मोदी के राष्ट्रवाद से भारतीय पत्रकारिता ख़तरे में: रिपोर्ट

प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है.

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प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है.

India Press Freedom
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से जारी अध्ययन का स्क्रीनशॉट

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरडब्ल्यूबी) द्वारा ‘मोदी के राष्ट्रवाद से ख़तरा’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुत्ववादियों द्वारा ‘देशद्रोह’ की बहस के चलते मुख्यधारा के मीडिया में सेल्फ-सेंसरशिप बढ़ रही है.

इनके द्वारा चलाए जा रहे ऑनलाइन अभियानों का सबसे बड़ा शिकार पत्रकार ही बन रहे हैं. यहां न केवल उन्हें गालियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि शारीरिक हिंसा की धमकियां भी मिलती रहती हैं.

कई बार सरकार के प्रति ज़्यादा आलोचनात्मक रवैया रखने वाले पत्रकारों को चुप कराने के लिए आईपीसी की धारा 124ए का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसके तहत ‘राजद्रोह’ के लिए उम्रक़ैद की सज़ा दी जाती है.

हालांकि अब तक किसी भी पत्रकार को ‘राजद्रोह’ का दोषी नहीं ठहराया गया है पर इससे सेल्फ-सेंसरशिप को तो बढ़ावा मिल रहा है. वहीं सरकार ने विदेश से मिलने वाली फंडिंग पर भी नियम कड़े किए हैं, ताकि वैश्विक स्तर पर भारतीय मीडिया को कम से कम प्रभावित किया जा सके.

Modi and Media PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर जैसे क्षेत्र जिन्हें प्रशासन संवेदनशील समझता है, वहां की कवरेज करना आज भी मुश्किल है. यहां पत्रकारों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं है.

जुलाई 2016 में कश्मीर में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन के पहले दिन ही सेना द्वारा यहां इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. यहां अक्सर इंटरनेट सेवा पर लगाम लगाया जाता रहा है ताकि प्रदर्शनकारियों की आपस में बातचीत न हो सके.

ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि मीडिया, स्थानीय पत्रकारों और सिटीजन जर्नलिस्ट आदि को रिपोर्ट करने से रोका जा सके. स्थानीय मीडिया संस्थानों के लिए काम कर रहे पत्रकार अक्सर सैनिकों की हिंसा का शिकार बनते हैं, जिसके लिए उन्हें केंद्र सरकार की मौन सहमति मिली रहती है.

Press Index 13साल 2017 की इस सूची में पाकिस्तान भारत से तीन पायदान (139वां स्थान) नीचे है. पिछले साल की सूची में भारत 133वें स्थान पर था. सूची में नॉवे सबसे ऊपर है जबकि सबसे आख़िरी पायदान पर उत्तर कोरिया को जगह दी गई है. गैर सरकारी संगठन आरडब्ल्यूबी ने प्रेस और इस क्षेत्र में काम करने वालों पर हो रहे हमले, सरकार की तरफ से दबाव और वरिष्ठ पत्रकारों से राय लेकर इस सूची को तैयार किया है.

इस सूची में एशियाई देशों को बहुत ही ख़राब रैंकिंग मिली हुई है. भारत का पड़ोसी मुल्क़ बांग्लादेश को 146वां स्थान हासिल हुआ है, जबकि पाकिस्तान 139वें स्थान पर है. चीन इस सूची में 176वें स्थान पर है.

इसी तरह एशिया के अन्य देशों में श्रीलंका 141वें, अफ़गानिस्तान 120वें, सऊदी अरब 168वें, ईरान 165वें और म्यांमार 131वें स्थान पर है. नेपाल इस सूची में 100वें, भूटान 84वें स्थान पर है, वहीं ताइवान को 45वां स्थान मिला है.

ब्रिक देशों की बात करें तो पांच देशों के इस संगठन में दक्षिण अफ्रीका सबसे आगे है. दक्षिण अफ्रीका इस सूची में 31वें स्थान पर है. इसके बाद ब्राजील 103वें, भारत 136वें, रूस 148वें और चीन 176वें स्थान पर है.

इस सूची में यूरोपीय देशों की स्थिति ठीक है. स्वीडन इस सूची में दूसरे नंबर और फिनलैंड तीसरे नंबर पर है. आॅस्ट्रिया 11वें, जर्मनी 16वें स्थान पर है.

कैरिबियन देशों में कोस्टा रिका छठे तो जमैका 8वें स्थान पर है. भारतीय मूल की बड़ी आबादी वाला देश सूरीनाम 20वें स्थान पर है. त्रिनिदाद और टोबैगो 34वें स्थान पर है.

इस सूची में अमेरिका 43वें और कनाडा 22वें पायदान पर है. अमेरिका का पड़ोसी देश मैक्सिको 147वें स्थान पर है.

यूक्रेन को इस सूची में 102वां स्थान मिला है. न्यूज़ीलैंड 13वें और ऑस्ट्रेलिया 19वें स्थान पर है. जापान 72वें और दक्षिण कोरिया 63वें स्थान पर है. अफ्रीकी महाद्वीप में घाना 26वें स्थान पर है तो सोमालिया का 167वां स्थान है.

Press Index

इटली इस सूची में 52वें स्थान पर है. पिछले साल इटली 77वें स्थान पर है. न्यूज़ीलैंड पिछली बार 5वें स्थान पर था, इस बार वह 13वें स्थान पर है.

आरडब्ल्यूबी की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया की स्वतंत्रता पर विश्व के कई देश लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि मीडिया पर हमलों की घटनाओं में काफी इज़ाफा हुआ है.

इस रैंकिंग को तय करने के लिए यह भी देखा गया कि उस देश की मीडिया में विचारों को कितनी जगह मिलती है. सेल्फ-सेंसरशिप पर भी विशेष ध्यान दिया गया है.

रिपोर्ट बनाते समय हर देश के मीडिया को लेकर वहां की सरकार के कानूनों का भी अध्ययन किया गया है. पारदर्शिता के साथ-साथ ख़बरें जुटाने के लिए संसाधनों का भी अध्ययन किया गया है.

आरडब्ल्यूबी विश्व स्तर पर पत्रकारों का गैर सरकारी संगठन है. विश्व के 150 देशों के पत्रकार इस संस्था से जुड़े हुए हैं. प्रेस की स्वतंत्रता के साथ पत्रकारों की सुरक्षा पर यह संस्था विशेष रूप से काम करती है.