बदहवास भारत में भाषा का भसान

जो गांधी के विचारों के समर्थक और शांति के पैरोकार हैं, ख़ुद एक दिमाग़ी बुखार में गिरफ़्तार हैं. हिंसा हमारा स्वभाव हो गई है. हम हमला करने का पहला मौका छोड़ना नहीं चाहते. पढ़ने-सुनने के लिए जो समय और धीरज चाहिए, हमने वह जानबूझकर गंवा दिया है.

/
गुजरात के दांडी में महात्मा गांधी की प्रतिमा. (फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)

जो गांधी के विचारों के समर्थक और शांति के पैरोकार हैं, ख़ुद एक दिमाग़ी बुखार में गिरफ़्तार हैं. हिंसा हमारा स्वभाव हो गई है. हम हमला करने का पहला मौका छोड़ना नहीं चाहते. पढ़ने-सुनने के लिए जो समय और धीरज चाहिए, हमने वह जानबूझकर गंवा दिया है.

Mahatma Gandhi Dandi NaMo Twitter
(फोटो साभार: नरेंद्र मोदी/ट्विटर)

यह निश्चय ही हरिशंकर परसाई का देश नहीं रह गया है. उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी देश को अपने लायक बनाने में लगा दी. कलम घिस-घिसकर ऐसा करने का एक पुरस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उनकी पिटाई करवा कर दिया था.

निधि चौधरी इस प्रसंग को याद रखेंगी तो उन्हें अकेलापन नहीं लगेगा. आख़िरकार निधि चौधरी का तबादला कर दिया गया है. लेकिन कई लोगों को इससे भी तसल्ली नहीं है. वे पूछ रहे हैं, ‘सिर्फ तबादला?’ उनका बस चले तो निधि को न सिर्फ नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाए बल्कि उन्हें जेल दी जाए.

लेकिन निधि चौधरी का तबादला यह साबित करने के लिए सबसे अच्छा और सबसे कम हिंसक उदाहरण है कि भारत समाज के तौर पर कितना बीमार हो चुका है. कम हिंसक इसलिए कि इसमें कम से कम निधि को शारीरिक हमले का सामना नहीं करना पड़ा है.

यह घटना बताती है कि हम किस प्रकार एक चिर उत्तेजना की अवस्था में रह रहे हैं और कैसे हमारा सारा स्नायु तंत्र स्थायी तनाव से ग्रस्त हो चुका है. पहले पात्र और घटना को समझ लें.

अचानक अनेक माध्यमों से यह खबर फैलने लगी कि बृहन्मुम्बई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की संयुक्त कमिश्नर निधि चौधरी ने कहा है कि कितने शानदार तरीके से हम महात्मा का 150वां साल मना रहे हैं! वक़्त आ गया है कि गांधी के हर चिह्न को मिटा दिया जाए. नोटों से उनकी तस्वीर, पूरी दुनिया से उनकी मूर्तियां हटा दी जाएं और उनके नाम वाले सारे संस्थानों और सड़कों का नाम बदल दिया जाए. इतना ही नहीं उन्होंने गोडसे को 30 जनवरी के लिए धन्यवाद भी दिया है.

निधि चौधरी द्वारा किया गया विवादित ट्वीट
निधि चौधरी द्वारा किया गया विवादित ट्वीट

तुरंत मीडिया ने यह खबर प्रसारित की. एक राजनीतिक दल के नेता ने इस घोर पाप के लिए अधिकारी निधि चौधरी को फौरन बर्खास्त करने की मांग की. समाचार के फैलते ही निधि ने अपना यह ट्वीट मिटा दिया, लेकिन आज की दुनिया में आपके चाहे भी आपकी बात वापस नहीं होती.

ट्वीट का स्क्रीनशॉट मौजूद है. वह निधि के अपराध का गवाह है. उसका ही इस्तेमाल करके मीडिया ने, जिसे जाने क्यों अभी भी खबर का माध्यम या स्रोत माना जाता है, निधि के इस जुर्म की खबर हम सब तक पहुंचाई.

इस खबर को फिर अनेक समझदार,पढ़े-लिखे लोगों ने आगे प्रसारित किया. निधि मूर्ख, बदमाश, बदज़बान ठहरा दी गईं. इसका अभी अंत हुआ निधि के तबादले से, जिसे प्रशासन की दुनिया में में सज़ा या सरकार की फटकार माना जाता है.

