नागपुर यूनिवर्सिटी में छात्रों को राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका का पाठ पढ़ाया जाएगा

महाराष्ट्र की नागपुर यूनिवर्सिटी ने इतिहास की किताबों में संशोधन किया है और 'राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनलिज्म' नाम के चैप्टर को हटाकर 'राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका' नाम से एक नया चैप्टर शामिल किया है.

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Karad: Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) workers take part in a foot march (Pathsanchalan) on the occasion of Vijaya Dashami Utsav in Karad, Maharashtra, Thursday, Oct 18, 2018. (PTI Photo) (PTI10_18_2018_000163B)
(फाइल फोटोः पीटीआई)

महाराष्ट्र की नागपुर यूनिवर्सिटी ने इतिहास की किताबों में संशोधन किया है और ‘राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनलिज्म’ नाम के चैप्टर को हटाकर ‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’ नाम से एक नया चैप्टर शामिल किया है.

Karad: Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) workers take part in a foot march (Pathsanchalan) on the occasion of Vijaya Dashami Utsav in Karad, Maharashtra, Thursday, Oct 18, 2018. (PTI Photo) (PTI10_18_2018_000163B)
आरएसएस कार्यकर्ता (फोटोः पीटीआई)

नागपुरः महाराष्ट्र की नागपुर यूनिवर्सिटी में बीए सेकेंड ईयर के छात्रों को राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका और इसके इतिहास के बारे में पढ़ाया जाएगा.

कांग्रेस के छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने पाठ्यक्रम में इसे शामिल किए जाने को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने की बात कही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएसयूआई के जिला इकाई के प्रमुख आशीष मंडपे के नेतृत्व में एनएसयूआई के सदस्यों ने मंगलवार को यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सिद्धार्थ काणे से मुलाकात कर अपना विरोध जताते हुए इस अध्याय को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की.

इस पर काणे ने कहा, ‘हम इस तरह की मांगों को स्वीकार नहीं कर सकते.’

इससे पहले यूनिवर्सिटी ने पाठ्यक्रम से ‘राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनलिज्म’ का हिस्सा हटा दिया था, जिसमें संघ की भूमिका पर चर्चा की गई थी. इसके साथ ही हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग वाला हिस्सा भी हटा दिया है और इसके स्थान पर राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया.

महराष्ट्र युवा कांग्रेस के महासचिव अजीत सिंह ने कहा, ‘हमने वाइस चांसलर को बताया कि आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया था इसलिए राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका के बारे में बताने का कोई औचित्य नहीं है. बल्कि आपको स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आरएसएस के नकारात्मक पहलुओं के बारे में बताना चाहिए.’

काणे ने कहा, ‘आरएसएस का इतिहास 2003 से मास्टर्स डिग्री के पाठ्यक्रम का हिस्सा रहा है. इस साल से इसे स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है. मैंने एनएसयूआई के प्रतिनिधिमंडल को इसके बारे में बताया था बल्कि वे पाठ्यक्रम से आरएसएस के हिस्से को हटाने की मांग कर रहे थे.’

यह पूछने पर कि पाठ्यक्रम में किस पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है?  इस पर काणे ने कहा, ‘यह राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका पर केंद्रित है. यह 1885-1947 की अवधि के दौरान इतिहास की परीक्षा का सिर्फ हिस्सा है. यह 1947 के बाद से आरएसएस के इतिहास के बारे में नहीं है.

काणे ने यह भी बताया कि एमए के इतिहास के पाठ्यक्रम में एक अध्याय आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार पर है.

उन्होंने कहा, ‘बीए के पाठ्यक्रम में कांग्रेस के इतिहास पर भी अध्याय है, ऐसे में कल कोई और इसे हटाने की मांग कर सकता है. हम इस तरह की मांगों को पूरा नहीं कर सकते.’

यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री बोर्ड ऑफ स्टडीज के चेयरमैन श्याम कोरेटी का कहना है, ‘हमने राइज एंड ग्रोथ ऑफ कम्युनलिज्म वाला हिस्सा हटा दिया है, जिसमें आरएसएस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बारे में चर्चा थी. हमने इसकी जगह राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को पाठ्यक्रम में पेश किया.’

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चाव्हाण ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कर कहा कि छात्रों को यह पढ़ाया जाना चाहिए कि किस तरह आरएसएस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन, भारतीय संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का विरोध किया था.