सोमवार को मुज़फ़्फ़रपुर दौरे पर पहुंचे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कई योजनाओं की घोषणा की, तो उन्हें 2014 में की गई घोषणाओं के बारे में ध्यान दिलाया गया, जिस पर वह असहज हो गए. दरअसल वे पांच साल पूर्व की गई अपनी ही घोषणाएं फिर से दोहरा रहे थे जो अब तक या तो अमल में ही नहीं आ सकी हैं या आधी-अधूरी हैं.
बिहार के मुज़फ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस)/जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) और चमकी बुखार से 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 17 जून को मुज़फ्फरपुर का दौरा किया और कई घोषणाएं कीं.
उन्होंने कहा कि मुज़फ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू वॉर्ड और वायरोलाजी लैब बनेगा. इसके अलावा जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में 10-10 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू बनेगा. पीएचसी पर सर्वेक्षण के आधार पर डॉक्टरों की तैनाती होगी, सभी पीएचसी पर ग्लूकोमीटर दिया जाएगा, पर्याप्त एम्बुलेंस व दवा की व्यवस्था की जाएगी.
डॉ. हर्षवर्धन जब यह घोषणा कर रहे थे, तब कुछ पत्रकारों ने उनकी 2014 में की गई घोषणाओं की ओर ध्यान दिलाया, जिस पर वह असहज हो गए. दरअसल, डॉ. हर्षवर्धन पांच वर्ष पूर्व की गई अपनी ही घोषणाओं को फिर से दोहरा रहे थे जो या तो अब तक अमल में ही नहीं आ सकी हैं या आधी-अधूरी हैं.
ठीक पांच साल पहले 2014 में भी मुज़फ्फरपुर में इसी तरह एईएस और चमकी बुखार को प्रकोप हुआ था. नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंटोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) के आंकड़ों के अनुसार 2014 में बिहार में एईएस से 355 और जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) से 2 लोगों की मौत हुई थी.
तब नई-नई बनी मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 20-22 जून 2014 को मुजफ्फरपुर, पटना का दौरा किया था और तमाम घोषणाएं की थीं.
तब उन्होंने कहा था कि एसकेएमसीएच में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू वॉर्ड बनेगा और मुज़फ्फरपुर व आस-पास के प्रभावित जिलों में पीएचसी में 10 बेड के पीडियाट्रिक आईसीयू बनेंगे. एसकेएमसीएच को सुपर स्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड किया जाएगा.
गया, भागलपुर, बेतिया, पावापुरी और नालंदा में वायरोलाजिकल डायगनोस्टिक लैबोरेट्री बनेगी. इसके अलावा मुज़फ्फरपुर और गया में मल्टी डिस्पलनरी रिसर्च यूनिट की स्थापना की जाएगी. इन घोषणाओं की जमीनी हकीकत हैरान करने वाली है.
एसकेएमसीएच में वायरोलाजी लैब तो बन गया है लेकिन अभी तक संचालित नहीं हो पाया है. एईएस और चमकी बुखार से सर्वाधिक प्रभावित मुज़फ्फरपुर में वायरोलाजी लैब नहीं बन पाया है, तो भागलपुर, बेतिया, पावापुरी और नालंदा में बनने की बात तो दूर की कौड़ी है.
एसकेएमसीएच में 100 बेड का पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने का काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है. पीएचसी में पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने का काम भी अभी तक शुरू नहीं हुआ है. इसी तरह मुज़फ्फरपुर और गया में मल्टी डिस्पलनरी रिसर्च यूनिट की भी अब तक स्थापना नहीं हो सकी है.
रही बात एसकेएमसीएच में सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक बनाने की तो यह अभी बन ही रहा है. एसकेएमसीएच को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने का निर्णय प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के अंतर्गत सात नवंबर 2013 को हुआ था.
पीएमएसएसवाई के अंतर्गत तीसरे फेज में एसकेएमसीएच के साथ-साथ देश के 39 मेडिकल कॉलेज को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने का निर्णय लिया गया था. इन मेडिकल कॉलेजों में बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर भी शामिल था.
एसकेएमसीएच को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में अपग्रेड करने के लिए 150 करोड़ रुपये खर्च होना है जिसमें 120 करोड़ रुपये केंद्र सरकार और 30 करोड़ रुपये प्रदेश सरकार को देना है.
किसी मेडिकल कॉलेज को सुपरस्पेशियलिटी स्टैंडर्ड में विकसित करने का मतलब होता है कि वहां आठ से दस सुपरस्पेशियलिटी विभाग बनेंगे, पीजी की 15 सीट सृजित होंगी और हॉस्पिटल बेड की संख्या 150 से 250 तक बढ़ जाएंगी.
एसकेएमसीएच में 160 बेड का सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक बनना है जिसमें आठ सुपरस्पेशियलिटी विभाग बनेंगे, जिसमें नियो-नेटोलाजी विभाग भी शामिल है. एसकेएमसीएच में यह ब्लॉक अभी बन ही रहा है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने सोमवार को इसका भी निरीक्षण किया.
