पर्यावरण पर काम कर रहे इस संगठन के अनुसार स्वच्छता सर्वेक्षण में शीर्ष पर आए शहरों ने कचरा प्रबंधन के जिन तरीकों को अपनाया है, वे पर्यावरण के अनुकूल नहीं है.
पर्यावरण पर काम करने वाले संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) का कहना है कि केंद्र द्वारा स्वच्छ शहरों को चुने जाने की प्रक्रिया को बदलने की ज़रूरत है.
संगठन का कहना है कि हाल ही में जारी की गई इस सूची के तीन शीर्ष शहरों ने कचरा प्रबंधन के जिन तरीकों को अपनाया है वह लंबे समय तक पर्यावरण के अनुकूल नहीं है. यही नहीं, जो शहर पर्यावरण के अनुकूल कचरा प्रबंधन के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें स्वच्छता सूची में बहुत नीचे स्थान दिया गया है.
सीएसई का कहना है कि स्रोत से कचरा अलग करने और उसे पुन: इस्तेमाल में लाने जैसे पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छता सर्वेक्षण की कार्यप्रणाली को तुरंत बदलने की ज़रूरत है.
स्वच्छता सर्वेक्षण के शीर्ष तीन शहर- इंदौर, भोपाल और विशाखापत्तनम कचरे को उठाकर सीधे मलबा स्थल (लैंडफिल) पर ले जाते हैं. यानी ये शहर कचरे के निपटान के जिन तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं वह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है.
गौरतलब है कि हाल ही में स्वच्छता को लेकर आए सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश के इंदौर को देश का सबसे साफ शहर बताया गया है. इसके बाद मध्य प्रदेश के भोपाल, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम और गुजरात के सूरत का नंबर है.
सीएसई का दावा है कि ये शहर कचरे को इकट्ठा करने और उसे लैंडफिल में ले जाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, पर यहां कचरे को पुन: इस्तेमाल ने लाने लायक बनाने पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है. मतलब कि ये शहर म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्लू) रूल, 2016 का पालन भी नहीं कर रहे हैं.
इस नियम में साफ-साफ कहा गया है कि कचरे को घरेलू स्तर पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए – गीला, सूखा और घरेलू ख़तरनाक कचरा. साथ ही इसमें कहा गया है कि कचरे से ऊर्जा पैदा करने वाले संयंत्रों में मिश्रित कचरे को नहीं जलाना चाहिए. लैंडफिल कचरे के निपटान का अंतिम विकल्प होना चाहिए.
सीएसई ने कहा कि यह स्पष्ट है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में जिन राज्यों मध्य प्रदेश, गुजरात और आंध्र प्रदेश को उच्च रैकिंग दी गई है, वे कचरा प्रबंधन के इन मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं.
सर्वेक्षण के शीर्ष 50 शहरों में 31 इन तीन राज्यों से है. इन सभी 31 शहरों में कचरे को सीधे ऊर्जा संयंत्रों में भेजा जा रहा है या फिर डंपिंग के लिए लैंडफिल का उपयोग किया जा रहा है.
सीएसई के अनुसार, इसके विपरीत घरेलू स्तर पर कचरे को अलग करने वाले और इसके पुन: उपयोग के लिए काम करने वाले शहरों को सर्वेक्षण में खराब रैंकिंग दी गई है.
संगठन के अनुसार, केरल के अलाप्पुझा शहर में कचरा प्रबंधन के विकेंद्रीकृत मॉडल का इस्तेमाल होता है. उसे सर्वेक्षण में 380वां स्थान दिया गया है. इसी तरह गोवा में पणजी शहर 90वें स्थान पर है, जिसने कचरा प्रबंधन के लिए सबसे बेहतर नीति अपनाई है.
सीएसई के अनुसार, अलाप्पुझा और पणजी में कोई भी लैंडफिल साइट नहीं है. साथ ही इन शहरों में कचरे से ऊर्जा पैदा करने वाले संयंत्र भी नहीं लगे हैं. इन शहरों के ज्यादातर कचरे का इस्तेमाल कम्पोस्ट खाद या फिर बायोगैस बनाने में होता है. इसके अलावा प्लास्टिक, धातु और पेपर आदि को रिसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है.
संगठन के अनुसार, ये शहर कचरे से पैसा बना रहे हैं जबकि दूसरे शहर कचरे को इकट्ठा करने और लैंडफिल तक ले जाने के लिए करोड़ो रुपये खर्च कर रहे हैं, फिर भी इन शहरों को स्वच्छता सर्वेक्षण में बहुत नीचे स्थान दिया गया है.
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)