निधि चौधरी को इस चौतरफा हमले में किसी का मुखर समर्थन नहीं मिला. किसी ने यह ध्यान नहीं दिया कि चलन के मुताबिक़ निधि ने चुपचाप ट्वीट नहीं हटाया है, इसकी खबर भी सार्वजनिक की है.

उन्होंने अपनी सफाई में बताया कि यह ट्वीट एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी थी आज के वक़्त पर. चूंकि इसे ग़लत समझा जा रहा है, वे इसे हटा रही हैं. उन्होंने अपना इतिहास भी बताया, गांधी के प्रति अपने अनुराग और श्रद्धा के प्रमाण भी दिए लेकिन वे शायद एक ऐसे समाज दे बात करने की कोशिश कर रही थीं जो भाषा भूल चुका है.

हिंदी की एक वेबसाइट ने थोड़ा समझने की कोशिश की. उसे देखिए,

पहला पॉइंट- निधि चौधरी ने कहा कि वो गांधी का सम्मान करती हैं और उनके ट्वीट को लोगों ने ग़लत समझ लिया. निधि ने बार-बार कहा है कि वो महात्मा गांधी का अपमान करने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं. एकबारगी निधि चौधरी के नज़रिए से ट्वीट को देखिए. उसमें गांधी की तस्वीर नोटों से हटाने की बात है. मूर्तियां हटाने की बात है, लेकिन अंत में कहा गया है कि गांधी को यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

अब मान लीजिए कि आज के दौर में गांधी को बेतरह चाहने वाला शख्स अगर ऐसे नोट से गांधी को हटाने की बात कर रहा है जो गांधी के ‘अंतिम जन’ के खून पसीने से सना होता है. जो ग़ैर बराबरी का प्रतीक सा बन गया है तो इसे व्यंग के रूप में भी समझा जा सकता है.

दूसरा पॉइंट- निधि के ट्विटर को काफ़ी पीछे तक स्टडी किया. निधि किसी विचार विशेष को प्रमोट करती हुई कभी नहीं पाई गईं. परिवार के साथ या दफ़्तर की तस्वीरें और गांधी के शब्द और दर्शन दिखाई पड़ते हैं. अचानक सिर्फ एक ट्वीट आता है जिसे शायद निधि भी ठीक से जज नहीं कर सकीं और सोशल मीडिया पर कैच थमा बैठीं.

तीसरा पॉइंट- निधि चौधरी के जिस ट्वीट पर सारा बवाल हुआ उसमें सिर्फ तीन शब्द हैं जिसका बचाव कोई नहीं कर सकता. अगर कल को निधि सस्पेंड होती भी हैं तो यही तीन शब्द अपना रोल निभाएंगे. और ये शब्द क्या हैं ‘Thank U Godse’.

निधि एक बेहद ज़िम्मेदार पद पर हैं. सारी बात सेन्स ऑफ सटायर पर नहीं छोड़ी जा सकती. ‘अगर’ निधि ने व्यंग्य भी किया था तो वो इतना महीन था कि उसे समझने के लिए जितना दिमाग लगाना चाहिए उतना सोशल मीडिया पर जनता लगाती नहीं है.

इस उद्धरण से ही यह मालूम हो जाता है कि गड़बड़ी कहां है! जो आज की ट्विटर की दुनिया के वासी हैं, वे इमोटिकॉन के प्रयोग से खूब परिचित हैं, बल्कि अब तो शब्दों से ज़्यादा उन्हीं से काम लिया जाता है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए.

निधि ने गांधी के हर चिह्न को मिटाने की बात कहते हुए विलाप करता हुआ एक इमोटिकॉन लगाया. जिनकी भाषा क्षमता सीमित है, शायद उनकी मदद के लिए! उस विलाप के बाद ही थैंक यू गोडसे फॉर 30 जनवरी, 1948 लिखा गया है. जिसे थोड़ी भी भाषा की तमीज़ है, वह इस टिप्पणी में छिपी वेदना और असहायता को तुरंत समझ जाएगा.

अफ़सोस! निधि अभी तक अपने समाज के संवेदना तंत्र के साथ हुई दुर्घटना से परिचित नहीं. वे उससे ज़्यादा उम्मीद कर बैठीं. भाषा का व्यवहार अगर संवाद के अर्थ में देखें, तो स्थान-काल-पात्र के संदर्भ से अलग करके नहीं समझा जाता सकता.