कहा गया कि नवंबर 2019 तक यह बनकर तैयार हो जाएगा. इसके बाद यहां डाक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की जाएगी. यदि यह निर्धारित दो वर्ष में बन गया होता तो आज एक-एक बेड पर दो-दो बीमार बच्चों को रखने की जरूरत नहीं होती.
एसकेएमसीएच के साथ ही घोषित हुआ यूपी के गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज का सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक कुछ महीनों पहले ही शुरू हुआ है, लेकिन सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण उसे मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से ही काम चलाया जा रहा है.
उच्च स्तर पर घोषणाओं और उनके अमल की कहानी मुज़फ्फरपुर में गोरखपुर की ही तरह है. गोरखपुर में 2017 में ऑक्सीजन कांड के बाद पीआईसीयू की क्षमता 225 से 400 बेड तक बढ़ाई गई.
इंसेफेलाइटिस प्रभावित गोरखपुर सहित नौ जिलों के जिला अस्पतालों में 10-10 बेड के पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने की घोषणा अखिलेश सरकार 2012 में की थी जिसे अमल में लाने में ढाई वर्ष से अधिक का समय लगा.
ऑक्सीजन कांड के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में गोरखपुर कमिश्नरी के चार जिलों गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज और देवरिया में आठ प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3-3 बेड का आईसीयू बनाने की घोषणा की जो दो वर्ष बाद अब तैयार हो पाएं हैं लेकिन वहां डॉक्टरों विशेषकर बाल रोग चिकित्सकों की कमी अब भी बनी हुई है.
गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस की भयावहता को देखते हुए यूपीए-2 सरकार में वर्ष 2012 गोरखपुर में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलाजी की तरह रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी ) यूनिट की स्थापना की घोषणा की गई. इसके पहले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलाजी (एनआईवी) की फील्ड यूनिट काम कर रही थी.
विषाणुओं से संबंधित रोगों पर व्यापक स्तर पर रिसर्च की जरूरत को देखते हुए आरएमआरसी को स्थापित करने का निर्णय लिया गया था लेकिन इसकी स्थापना की प्रक्रिया पांच वर्ष तक कछुआ गति से चलती रही और एक रुपया भी केंद्र सरकार ने नहीं दिया.
जब गोरखपुर में 10 अगस्त 2017 को ऑक्सीजन कांड हुआ और 13 अगस्त को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्ढा गोरखपुर आए तो उन्होंने इसके लिए 80 करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की. इस घोषणा के 11 महीने बाद सितंबर 2018 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इस सेंटर का शिलान्यास हुआ.
देखना है कि यह कब तक बन कर तैयार होता है और संचालित होता है. यदि इस संस्थान को प्राथमिकता के आधार पर जल्द स्थापित कर दिया गया होता तो यहां हुए रिसर्च एईएस/जेई को खत्म करने या उस पर अंकुश लगाने में जरूर काम आते.
इसी तरह इंसेफेलाइटिस व अन्य बीमारियों से से विकलांग हुए बच्चों व लोगों के इलाज के लिए गोरखपुर में कम्बाइंड रिहैबिलेटेशन सेंटर (सीआरसी) की स्थापना करने की घोषणा की गई.
तात्कालिक तौर पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के परिसर के एक भवन में इसे शुरू किया गया और स्पीच थेरेपिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट आदि की तैनाती की गई. कुछ उपकरण भी आए लेकिन एकाएक इसे समेटने का निर्णय ले लिया गया और दो को छोड़कर सभी स्टाफ जो कि संविदा पर थे, हटा दिए गए.
इस निर्णय के खिलाफ जब विरोध के स्वर मुखर हुए तो वर्ष 2018 में इसके लिए जमीन ढूंढी गई और सितंबर 2018 में आरएमआरसी के साथ इसका शिलान्यास हुआ. यह सेंटर फिलहाल छोटे स्तर पर गोरखपुर शहर में सीतापुर आंख अस्पताल के परिसर में संचालित हो रहा है.
एईएस/जेई के बारे में जब केंद्र-प्रदेश सरकारें और उनके मंत्री बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते हैं तो इन तथ्यों को जरूर ध्यान रखाना चाहिए और उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए कि इस बीमारी से जब इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो रही है तो इस बीमारी की रोकथाम के उपायों पर अमल करने में इतनी सुस्ती क्यों है?
गोरखपुर में एईएस/जेई से बच्चों की मौत के मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 जनवरी 2007 में पूर्वी उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस की स्थिति को नेशनल इमरजेंसी जैसा बताते हुए उसके अनुरूप केंद्र और प्रदेश सरकार को हर कदम उठाने को कहा था.
हाईकोर्ट के इस निर्देश के इन 12 वर्षों में सरकारों की कार्य प्रणाली को देखते हुए क्या यह लगता है कि वे हालात को ठीक-ठीक समझ पा रहे हैं और उसके अनुसार कदम उठा पा रहे हैं चाहे वह मुज़फ्फरपुर हो या गोरखपुर?
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)