मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह के मामलों को किसी भी सरकार को अपने अपमान के तौर पर नहीं लेना चाहिए. सरकार को स्थितियां सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए और उन संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जो राज्य में जल संरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध हैं.
चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि तमिलनाडु की सरकार को उन संगठनों के साथ काम करना चाहिए जो जलाशयों के संरक्षण में रुचि रखते हैं. अदालत की यह टिप्पणी राज्य के कई हिस्से में चल रहे जल संकट के परिप्रेक्ष्य में आई है.
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से यह भी कहा कि राज्य में जल संकट को उजागर करने के लिए हो रहे प्रदर्शनों को न रोकें.
जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने चेन्नई के पुलिस आयुक्त को शुक्रवार को निर्देश दिया कि गैर सरकारी संगठन अरापुर इयक्कम को महानगर में वर्तमान जल संकट को लेकर 30 जून को वल्लुवरकोट्टम में सुबह नौ बजे से एक बजे तक प्रदर्शन करने की अनुमति दी जाए.
यह संगठन केलु चेन्नई केलु (सुनो चेन्नई सुनो) नाम से यह प्रदर्शन करने वाला है.
न्यायाधीश ने कहा, ‘प्रदर्शन के दौरान जिस मद्दे को उछाला जा रहा है, वह ज्वलंत मुद्दा है जिसके बारे में लोगों को अवश्य जानना चाहिए. सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए हर कदम उठा रही है कि महानगर के हर कोने में जल की आपूर्ति हो.’
उन्होंने कहा, ‘बहरहाल, यह महसूस करना महत्वपूर्ण है कि हम इस स्थिति तक कैसे पहुंचे क्योंकि पहले कई जलाशयों का अतिक्रमण हुआ जिससे पारिस्थितिकी तंत्र वस्तुत: नष्ट हो गया.’
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है और पूरे राज्य में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए और गैर सरकारी संगठन इसके अगुआ हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इस तरह के मामलों को किसी भी सरकार को अपने अपमान के तौर पर नहीं लेना चाहिए. सरकार को स्थितियां सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए और उन संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जो राज्य में जल संरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध हैं.’
अदालत ने कहा कि सिर्फ जागरूकता से ही स्थितियों को नियंत्रण में लाया जा सकता है, इसलिए इस तरह के प्रदर्शनों पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.
मालूम हो कि बीते 20 जून को गैर सरकारी संगठन अरापुर इयक्कम और कुछ अन्य संगठनों के प्रदर्शन को कमिश्नर ने अनुमति नहीं दी थी. कमिश्नर ने कहा था कि इससे कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है. इसके बाद संगठन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
मालूम हो कि चेन्नई बीते कुछ हफ़्तों से पानी की भीषण कमी से जूझ रहा है. शहर में न केवल पानी भरने और इकठ्ठा करने के लिए हिंसक झड़पें हुई हैं, बल्कि होटल, मॉल और अन्य व्यावसायिक उपक्रम भी प्रभावित हो रहे हैं.
हाल यह है कि शहर की कई आईटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों से घर से काम करने को कहा है. होटल-रेस्टोरेंट में काम के घंटे कम कर दिए गए हैं. स्थानीय पानी के टैंकर बुक करने के लिए जूझते नजर आ रहे हैं. वहीं राज्य सरकार अवैध रूप से पानी भरने के लिए घरों से पानी के कनेक्शन काट रहे हैं.
पानी की कमी से शहर के अस्पताल भी प्रभावित हुए हैं. एक डॉक्टर ने द हिन्दू को बताया, ‘कई निजी अस्पतालों के पास अपने आरओ प्लांट हैं. हमने पानी के इस्तेमाल को कम किया है, जैसे ऑपरेशन थिएटर में हम दो के बजाय एक टैप का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.’
पार्वती हॉस्पिटल के सीईओ सुजीत सम्बामूर्ति ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मरीजों के लिए पानी की कोई कमी न हो पाए. ऑपरेशन थिएटर भी इस तरह से तैयार होने चाहिए कि सर्जरियों के लिए पर्याप्त पानी हो.
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक जल संकट के चलते शहर के कुछ होटलों ने दोपहर का खाना देना बंद कर दिया है, जिससे पानी का कम से कम इस्तेमाल हो. रिपोर्ट के अनुसार बीते कुछ हफ्तों में होटलों का पानी पर होने वाला खर्च 25 फीसदी बढ़ गया है. पानी की कमी के कारण कई होटलों में टंकी की जगह मग और बाल्टी से पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)