न्यायिक जवाबदेही के लिए मद्रास हाईकोर्ट के जज ने जारी किया अपना परफॉरमेंस कार्ड

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपनी उपलब्धियों के साथ अपनी कमियों को भी गिनाया है और इसके लिए माफी भी मांगी है. जज ने दो सालों में कुल 21,478 मामले निपटाए हैं. इसमें से 18,944 मामलों का निपटारा उन्होंने अकेले किया है.

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपनी उपलब्धियों के साथ अपनी कमियों को भी गिनाया है और इसके लिए माफी भी मांगी है. जज ने दो सालों में कुल 21,478 मामले निपटाए हैं. इसमें से 18,944 मामलों का निपटारा उन्होंने अकेले किया है.

Justice GR Swaminathan
मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन.

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने अपने दो साल की न्यायिक सेवा पूरी होने के मौके पर अपना परफॉरमेंस कार्ड जारी किया है. इस रिपोर्ट में उन्होंने ने अपनी उपलब्धियों के साथ अपनी कमियों को भी गिनाया है और इसके लिए माफी भी मांगी है. जज ने न्यायिक व्यवस्था बेहतर करने के लिए वकीलों से सहयोग की भी मांग की है.

संभवत: ये पहला ऐसा मौका है जब किसी जज ने न्यायिक जवाबदेही की दिशा में इस तरह का अप्रत्याशित कदम उठाया है. दो सालों तक एडिशनल जज रहने के बाद जज बने जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने मद्रास बार को पत्र जारी कर अपने काम का पूरा लेखा जोखा पेश किया.

अपने पत्र के शुरुआत में उन्होंने लिखा, ‘मैं न्यायिक जवाबदेही में विश्वास करता हूं, इसलिए मैं अपना परफॉरमेंस कार्ड जारी कर रहा हूं.’

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने बताया कि उन्होंने दो सालों में कुल 21,478 मामले निपटाए हैं. इसमें से 18,944 मामलों का निपटारा उन्होंने अकेले किया है और बाकी 2,534 मामले उन्होंने डिविजन बेंच के साथ मिलकर निपटाए हैं.

जीआर स्वामीनाथन 31 मई 2030 को रिटायर होंगे, इस तरह उनके द्वारा निपटाए जाने वाले मामलों में काफी ज्यादा बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.

जस्टिस स्वामीनाथन ने किन्नर को दुल्हन के रूप में पंजीकृत करने और कैदियों के मुलाकात के दौरान निजता के अधिकार शामिल होने जैसे कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं.

हाईकोर्ट जज ने अपने पत्र में ये भी स्वीकार किया है कि कभी-कभी उनका व्यवहार बहुत रूखा हो जाता है, इसे वे जल्द ही सुधार लेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने फैसलों में जरूरी तथ्य नहीं छोड़ते हैं.

इस साल 17 जून को, उन्होंने देश में शरण चाहने वालों के अधिकार को मान्यता देते हुए एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया था.

ये फैसला 65 श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों द्वारा दायर की गई याचिका पर थी, जो 1983 में श्रीलंका में जातीय संघर्ष के बाद भारत में भाग आए थे और तब से तिरुचि में एक शरणार्थी शिविर में रह रहे थे.

इसके अलावा जस्टिस स्वामीनाथन ने खुद की आलोचना करते हुए कुछ मुकदमों का निपटारा न कर पाने की वजह से वकीलों और मुकदमेदारों से हाथ जोड़ कर माफी मांगी है. जज ने कहा कि आगे से ऐसी स्थिति ने पैदा हो इसलिए उन्होंने खुली अदालत में फैसला लिखाने का निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा, ‘मेरे कई आदेश बहुत गूढ़ रहे हैं. मैं बार से सराहना करने का अनुरोध करता हूं कि चूंकि लंबित मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए मैंने ज्यादा लंबे फैसले लिखने के बजाय मामले के निपटारे पर ज्यादा ध्यान दिया.’

जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि वे आशा करते हैं कि हम गलतियों को सुधार लेंगे और इसके लिए उन्हें बार से बहुत उम्मीद है. जज ने कहा, ‘मेरा विश्वास है कि अगर आप अच्छी वकालत करते हैं तो मैं अच्छे फैसले लिख सकूंगा. खराब वकालत की वजह से खराब फैसला आता है.’

जज ने वकीलों से गुजारिश की है कि जब उनके मामले का रोस्टर मुख्य न्यायाधीश द्वारा तैयार कर दिया जाता है को उन्हें अपने मुवक्किल (क्लाइंट) से संपर्क करना चाहिए और केस से संबंधित पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि तैयारी पूरी नहीं होने की वजह से वकील जजों से मामले की अगली तारीख की बार बार मांग करते हैं, जिसकी वजह से फैसले में देरी होती है. जस्टिस स्वामिनाथ ने कहा कि हमारा उद्देश्य न्यायिक संस्थान की सेवा करना और बेहतर न्याय देना है.

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन का पूरा परफॉरमेंस कार्ड पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.