एम्स के प्रोफेसर एलआर मुर्मु ने कहा, पहले कार्यक्रम 13 मई को प्रस्तावित किया गया था और अगर यह उस दिन आयोजित किया जाता तो शायद यह संदेश पायल तक पहुंचता. तब शायद वह अपना फैसला बदल देती.
नई दिल्ली: उच्च शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव को लेकर दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक चर्चा हुई जिसमें अस्पताल की एक वरिष्ठ महिला डॉक्टर ने बताया कि पिछले कुछ सालों में किस तरह से उसे अपने विभागाध्यक्ष से कथित तौर पर भेदभाव का सामना करना पड़ा.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ‘एम्स फ्रंट फॉर सोशल कॉन्शियसनेस’ द्वारा शुक्रवार को आयोजित इस कार्यक्रम में शिक्षाविदों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने उन घटनाओं का जिक्र किया जहां पर उन्हें अपने सीनियरों से भेदभाव का सामना करना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘विभागाध्यक्ष ने मुझे कई बार परेशान किया लेकिन कभी मैंने हिम्मत नहीं हारी. जितनी बार भी उन्होंने मुझे पीछे धकेलने की कोशिश की उतनी बार मैं और भी हिम्मत के साथ आगे बढ़ती गई. आपको लगातार लड़ना पड़ेगा. सालों तक भेदभाव के बावजूद मैं आज यहां खड़ी हूं और आगे भी ऐसा करती हूं.’
हालांकि प्रशासन ने ऐसी किसी घटना की जानकारी होने से इनकार कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए एम्स के रजिस्ट्रार संजीव लालवानी ने कहा, ‘मुझे ऐसी किसी घटना की जानकारी नहीं है. एम्स में हमारे पास ऐसी कई समितियां जो ऐसे मामलों को देखती हैं. उनकी सिफारिशों के आधार पर फैसले लिए जाते हैं.’
अन्य मेडिकल और शैक्षणिक संस्थानों के लोगों ने भी अपने ऐसे अनुभवों को साझा किया. कार्यक्रम में विशेषज्ञों, जिसमें एम्स के डॉक्टर भी शामिल थे, ने देश की शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाया.
Dr Payal Tadvi’s suicide was end result of series of atrocities which was not resisted by many mute spectators. AT AIIMS we organised a discussion on caste based discrimination to motivate people to speak against atrocities so that no one will become a victim of this social demon pic.twitter.com/I2h2JmJGhL
— Harjit Singh Bhatti (@DrHarjitBhatti) May 31, 2019
यह कार्यक्रम मुंबई के टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की सेकेंड ईयर की 26 वर्षीय छात्रा पायल तड़वी की मौत के बाद आयोजित किया गया जिसने कथित तौर पर सीनियरों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद आत्महत्या कर ली.
हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर डॉ रतन लाल ने कहा, ‘रोहित वेमुला से शुरू हुआ अभियान डॉ पायल तड़वी तक पहुंच चुका है. यह एक घटना नहीं बल्कि एक संकेत है. ऐसी घटनाएं हमें एक संस्थानिक संकट की ओर लेकर जा रही हैं और आने वाले दिनों में आपमें से अधिकतर लोग ऐसे मामलों के खिलाफ विरोध करेंगे. आईआईटी और एम्स जैसे संस्थानों में काम करने वाले लोग लैब में तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हैं लेकिन अपनी निजी जिंदगी में रूढ़िवादी होते हैं.’
पहले 13 मई के लिए प्रस्तावित यह कार्यक्रम तब टाल दिया गया जब अस्पताल प्रशासन ने मंजूरी देने के लिए कुछ शर्तें लगा दी. पहले इस कार्यक्रम का नाम ‘अंबेडकर्स व्यू ऑन सोशल रिलेशंस: कास्ट डिस्क्रिमिनेशन इमन इंस्टिट्यूशंस ऑन हाइअर लर्निंग’ था जिसे बाद में बदलकर ‘डेलिबरेटिंग कास्ट डिस्क्रिमिनेशन इन हाइअर एजुकेशन: हाउ मेनी पायल्स विल टेक इट फॉर अस टू राइज?’ कर दिया गया है.
एम्स के इमर्जेंसी मेडिसिन (सर्जरी) में काम करने वाले प्रोफेसर एलआर मुर्मु ने कहा, ‘पहले कार्यक्रम 13 मई को प्रस्तावित किया गया था और अगर यह उस दिन आयोजित किया जाता तो शायद यह संदेश पायल तक पहुंचता. तब शायद वह अपना फैसला बदल देती. उसे सिस्टम ने निराश किया. संविधान, कानून और प्रशासन तब विफल हो गए जब उसे इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी. ऐसा लगता है कि संविधान कुछ लोगों के लिए है ही नहीं.’
वहीं, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अतुल सूद ने कहा, ‘अगर आप इस देश में भेदभाव और संस्थानिक भेदभाव की विस्तृत प्रक्रिया को देखेंगे तब देखेंगे कि हम जिसका अनुभव पिछले 20-25 सालों से महसूस कर रहे हैं वह उससे पहले होने वाली घटनाओं से पूरी तरह अलग और नया है.’