शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी का कहना है कि मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय होने के बावजूद मेईतेई लोगों पर अवैध प्रवासियों के आने की वजह से विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है.
इम्फाल: मणिपुर की राजधानी इम्फाल में मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग को लेकर बीते रविवार को हज़ारों की संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी (एसटीडीसी) द्वारा आयोजित रैली में कई नेताओं, छात्रों और नागरिक संगठनों के सदस्यों ने हिस्सा लिया.
एसटीडीसी मेईतेई समुदाय को सामान्य श्रेणी से अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर 2014 से आंदोलन कर रहा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की कुल आबादी 28 लाख से अधिक है, जिसका 40 फीसदी सामान्य मेईतेई हैं.
एसटीडीसी का कहना है कि सबसे बड़ा समुदाय होने के बावजूद मेईतेई पर अवैध प्रवासियों के आने की वजह से संवैधानिक सुरक्षा के बिना विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, यह रैली इम्फाल पश्चिम ज़िले के थाउ ग्राउंड से शुरू हुई और हापटा कांगजेइबंग में ख़त्म हुई. इसमें नौ मार्च से सर्वसम्मति से 36 घंटे की हड़ताल का आह्वान किया गया.
संगठन की मांग है कि अगर अनुसूचित जाति में मेईतेई समुदाय को शामिल करने को लेकर केंद्र को सिफारिश भेजने में राज्य की एन. बीरेन सिंह सरकार असफल रहती है तो नौ मार्च की शाम से 36 घंटे की हड़ताल की जाएगी.
एसटीडीसी के संयोजक रोमेश मेईतेई ने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुसार स्वदेशी लोगों को अनुसूचित जनजाति समझा जाता है. मेईतेई स्वदेशी लोग हैं, हमारी मांग है कि हमें अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाए.’
कमेटी का कहना है कि अनुसूचित जाति में मेईतेई को तुरंत शामिल करने की ज़रूरत को लेकर राज्य सरकार को तैयार करने के कई प्रयासों के बावजूद वे मांग को पूरा करने में नाकाम रहे हैं. इसमें समुदाय की दशा की ओर सरकार की लापरवाही का पता चलता है.
प्रदर्शन में शामिल सेवानिवृत्त आईएएस आरके निमई ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि पूर्वोत्तर के छह समुदायों (कूच राजबोंगशी, मोरान, मटाट, तई अहोम, कुटिया और आदिवासी) को हाल ही में अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया है.
आरके निमई ने कहा, ‘पूर्वोत्तर में सभी लोगों के बीच मेईतेई ही एकमात्र है, जिसे अनुसूचित जाति की सूची से बाहर रखा गया है.’
उन्होंने कहा कि मेईतेई बहुत अधिक चिंतित हैं कि मणिपुर के छह घाटी ज़िले, जिनका जनसंख्या घनत्व 730 है, जबकि पूरे राज्य का जनसंख्या घनत्व 138 है.
उन्होंने कहा, ‘पहाड़ी क्षेत्रों में गैर आदिवासी ज़मीन नहीं ख़रीद सकते. इसलिए कोई भी समूह या प्रवासी सिर्फ घाटी के ज़िलों में ही बसेगा. यदि इस पर नज़र नहीं रखी जाए तो यह नियंत्रण के बाहर हो जाएगा. अगर हम ज़मीन की सुरक्षा नहीं करते हैं तो यहां आर्थिक तौर पर हाशिये पर पहुंचे लोग, अपनी ही ज़मीन पर शरणार्थी हो जाएंगे. इसलिए हमें संवैधानिक सुरक्षा की ज़रूरत है.’