दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित और ऑस्कर के लिए नामित फिल्मकार अश्विन कुमार ने कहा कि कश्मीर दुनिया की कुछ ऐसी जगहों में से एक है, जहां सुंदरता और भय एक साथ मौजूद हैं.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार अश्विन कुमार का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में हुए ध्रुवीकरण की वजह से कश्मीर के जटिल मुद्दे को समझना हमारे लिए और भी मुश्किल हो गया है.
उनका कहना है कि कश्मीर दुनिया की कुछ ऐसी जगहों में से एक है जहां सुंदरता और भय एक साथ एक ही क्षण में मौजूद होता है.
ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामित हो चुके फिल्म निर्देशक अश्विन कुमार की नई फिल्म ‘नो फादर्स इन कश्मीर’ की स्क्रीनिंग 14वें हैबिटेट फिल्म महोत्सव की शुरुआती फिल्म के रूप में हुई.
इस फिल्म महोतस्व में 19 भारतीय भाषाओं की 42 फिल्में दिखाई जा रही हैं जिनमें डॉक्यूमेंट्री, लघु फिल्म और छात्रों की फिल्में शामिल हैं.
कश्मीर की पृष्ठभूमि में बनी कुमार की यह पहली फीचर फिल्म है. इससे पहले वह 2010 में ‘इंशाअल्लाह फुटबॉल’ और 2012 में ‘इंशाअल्लाह कश्मीर’ बना चुके हैं और दोनों ही डॉक्यूमेंट्री को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है.
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘हमारे समाज में पिछले पांच साल में जो ध्रुवीकरण हुआ है उससे कश्मीर मुद्दे की जटिलता को समझना और भी मुश्किल हो गया है. यह दुनिया की कुछ ऐसी जगहों में से एक है जहां सुंदरता और भय एक ही साथ मौजूद है. यह फिल्म बनाने के पीछे का विचार इन्हीं दोनों चीज़ों को एक साथ पर्दे पर लाना था.’
उनसे पूछा गया था कि उन्होंने ‘कश्मीर’ को ही अपने फिल्म के लिए क्यों चुना?
अश्विन कुमार का कहना है कि उनका इरादा प्रेम पर आधारित एक ऐसी फिल्म बनाने का था जिसमें पहला प्यार और दिल टूटना शामिल हो और कश्मीर जैसी जगह में यह कितना मुश्किल हो सकता है.
कुमार ने कहा, ‘कश्मीर आईने का एक ऐसा बदनुमा अक्स है जो यह दिखाता है कि जब सत्ता को आप अपने निजी जीवन में घुसने देते हैं तो क्या होता है? मुझे कश्मीर में काम करने वाले एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने कहा था कि आप लोगों के लिए हम एक प्रयोगशाला हैं. मैं उनकी इस टिप्पणी से सिहर गया था. कश्मीर एक ऐसी जगह है जहां यह देखा जा सकता है कि चीज़ें कितनी बुरी हो सकती हैं.’
इस फिल्म को रिलीज़ कराने में जो परेशानियां आई थीं, उस पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘इसे रिलीज़ कराना आसान नहीं था. यह मेरी ज़िंदगी के सबसे ख़राब दिनों में से एक था. सेंसर बोर्ड को मंज़ूरी देने में नौ महीने लग गए.’
फिल्म में ज़ारा वेब, अश्विन कुमार, सोनी राजदान, कुलभूषण खरबंदा, अंशुमान झा, नताशा मागो आदि प्रमुख भूमिकाओं में हैं.
मालूम हो कि साल 2004 में आई अश्विन कुमार की शॉर्ट फिल्म ‘लिटिल टेररिस्ट’ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामित हो चुकी है. यह भारत की एकमात्र शॉर्ट फिल्म है जो ऑस्कर के लिए नामित हो चुकी है. अश्विन ‘डैज़्ड इन दून’ और ‘द फॉरेस्ट’ और ‘रोड टू लद्दाख’ जैसी फिल्में बना चुके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)