आरोप है कि छत्तीसगढ़ में कांकेर ज़िले के ताड़ावायली गांव में एक आदिवासी महिला को नक्सली बताकर पुलिस ने उनके पति और दो साल की बेटी के साथ गिरफ़्तार कर लिया है.
हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि जेलों में बंद निर्दोष आदिवासी रिहा किए जाएंगे. इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है और लगभग 4,000 आदिवासियों को रिहा करने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है.
छत्तीसगढ़ में एक ओर जहां आदिवासियों को रिहा करने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है, वहीं दूसरी ओर आदिवासियों के खिलाफ फर्जी नक्सल मामले बनाकर उन्हें जेल भी भेजा जा रहा है.
राज्य में उत्तर बस्तर कांकेर के पखांजुर क्षेत्र के बांदे थानांतर्गत ग्राम ताड़ावायली में दो साल के बच्चे और 8 माह की गर्भवती आदिवासी महिला को नक्सली बताकर जेल भेजने का मामला सामने आया है.
ताड़ावायली जिला मुख्यालय कांकेर से 180 किमी. की दूरी पर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से लगा सीमावर्ती गांव है. यहां 80 परिवार रहते हैं. मूलभूत समस्याओं से जूझते ग्रामवासियों पर अक्सर एक तरफ नक्सल तो दूसरी तरफ सुरक्षा बलों की हिंसात्मक गतिविधियों का शिकार होना पड़ता है.
बीते 18 मई को पुलिस के कथन अनुसार बांदे थाना क्षेत्र अंतर्गत ताड़वायली के जंगल से सीमा सुरक्षा बल की मारबेड़ा स्थित 121 वाहिनी ने खगांव ताड़बौली के जंगल में नक्सल अभियान चलाया था.
इस दौरान भामरागढ़ एरिया कमेटी की सक्रिय सदस्य दस्सो उर्फ नीला कमांडर भामरागढ़ एरिया कमेटी व गत्ती मट्टामी अध्यक्ष जनताना सरकार ताड़बौली को गिरफ्तार किया गया. दस्सो उर्फ नीला के विरूद्ध धारा 147, 148, 302, 323, 341, 365 व आर्म्स एक्ट की धारा 25, 27 के तहत थाना बांदे में अपराध दर्ज है.
लेकिन पुलिस द्वारा नक्सली गिरफ्तारी की घटना एक नाटकीय रूपांतरण सामने आता है.
गांव के नरेश जुर्री बताते हैं, ‘पुलिस ने इस अभियान के दौरान गांव की महिला नीला उइके को दस्सो उर्फ नीला नाम की कोई नक्सली बताकर गिरफ्तार किया है. उनकी चार साल पहले गांव के लालसु उइके के साथ शादी हुई थी. लालसु उइके की यह दूसरी शादी थी. उनकी पहली पत्नी की स्वास्थ्य कारणों से मौत हो गई थी. उनकी एक बच्ची भी है.’
उन्होंने बताया कि वह बच्ची लालसु की दूसरी पत्नी नीला उइके के साथ ही रहती है. शादी के कुछ दिनों बाद से ही पुलिस लगातार गांव आकर उनके परिवार से पूछताछ करती रहती थी.
नरेश बताते हैं, ‘नीला उइके ताड़ावायली गांव में 5 साल पहले आई थीं. जहां गांववालों ने मिलकर नीला और लालसु की शादी कराई थी. अब पांच साल पहले वो नक्सल गतिविधियों में संलग्न थी कि नहीं ये कहा नहीं जा सकता.’
नरेश का आरोप है कि कई बार नीला और लालसु और गांववालों को थाने बुलाकर पूछताछ की जाती थी और कई घंटे बिठाकर रखने के बाद छोड़ दिया जाता था.
नरेश एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि एक बार सुरक्षा बल के जवान गांव में आकर सारे गांववालों को इकट्ठा कर लिए. सभी गांववालों से पूछताछ किया गया, आधार कार्ड देखा गया. नीला के पास उस समय आधार कार्ड नहीं था. तब हम गांववालों ने सुरक्षा बल और पुलिस को बताया कि इनकी नई शादी हुई है, इसीलिए इनका आधार कार्ड बनने के लिए दिया गया है. तब से ही नीला से सुरक्षा बल के जवान अक्सर आकर पूछताछ करते रहते थे.
नरेश कहते हैं कि नीला उइके का कुछ दिन बाद आधार कार्ड बन गया था लेकिन राशन कार्ड में अभी तक नाम नहीं चढ़ा है.
नरेश पुलिस पर सवाल उठाते कहते हैं कि अगर वो नक्सली थी तो पुलिस इतने दिन तक क्यों गिरफ्तार नही की? वे कहते हैं कि अचानक आकर घर से दोनों पति-पत्नी को गिरफ्तार कर पुलिस ने दोनों पर झूठा आरोप लगाया है.
लालसु के छोटे भाई नगडु उइके कहते हैं, ‘18 मई को अचानक सुरक्षा बल और पुलिस के जवान 10 बजे हमारे ताड़ावायली गांव को घेर लिया था. गांव के लोग जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे. तेंदूपत्ता तोड़ रहे एक ग्रामीण बिरजू गोटा के साथ मार-पीट भी की गई.’
