सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट से भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में उनके ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की उस याचिका पर आठ सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा जिसमें 2017 के कोरेगांव-भीमा मामले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ दायर महाराष्ट्र सरकार की दो अपीलों को लंबित रखा है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट नवलखा की लंबित याचिका पर आठ सप्ताह में फैसला दे.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता निशांत आर. कटनेश्वरकर ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अक्टूबर 2018 को नवलखा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उनकी ट्रांजिट रिमांड आदेश को खारिज कर दिया था.
उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति अदालत के आदेश पर कानूनी हिरासत में होता है तो हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार नहीं होता.
पीठ ने केस डायरी पेश करने की बात पर सहमति जताई और राज्य सरकार के वकील से इस मामले में प्राथमिकी रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में नवलखा की याचिका की स्थिति के बारे में पूछा.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कटनेश्वर ने कहा कि यह हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी और इसलिए उन्होंने याचिका को रद्द करने के लिए दूसरी अपील की थी.
पीठ ने कहा कि वे राज्य सरकार की दोनों अपीलों को लंबित कर रहे हैं और बॉम्बे हाईकोर्ट को आठ सप्ताह के भीतर नवलखा की याचिका पर विचार करने का आग्रह कर रहे हैं.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर 2017 को हुए एलगार परिषद के सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में पिछले साल 28 अगस्त को नवलखा सहित पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था.
आरोप है कि इस सम्मेलन के बाद भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी. इन पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं में नवलखा के अलावा तेलुगू कवि वरवरा राव, अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस, कार्यकर्ता और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)