चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 4 मई से ही चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली सभी बैठकों से खुद को अलग कर लिया है. उन्होंने कहा है कि वे चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली बैठकों में तभी शामिल होंगे जब अलग मत वाले और असंतोष जताने वाले फैसलों को भी आयोग के आदेशों में शामिल किया जाएगा.
नई दिल्ली: केंद्रीय चुनाव आयोग की तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य अशोक लवासा आयोग के फैसलों में अलग मत और असंतोष जताने वाले फैसलों को शामिल नहीं किए जाने से नाराज हैं. अपनी इस नाराजगी के कारण लवासा ने 4 मई से ही चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली सभी बैठकों से खुद को अलग कर लिया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने जोर देकर कहा है कि वे चुनाव आचार संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने वाली सभी बैठकों में केवल तभी शामिल होंगे जब अलग मत रखने वाले और असंतोष जताने वाले फैसलों को भी आयोग के आदेशों में शामिल किया जाएगा.
बता दें कि चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को क्लीनचिट देने वाले आयोग के कई फैसलों पर असंतोष जताते हुए लवासा ने अलग राय रखी थी. कई मामलों में वे चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को नोटिस भेजा जाए.
बता दें कि अशोक लवासा के अलावा चुनाव आयोग के दो अन्य सदस्य मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा हैं.
लवासा ने 1 अप्रैल को महाराष्ट्र के वर्धा और 6 अप्रैल को नांदेड़ में दिए गए मोदी के भाषण को क्लीनचिट दिए जाने का विरोध किया था. इसके साथ ही 9 अप्रैल को लातुर और चित्रदुर्ग में बालाकोट हवाई हमला और पुलवामा हमले का उल्लेख करते हुए पहली बार वोट देने वालों से की गई अपील को भी क्लीनचिट देने का विरोध किया था.
उन्होंने 9 अप्रैल को नागपुर में दिए गए शाह के भाषण को भी क्लीनचिट देने पर अपने सहयोगियों से असहमति जताई थी. इस भाषण में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की दूसरी सीट की तुलना पाकिस्तान से की थी. इन सभी मामलों का फैसला 2-1 के बहुमत से हुआ था.
इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र के अनुसार, इसी कारण 4 मई से चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में चर्चा करने के लिए आयोग ने कोई बैठक नहीं की है. दरअसल, 3 मई की आयोग की पूर्ण बैठक में मोदी और शाह को चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के सभी मामलों में क्लीनचिट देने के चुनाव आयोग के फैसले की काफी आलोचना हुई थी.
यह जानकारी उस रिपोर्ट के बाद आई है जिसमें सामने आया था कि लवासा कई मामलों में आयोग के फैसलों से असंतुष्ट थे, इसके बावजूद आयोग द्वारा जारी आदेश में उनकी असहमति को दर्ज नहीं किया गया था. वहीं आयोग ने ये आदेश कांग्रेस नेता सुष्मिता देव द्वारा शाह और मोदी की आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों पर चुनाव आयोग द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के दौरान दिए थे.
सूत्र के अनुसार, 4 मई तक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त को कई रिमाइंडर भेजे थे जिसमें उन्होंने अंतिम आदेश में अलग मत और असंतोष जताने वाले फैसले को शामिल करनी की मांग की थी. अधिकारी ने बताया कि तब से ही चुनाव आयोग ने आचार संहिता उल्लंघन को लेकर कोई आदेश पास नहीं किया है. हालांकि इस दौरान आचार संहिता उल्लंघन करने वालों से उसने जवाब मांगे हैं.
सूत्र ने कहा, इससे पहले आयुक्त ने यह पूछा था कि उनकी असहमति वाले मत को आयोग द्वारा अंतिम फैसले में शामिल क्यों नहीं किया गया. वहीं इस मामले में भेजे गए मेसेज का मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कोई जवाब नहीं दिया.
फिलहाल आयोग के पास चुनाव आचार संहिता के कई मामले लंबित पड़े हैं. लवासा की अनुपस्थिति में आयोग के बैठक करने के सवाल पर अधिकारी ने कहा कि नियमों के तहत आयोग को आदेश पास करने के लिए बहुमत की आवश्यकता होती है इसलिए उनकी अनुपस्थिति में फैसला लिया जा सकता है.
इससे पहले हिंदुस्तान टाइम्स की 6 मई की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग ने अपने अंतिम फैसले में असहमति वाले मत को नहीं शामिल करने के फैसले का इस आधार पर बचाव किया था कि चूंकि उल्लंघन पर लिया गया फैसला एक अर्ध-न्यायिक निर्णय नहीं था, इसलिए असंतोष दर्ज नहीं किया गया था.
हालांकि, एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस तरह की असहमतिपूर्ण राय को आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में भी अंतिम आदेश में शामिल किया जाना चाहिए.
चुनाव आयोग की धारा 10 (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस) अधिनियम, 1991 के अनुसार, चुनाव आयोग के सभी काम जहां तक संभव हो सर्वसम्मति से होने चाहिए. यह प्रावधान यह भी कहता है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के विचारों में मतभेद होता है तो ऐसे मामलों का निपटारा बहुमत के आधार पर होगा.
बता दें कि 2017 में, तत्कालीन चुनाव आयोग ओपी रावत ने तब खुद को आम आदमी पार्टी से संबंधित मामलों से हटा लिया था जब पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने उनकी स्वतंत्रता पर सवाल उठा दिया था.
अशोक लवासा मामले को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा
कांग्रेस ने आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट देने पर असहमति जताने वाले चुनाव आयोग के सदस्य अशोक लवासा के आयोग की बैठकों में शामिल नहीं होने से जुड़ी खबरों को लेकर शनिवार को मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि इस सरकार में संस्थाओं की गरिमा धूमिल हुई है.
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक खबर शेयर करते हुए ट्वीट किया, ‘चुनाव आयोग है या चूक आयोग. लोकतंत्र के लिए एक और काला दिन. चुनाव आयोग के सदस्य ने बैठकों में शामिल होने से इनकार किया. जब चुनाव मोदी-शाह जोड़ी को क्लीनचिट देने में व्यस्त था तब लवासा ने कई मौकों पर असहमति जताई.’
Election Commission
OR
Election Omission!Another Dark Day for Democracy!
Sh Ashok Lavasa, Member CEC, who dissented on multiple occasions when EC was busy giving clean chits to Modi-Shah duo, opts out of EC as the ECI even refuse to record dissent notes.
1/2 pic.twitter.com/ajbSwBCUxl— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) May 18, 2019
उन्होंने दावा किया, ‘संस्थागत गरिमा धूमिल करना मोदी सरकार की विशेषता है. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सार्वजनिक तौर पर बयान देते हैं, रिजर्व बैंक के गवर्नर इस्तीफा देते हैं, सीबीआई निदेशक को हटा दिया जाता है. सीवीसी खोखली रिपोर्ट देता है. अब चुनाव आयोग बंट रहा है.’
सुरजेवाला ने सवाल किया कि क्या चुनाव आयोग लवासा की असहमति को रिकॉर्ड करके शर्मिंदगी से बचेगा?
खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देने पर असहमति जताने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अपना विरोध खुलकर जाहिर कर दिया है.
उन्होंने हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त को एक पत्र लिखकर कहा है कि जब तक उनके असहमति वाले मत को ऑन रिकॉर्ड नहीं किया जाएगा तब तक वह आयोग की किसी मीटिंग में शामिल नहीं होंगे.