नगडु उइके आगे कहते हैं, ‘घर में आकर बड़े भाई लालसु उनकी पत्नी और दो साल की बच्ची को उठाकर ले गए और जेल भेज दिया. लालसु की पहली पत्नी की बच्ची को छोड़ दिया गया. नीला अभी 8 माह की गर्भवती भी हैं.’
ताड़ावायली गांव में नीला उइके के घर के सामने रहने वाले सरधु कवाची कहते हैं, ‘उस दिन नीला उइके के घर में पुलिस के चार जवान आए थे. उन्हें घर से उठाकर स्कूल के तरफ ले जा रहे थे. जब मैंने उन्हें देखा तो उनके पीछे गया. स्कूल में जाने के बाद पुलिस के लोग बोले, चल इसको अस्पताल में भर्ती करना है, इसको पहुंचा दे. मैं बोला कल ले आएंगे आज तेंदूपत्ता तोड़ रहे हैं लेकिन पुलिस वाले नहीं माने और बोले पहुंचा दे और तुरंत आ जाना बोले.’
वे कहते हैं, ‘नीला उइके के पति लालसु उइके को पुलिस वाले बाइक में बैठाए और नीला उइके को मैं अपनी बाइक पर बैठाकर सीधा थाने में लेकर गए. मुझे शाम तक थाने में रुकने के लिए बोले. मैं शाम तक वहीं बांदे थाने में रुके रहा. शाम होने पर मुझे पुलिसवाले बोले? जाओ घर इसको जेल भेजेंगे.’
सरधु कहते हैं, ‘मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा न बोला और गांव वापस लौट गया. पुलिस गलत बोल रही है कि उन्हें जंगल से उठाया गया, उन्हें उनके घर से पुलिस ले गई थी.’
ताड़ावायली गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता डुंगे वड्डे कहती हैं, ‘नीला उइके को पुलिस नक्सली बोल रही है, यह गलत है. मैंने खुद उनके गर्भवती होने का सर्वे किया था. नीला 8 माह की गर्भवती हैं और अक्सर आंगनबाड़ी आती थीं. पोषण आहार लेती थीं. उनका 2 साल का एक और बच्चा है. आंगनबाड़ी रजिस्टर में उसका पूरा नाम दर्ज है.’
इस कथित फर्जी गिरफ्तारी संबंध में कांकेर जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में शिकायत की गई है. शिकायत दर्ज कराने गए ग्रामीण बताते हैं कि पुलिस ने गांव से नीला उइके, उनकी 2 वर्षीय बच्ची शिवानी उइके और पति लालसु उइके को घर से उठा कर ले गई. दूसरे दिन जब हमने अखबारों में खबर देखी तो उसमें नीला उइके के पति का नाम दिनेश नेताम लिखा था जो गलत है.
शिकायतकर्ता ग्रामीणों का कहना है कि नीला उइके के पति का नाम अखबार में नहीं था और न ही उनकी गिरफ्तारी की खबर पेपर में छपी थी. बल्कि मोरखंडी गांव के एक ग्रामीण गत्ती मट्टामी और नीला उइके को गिरफ्तार करने का खबर पेपर में आई थी. हम लोग जेल में भी मिलने गए थे, जहां नीला उइके और पति और दो साल का बच्ची को रखा गया था.
गौरतलब हो कि कांकेर के स्थानीय अखबारों ने नीला उइके और गत्ती मट्टामी की नक्सल मामलों में गिरफ्तारी की खबर 21 मई को छापी हैं जिसमें नीला उइके के पति का नाम दिनेश नेताम बताया गया है, जबकि नीला उइके का पति लालसु उइके है.
पुलिस ने इस गिरफ्तारी की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं की. वही लोगों का कहना है कि पुलिस ने इस मामले को लेकर पत्रकारों के लिए प्रेस विज्ञप्ति भी जारी नहीं की है. पुलिस ने सिर्फ नीला उइके और गत्ती मट्टामी की ही गिरफ्तारी दिखाई है जबकि नीला उइके के पति लालसु को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है.
अक्सर पुलिस गिरफ्तारी की घटना को पुलिस नक्सल उन्मूलन में सफलता बताकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पत्रकारों के सामने पकड़े गए नक्सलियों को पेश करती है, जो इस केस में नहीं हुआ.
गौरतलब है कि ताड़ावायली गांव का अपराध बस इतना है कि 1984 में पुलिस और नक्सलियों के बीच पहली मुठभेड़ इसी गांव में हुई थी. पहला नक्सली लीडर गणपति यहीं मारा गया था, तब से आज तक यह गांव दोनों ओर की बंदूकों और बूटों के निशाने पर है.
बहरहाल इस घटना से ताड़ावायली गांव के लोग दहशत में हैं. गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है. ग्रामीण और परिवारजन उनकी रिहाई के लिए दर-ब-दर गुहार लगा रहे हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)