81 वर्षीय गिरीश कर्नाड लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, जिसके बाद बेंगलुरु के एक अस्पताल में उनको भर्ती कराया गया था.
बेंगलुरु: देश के जाने-माने अभिनेता, फिल्म निर्देशक, नाटककार, लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार व पद्म भूषण से सम्मानित गिरीश कर्नाड का सोमवार को बेंगुलरु में निधन हो गया. वह 81 वर्ष के थे.
गिरीश लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था.
अपने विचारों को खुलकर प्रकट करने को लेकर निशाने पर रहे बहुआयामी व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा के धनी कर्नाड के परिवार में पत्नी सरस्वती, बेटे रघु कर्नाड (पत्रकार एवं लेखक) और बेटी राधा हैं.
कर्नाड के परिवार से जुड़े सूत्रों ने बताया, ‘उन्होंने सुबह करीब आठ बजे आखिरी सांस ली. वह लंबे समय से श्वास संबंधी तकलीफ सहित कई बीमारियों से पीड़ित थे.’
सूत्रों ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार आज राजकीय सम्मान के साथ, ‘कल्पली विद्युत शवदाहगृह’ में किया जाएगा.
उनकी इच्छानुसार परिवार ने किसी भी रीति-रिवाज का पालन नहीं करने का निर्णय लिया है.
परिवार ने प्रशंसकों और गणमान्य हस्तियों से भी सीधे शमशान पहुंच कर कर्नाड को अंतिम विदाई देने की अपील की है.
मुख्यमंत्री कार्यालय ने कर्नाड के सम्मान में सोमवार को छुट्टी का ऐलान करते हुए तीन दिन का शोक भी घोषित किया है. मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा कि कर्नाड को राजकीय सम्मान दिया जाएगा, जो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लोगों को दिया जाता है.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कर्नाड का जन्म डॉ. रघुनाथ कर्नाड और कृष्णाबाई के घर 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था.
कर्नाड ने अनेक नाटकों और फिल्मों में अभिनय किया जिनकी काफी सराहना हुई. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके कर्नाड को 1974 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया.
उन्होंने 1958 में धारवाड़ स्थित कर्नाटक आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. आगे की पढ़ाई इंग्लैंड में पूरी की और फिर भारत लौट आए. वह 1960 के दशक में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रोहड्स स्कॉलर भी रहे. उन्होंने वहां से दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स’ की डिग्री हासिल की.
उन्होंने चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में सात साल तक काम किया लेकिन कुछ समय बाद इस्तीफा दे दिया. गिरीश यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में प्रोफेसर भी रह चुके हैं. इसके बाद वे थियेटर के लिए काम करने लगे और पूरी तरह साहित्य और फिल्मों से जुड़ गए.
गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं भाषाओं में अच्छी पकड़ थी. उनका पहला नाटक कन्नड़ में था, जिसका बाद में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया. उनके कन्नड़ भाषा में लिखे नाटकों का अंग्रेजी और कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया.
विख्यात अनुवादक उमा विरूपक्षी कुलकर्णी ने बताया कि कर्नाड हमेशा गर्मजोशी से मिलते थे. उन्होंने कर्नाड के चार नाटकों की किताब और उनकी आत्मकथा का अनुवाद मराठी में किया था.
उन्होंने कहा, ‘कर्नाड थोड़ी मराठी समझते थे क्योंकि उनकी प्रारंभिक शिक्षा उस भाषा में हुई थी और वह कभी इस भाषा को भूले नहीं थे. वह एक मात्र ऐसे कन्नड़ लेखक थे जो मराठी समझ सकते थे और वह हमेशा हमारी बातचीत के दौरान सहज बने रहते थे.’
उनके नाटकों में ‘ययाति’, ‘तुगलक’, ‘हयवदन’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नागमंडल’ और ‘अग्नि और बरखा’ काफी चर्चित हैं.
वह ‘नव्या’ साहित्य अभियान का हिस्सा भी रहे.
उन्होंने मशहूर कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ (1970) से अभिनय और पटकथा लेखन के क्षेत्र में पदार्पण किया. यह फिल्म यूआर अनंतमूर्ति के एक उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म का निर्देशन पट्टाभिराम रेड्डी ने किया और फिल्म को कन्नड़ सिनेमा के लिए पहला राष्ट्रपति गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला.
उन्होंने बतौर अभिनेता सिनेमा में अपने करिअर की शुरुआत की लेकिन उन्हें लेखक और विचारक के रूप में जाना जाता है. कर्नाड अपनी पीढ़ी की सर्वाधिक प्रतिष्ठित कलात्मक आवाजों में से एक थे.
बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म 1974 में आई ‘जादू का शंख’ थी. गिरीश ने बॉलीवुड फिल्म ‘निशांत’ (1975), और ‘चॉक एन डस्टर’ में भी काम किया था.
