकर धार्मिक भावनाओं को आहत किया है. पर असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950 के तहत बीफ रखना या खाना अपराध नहीं है.
मेरी सरकार सिर्फ क़ानून के मुताबिक चलेगी. प्रधानमंत्री बार-बार सबका साथ सबका विकास की बात कहते हैं. वे कहते हैं कि हमारी विविधता ही हमारी ताकत है. मैं भी यह मानता हूं. 16वीं सदी में हुए असम के महान वैष्णव नेता गुरुजन श्रीमंत शंकरदेव भी यही कहते थे. उनका कहना था कि एक धागे को तोड़ना आसान है, कईयों को नहीं.
हम ‘बोर अक्सोम’ (सम्पूर्ण असम) की धारणा में विश्वास करते हैं, विभिन्न जातियों, जनजातियों, विभिन्न धर्मों को मानने वाले, जो साथ रह रहे हैं, वे सब असमिया हैं. अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां आकर बसे और असम को अपना घर बनाया. भूपेन हजारिका और हेमांग बिस्वास भी इस कॉन्सेप्ट की बात किया करते थे. जो कोई भी असम को अपना घर या कर्मभूमि कहते हैं, वे सब असमिया हैं.
अपने शासन के ज़रिये मैं विभिन्न जातियों या धार्मिक विश्वास से आने वाले लोगों को समान अवसर और न्याय देना चाहता हूं. मैं हर व्यक्ति को साथ लेकर चलना चाहता हूं, चाहे वे ब्रह्मपुत्र से आते हों या बराक घाटी से. प्रधानमंत्री मोदी हमेशा देश के 125 करोड़ भारतीयों को साथ लेकर चलने की बात करते हैं. मुझे भी सबके बारे में सोचना होगा और मैं क़ानून का रास्ता ही लूंगा.
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