केरल के कोझिकोड की मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी ने सर्कुलर जारी कर कहा कि महिलाओं का अपने चेहरे को ढकना इस्लामिक नहीं है. इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. इस आदेश का कुछ मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया है.
तिरुवनंतपुरमः केरल में एक मुस्लिम शैक्षणिक संगठन (एमईएस) ने अपने संस्थानों के परिसरों में किसी भी कपड़े से छात्राओं के चेहरा ढकने पर पाबंदी लगा दी है.
कोझिकोड की मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी ने एक सर्कुलर जारी करते हुए छात्राओं से अपील की है कि वे चेहरा ढकने वाला कोई भी कपड़ा पहनकर कक्षा में उपस्थित न हों.
इस मुस्लिम शैक्षणिक संगठन के तहत कई प्रोफेशनल कॉलेज और शिक्षण संस्थानों का संचालन होता है.
एमईएस के अध्यक्ष डॉ. पीए फज़ल गफूर ने कहा, ‘मौजूदा समय में एमईएस शैक्षणिक संथानों की कोई भी छात्रा अपना चेहरा ढककर कक्षाओं में नहीं आ रही हैं, हालांकि अभी यह सिर्फ प्रारंभिक कदम है.’
उन्होंने कहा कि इस संबंध में 17 अप्रैल को सर्कुलर जारी किया गया था और इसका 21 अप्रैल को श्रीलंका में हुए विस्फोटों के बाद वहां बुर्के पर लगे प्रतिबंध से कुछ लेना-देना नहीं है.
गफूर ने कहा, ‘महिलाओं का अपने चेहरे को ढकना इस्लामिक नहीं है. यह विदेश से चलन में आई एक नई संस्कृति है और इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. चेहरे को ढकने की प्रथा सांस्कृतिक आक्रमण है. अब यह पूरे केरल में फैल गया है.’
उन्होंने कहा कि यह निर्देश 2019-2020 शैक्षणिक वर्ष से लागू होगा. इस कदम को वापस लेने की मांग के बीच गफूर ने स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश जारी रहेगा.
उन्होंने कहा कि धार्मिक कट्टरपंथ के नाम पर थोपे जा रहे ड्रेस कोड को लागू करने के लिए एमईएस तैयार नहीं है.
हालांकि सर्कुलर में जारी किए गए ड्रेस कोड का रूढ़िवादी मुस्लिम संगठनों और विद्वानों ने विरोध किया है.
एमईएस की आलोचना करते हुए एक मुस्लिम रूढ़िवादी संगठन संस्था ने कहा कि यह सर्कुलर गैर इस्लामिक है और इसे वापस लेना चाहिए.
संस्था के एक सदस्य उमर फैज ने कहा, ‘इस्लामिक नियम के अनुसार महिलाओं के शरीर का कोई अंग नहीं दिखना चाहिए. एमईएस को कोई अधिकार नहीं है कि वह चेहरों को ढकने वाले कपड़े पर प्रतिबंध लगाए. इस्लामिक नियमों का पालन होना चाहिए.’
गौरतलब है कि श्रीलंका में ईस्टर संडे के मौके पर हुए विस्फोटों के बाद वहां की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को आधार बनाते हुए बुर्का और मास्क पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है.
शिवसेना ने श्रीलंका सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए मोदी सरकार से भी ऐसा फैसला लेने की अपील की थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)