कर्नाड सलमान खान की ‘टाइगर ज़िंदा है’ और अजय देवगन अभिनीत ‘शिवाय’ जैसी व्यावसायिक फिल्मों में भी दिखाई दिए.
वह 1978 में रिलीज हुई फिल्म ‘भूमिका’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़े जा चुके हैं. उन्हें 1998 में साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. गिरीश कर्नाड कमर्शियल सिनेमा के साथ-साथ समानांतर सिनेमा में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जाने जाते हैं.
उनके टीवी धारावाहिकों में ‘मालगुडी डेज़’ शामिल हैं जिसमें उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई. वह 90 के दशक की शुरुआत में दूरदर्शन पर विज्ञान पत्रिका ‘टर्निंग पॉइंट’ के प्रस्तोता भी थे.
गिरीश कर्नाड की प्रसिद्धि एक नाटककार के रूप में ज्यादा रही. उन्होंने ‘वंशवृक्ष’ नामक कन्नड़ फिल्म से निर्देशन की दुनिया में कदम रखा था. इसके बाद इन्होंने कई कन्नड़ और हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया.
गिरीश कर्नाड को 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1974 में पद्मश्री, 1992 में पद्मभूषण, 1992 में ही कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में कालिदास सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें 1978 में आई फिल्म ‘भूमिका’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है.
Deeply saddened to hear of the demise of Jnanpith laureate writer and iconic actor/film maker, Sri #GirishKarnad .
His outstanding contribution to literature, theatre and films will always be remembered.
In his death, we lost a cultural ambassador. May his soul rest in peace. pic.twitter.com/s5bfbh0VgE
— ಹೆಚ್.ಡಿ.ಕುಮಾರಸ್ವಾಮಿ | H.D.Kumaraswamy (@hd_kumaraswamy) June 10, 2019
कर्नाड के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि हमने एक सांस्कृतिक दूत खो दिया. उन्होंने ट्वीट किया, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार, प्रतिष्ठित अभिनेता एवं फिल्म निर्माता गिरीश कर्नाड के निधन की खबर सुन कर मैं दुखी हूं.’
उन्होंने कहा, ‘साहित्य, थिएटर और फिल्मों में उनके बहुमूल्य योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. उनके निधन से हमने एक सांस्कृतिक दूत खो दिया. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.’
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भी कर्नाड के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि कन्नड़ भाषा को उन्होंने ही सातवां ज्ञानपीठ दिलाया था.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने एक ट्वीट कर कहा, ‘जाने-माने अभिनेता-नाटककार एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित गिरीश कर्नाड के निधन की खबर सुनकर दुखी हूं. उनके परिवार के साथ मेरी गहरी संवेदनाएं हैं.’
कर्नाड ने अनेक नाटकों और फिल्मों में अभिनय किया जिनकी काफी सराहना हुई. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके कर्नाड को 1974 में पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया.
राजनीति की बात करें तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाजपा का एकमात्र चेहरा होने की काफी आलोचना करते थे.
कर्नाड रंगमंच के उन 600 कलाकारों में शामिल थे, जिन्होंने लोगों से लोकसभा चुनाव में भाजपा और उनके सहयोगियों को सत्ता से बाहर करने की अपील करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.
कर्नाड ने नोबेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपॉल की, उनके मुस्लिमों को लेकर विचार पर भी काफी आलोचना की थी.
कर्नाटक सरकार के टीपू जयंती मनाने के निर्णय के बाद उत्पन्न विवाद पर कर्नाड ने कहा था कि 18वीं सदी के शासक अगर मुस्लिम की जगह हिंदू होते तो उन्हें भी छत्रपति शिवाजी की तरह सम्मान मिलता. कर्नाड की इस पर खासी आलोचना हुई थी.
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक बनने वाले पहले गैर-नौकरशाह
कर्नाड को कई भाषाओं की जानकारी और साहित्य और रचनात्मक दुनिया की गहरी समझ थी. वह फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के पहले ऐसे निदेशक थे, जो गैर नौकरशाह थे. यह नहीं वह एफटीआईआई के अध्यक्ष बनने वाले अकेले निदेशक थे.
कर्नाड 35 साल की कम उम्र में एफटीआईआई के निदेशक बने थे और इस पद पर बैठने वाले वह सबसे कम उम्र के निदेशक थे. वह जब संस्थान में निदेशक थे तो उनके कई छात्रों की उम्र उनसे ज्यादा थी.
एफटीआईआई के निदेशक भूपेंद्र कैंथोला ने बताया कि कर्नाड ने संस्थान के पाठ्यक्रम में ‘इंटिग्रेटेड कोर्स’ शुरू किया था. इसके तहत हर एक विशेष विषय की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्रा को दूसरे विशेष विषय के बारे में जानकारी हासिल करना अनिवार्य था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)