निधि के ट्वीट का संदर्भ गांधी का 150वां साल तो था ही लेकिन यह साल एक ऐसी पार्टी के दुबारा सत्ता में आने का है जिसने गोडसे को देशभक्त घोषित करने वाली एक महिला को सांसद बनाया. या यह कहना ठीक होगा कि जनता ने यह जानने के बावजूद, या कौन जाने, इसी वजह से उस महिला को सांसद के तौर पर चुना.

क्या इस जनादेश का सम्मान या स्वागत नहीं किया जाना चाहिए? तो, इसकी तर्कसंगत परिणति क्या हो सकती है? जिसे गोडसे ने शारीरिक तौर पर मिटाया, उसके भक्त को मिले इस जनादेश के बाद क्या उसका शेष चिह्न नहीं मिटाना चाहिए?

बेचारे गोडसे को जिसे ख़त्म करने के लिए फांसी मिली क्या हम उसे प्रतीकात्मक रूप में जीवित रखेंगे? क्या यह इस जनादेश के अनुरूप होगा? जनादेश सावरकर के बाद संसद में गोडसे को, अब तक स्थगित और विलंबित धन्यवाद प्रस्ताव देने का है.

लेकिन निधि प्रशासनिक अधिकारी हैं. वे यह सारी बात ऐसे ही लिखें तो फौरन सरकारी हमले का ख़तरा है, इसलिए उन्होंने जनादेश से अपनी व्यथा इस रूप में व्यक्त की.

इस एक वाक्य से ही वह दर्द ज़ाहिर हो जाता है What an exceptional celebration of 150th birth anniversary year is going on! क्या अब वक़्त नहीं आ गया है कि हर जगह, नोट, सड़क, संस्थान से उस गांधी का नाम मिटा दिया जाए जिसे शारीरिक तौर पर 30 जनवरी, 1948 को गोडसे जी ने मिटा दिया था! क्या उस महान कृत्य के लिए हम उनका शुक्रिया अदा न करें!

निधि की इस टीप को पढ़कर दर्दमंदों ने मन ही मन दो बूंद आंसू गिराए होंगे, लेकिन गांधी के अनुयायी भी ऐसी उत्तेजना में जी रहे है कि एक युवा मन की व्यथा उन्हें छू नहीं सकी. उल्टे वे निधि पर ही पर टूट पड़े! यह घटना हमें ख़ुद अपने बारे में सोचने को मजबूर करती है.

हम जो गांधी के विचारों के समर्थक और शांति के पैरोकार हैं, ख़ुद एक दिमाग़ी बुखार में गिरफ़्तार हैं. हिंसा हमारा स्वभाव हो गई है. हम हमला करने का पहला मौका छोड़ना नहीं चाहते. इसलिए पढ़ने-सुनने के लिए जो समय, धीरज चाहिए, हमने वह जानबूझकर गंवा दिया है.

यह अवस्था क्या कर सकती है, इसे एक और उदाहरण से समझा जा सकता है. जम्मू कश्मीर के कठुआ में एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार का मुकदमा चल रहा है. अचानक खबर फैलने लगी कि अदालत ने सभी अभियुक्तों को बेकसूर मान लिया है.

कुछ ने विरोध-प्रदर्शन की तैयारी भी शुरू कर दी. कुछ वक़्त बाद मालूम हुआ कि बचाव पक्ष ने अभियुक्तों की ओर से उनके निर्दोष होने की दलील दी है. इसी की खबर छपी थी. क्यों इतनी मामूली से फर्क को हमारे मित्र नहीं समझ पाए? यह गलतफहमी आखिर हुई ही क्यों? और उन्हें जो समाज को समझदार बनाने का संघर्ष कर रहे हैं?

निधि पर आरएसएस या उनसे जुड़े लोगों की ओर से नहीं, धर्मनिरपेक्ष दिशा से ही हमला हुआ. आम तौर पर समझदार लोग इसके बाद भी उस अधिकारी का सिर मांग रहे हैं. बेहतर हो, हम हिंसा के बुखार और सन्निपात से उबरें. वरना हम अपने लोगों को ही मार डालेंगे. इसी ओर हमें ढकेला जा रहा है.

भाषा के प्रति संवेदना के लिए ठहराव की ज़रूरत है. ज़ुबान की रंगतों को पहचानने लायक निगाह की दरकार है. अगर हम चिरअस्थिर अवस्था में होंगे तो बड़बड़ाहट और चिल्लाहट के अलावा कुछ नहीं बचेगा. भाषा को डूबने से बचाने के लिए ख़ुद को बदहवासी से बचाने की ज़रूरत है.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq