आंध्र प्रदेश की इन आठ सीटों पर मुद्दे कई, लेकिन चुनावी मुद्दा केवल जाति

ग्राउंड रिपोर्ट: रायलसीमा तिरुपति, कडपा, राजमपेट, अनंतपुर, हिंदूपुर, नांदयाल, कुरनूल और चित्तूर में भूमिगत जल खारा हो चुका है. बेरोज़गारी बढ़ रही है. पलायन शुरू हो चुका है, लेकिन इन आठ सीटों पर अहम की लड़ाई ने चुनाव को जाति पर ही केंद्रित कर दिया है. अमित कुमार निरंजन की रिपोर्ट.

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ग्राउंड रिपोर्ट: रायलसीमा तिरुपति, कडपा, राजमपेट, अनंतपुर, हिंदूपुर, नांदयाल, कुरनूल और चित्तूर में भूमिगत जल खारा हो चुका है. बेरोज़गारी बढ़ रही है. पलायन शुरू हो चुका है, लेकिन इन आठ सीटों पर अहम की लड़ाई ने चुनाव को जाति पर ही केंद्रित कर दिया है. अमित कुमार निरंजन की रिपोर्ट.

Andhra Pradesh Collage PTI FB
वायएसआर अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी और मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (फोटो: फेसबुक/पीटीआई)

तिरुपति से रायलसीमा की सरहद में पहुंचते ही सूखे की आहट मिलने लगती है. सूखे की भयावहता तिरुपति से 150 किमी दूर राजमपेट इलाके की चेयेरू नदी खुद बयां कर रही थी. रायलसीमा के दो तिहाई इलाके की प्यास बुझाने वाली नदी में एक बूंद पानी नहीं है.

सिर चढ़ते सूरज और 43 डिग्री की गर्मी ने इस सूखे को और डरावना बना दिया है. पूरे रायलसीमा तिरुपति, कडपा, राजमपेट, अनंतपुर, हिंदूपुर, नांदयाल, कुरनूल और चित्तूर में भूमिगत जल खारा हो चुका है. खेत सूखे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. पलायन शुरू हो चुका है.

तमाम परेशानियों के बावजूद रायलसीमा की इन आठ सीटों पर पानी सबसे बड़ा मुद्दा तो है लेकिन अहम की लड़ाई ने चुनाव को जाति पर ही केंद्रित कर दिया है.

सरकार की एंटी इंकबेंसी और अधिकांश क्षेत्रों में वाईएसआर की पकड़ मजबूत होने के कारण रायलसीमा में मुकाबला एक तरफा है. रायलसीमा क्षेत्र में अनंतपुर, चित्तूर, कडपा और कुरनूल जिले आते हैं.

तिरुपति शहर बालाजी की वजह से देशभर के श्रद्धालुओं को खींचने में तो कामयाब है, लेकिन बाशिंदों की प्यास बुझाने में असफल रहा है. एस श्रीधर का घर सड़क किनारे वेणुगोपालपुरम इलाके में है.

करीब 50 मीटर लंबी गली में 30 घरों के लिए बाहर सिर्फ एक नल लगा है. श्रीधर ने बताया कि पिछले साल तीन दिन में एक बार पानी आया था. हमें तो टैंकराें पर जीना पड़ रहा है.

पिछली बार यह सीट वाईएसआर ने जीती थी. यहां क्षेत्रीय मुद्दा बेरोजगारी का है. यहां निर्णायक 30% बालिजार कापू वोट हैं. 25% ओबीसी और 15-15% दलित-रेड्‌डी वोट भी अपना असर रखते हैं. पानी को लेकर सरकार से नाराज़गी दिखती है. ऐसे में वाईएसआर यहां बाजी मार सकती है.

वहां से 40 किमी आगे राजमपेट की ओर बढ़ने पर 108 फीट ऊंची अनामाया भगवान की मूर्ति नज़र आती है. करीब एक एकड़ परिसर में बनी ये मूर्ति इस परिसर के सूखेपन को देखकर विचलित नजर आती है.

कडपा और राजमपेट, दोनों ही सीट वाईएसआर का गढ़ मानी जाती हैं. कडपा से वाईएसआर प्रमुख जगन माेहन रेड्‌डी का परिवार जीतता रहा है. इन दोनों ही लोकसभा सीटों पर रेड्‌डी (25%), एससी (30%) और मुस्लिम वोट (20%) असरदार दिखते हैं.

तीनों ही वर्ग वाईएसआर से सीधे तौर पर जुड़े माने जाते हैं. पिछली बार भी वाईएसआर ने ये दोनों सीटें जीती थीं. इस बार भी उसकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है.

डेढ़ किमी की दूरी पर अनंतपुर में आंध्र ज्योति अखबार के ब्यूरो चीफ सुब्बा रायडू ने जातियों के समीकरण खोलने शुरू किए. बोले-डेढ़ दशक पहले संघर्ष में 50 से ज्यादा स्थानीय नेताओं की हत्या हो चुकी है.

लड़ाई की शुरुआत कई बार पानी से जुड़ी छोटी घटना से होती थी जो बाद में खून-खराबे तक पहुंच जाती. अनंतपुर टीडीपी का मजबूत गढ़ है. इस बार माहौल थोड़ा अलग है.

लाेग कहते हैं- टीडीपी सांसद दिवाकर रेड्‌डी साढ़े चार साल तो जनता से कटे रहे. सिर्फ टीवी पर ही दिखे. इस बार टीडीपी और वाईएसआर में कड़ा मुकाबला दिखता है.

जातियों के असर की बात करें तो 30% पद्मशाली और 25% रेड्‌डी वोट सबसे असरदार दिखते हैं.

नांदयाल सीट की बात करें तो आदिगुरु शंकराचार्य के मठों से एक मठ यहां भी है. यह वाईएसआर की सीट मानी जाती है. पिछले चुनाव में यहां एसपीवाय रेड्डी जीते थे. वे 2004, 2009 में कांग्रेस के टिकट से जीते थे.

रेड्‌डी समुदाय की इलाके में पकड़ होने के कारण और अब रेड्‌डी के वाईएसआर से जुड़े होने के कारण उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है. यहां रेड्‌डी वोट की संख्या करीब 20 फीसदी है.

कुरनूल की हवा बदलाव वाली है. पिछली बार यहां वाईएसआर की बुट्‌टा रेनुका जीती थीं. इन्होंने आठ माह पहले टीडीपी जॉइन कर ली थी.

हालांकि, हवा का रुख भांपते हुए फिर से वाईएसआर में लौट आईं. यहां भी रेड्‌डी फैक्टर होने की वजह से वाईएसआर और टीडीपी के बीच टफ फाइट हो सकती है.

सबसे अहम सीट- चित्तूर

ये चंद्रबाबू नायडू का क्षेत्र है. यानी टीडीपी का गढ़. 1996 से यह सीट टीडीपी के पास ही है. यहां 20% नायडू वोट सबसे असरदार हैं. गढ़ होने के बावजूद इस बार यहां लोगों की नायडू से नाराजगी दिखती है.

एंटी इंकबेंसी के चलते वाईएसआर से कड़ी लड़ाई हो सकती है.  साढ़े पांच सौ किमी के रायलसीमा के सफर का आखिरी पड़ाव था हिंदूपुर. कर्नाटक से सटा हुआ इलाका.

यहां के निवासी बी रमेश बताते हैं यहां पलायन तेजी से हाे रहा है. ये सरकार के लिए अलार्म है. वहीं यहां शहर में पानी माफिया एक्टिव है. यह एक प्रमुख मुद्दा है.

यह सीट टीडीपी का पुराना गढ़ है. इस बार यहां की विधानसभा सीट से एनटीआर के बेटे बालकृष्ण चुनाव लड़ रहे हैं. असर लोकसभा चुनाव पर भी दिखेगा. माना जा रहा है ऐसे में टीडीपी को फायदा हो सकता है.

2014 की स्थिति:

सीट विजयी पार्टी
अनंतपुर टीडीपी
तिरुपति वाईएसआर
कडपा वाईएसआर
राजमपेट वाईएसआर
हिंदूपुर टीडीपी
नांदयाल वाईएसआर
कुरनुल वाईएसआर
चित्तूर टीडीपी

सबसे बड़ा फैक्टर क्या रहेगा?

जाति: 25% कापू, 25% ओबीसी निर्णायक वोटर

यहां सबसे निर्णायक वोट कापू है. 25% इस वोटर का फैसला इन आठ सीटों पर सुना जाएगा. माना जा रहा है यह वोट जनसेना की ओर डायवर्ट हो सकता है. इनके अलावा खम्म (5%), ओबीसी (25%) वोट टीडीपी से जुड़ा माना जाता है. 5% क्रिश्चियन, 10% रेड्‌डी, 15% दलित और 10% मुस्लिम वोटर वाईएसआर से जुड़े माने जाते हैं.

मुद्दा: पानी, बेरोजगारी, पलायन सबसे अहम

रायलसीमा में पानी सबसे बड़ा मुद्दा है, पीने और खेती के लिए पानी की किल्लत है. इस कारण रोजगार, पलायन का मुद्दा भी बना हुआ है. इसके लिए अलावा आंतरिक जातिगत संघर्ष भी खूब है. इसी वजह से पानी अहम मुद्दा होने के बाद भी वोट जाति के आधार पर ही डाले जाएंगे. इसके अलावा एंटीइंकबेंसी तो पूरे क्षेत्र है.

जाति: जनसेना की वजह से मुकाबला बहुकोणीय

पिछली बार टीडीपी और भाजपा साथ थी, वायएसआर और कांग्रेस अलग. इस बार टीडीपी, कांग्रेस अलग लड़ रही है. बाद में गठबंधन कर सकते हैं. यही स्थिति वायएसआर और भाजपा की है. जनसेना, बीएसपी और सीपीआई का गठबंधन है, जो टीडीपी का वोट काटने का काम कर सकता है.

(दैनिक भास्कर से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)