नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच असम के एक भाजपा नेता पवन कुमार राठी को ‘विदेशी नागरिक’ घोषित कर दिया गया है.
गुवाहाटी: नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच असम के एक वरिष्ठ भाजपा नेता पवन कुमार राठी को ‘विदेशी नागरिक’ घोषित कर दिया गया है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान से आने वाले 56 साल के पवन कुमार राठी को अपडेट किए जा रहे राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के मसौदे में नाम न होने के बाद ‘विदेशी’ घोषित किया गया.
पवन का नाम जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे में नहीं था, इसके बाद 26 जून को प्रकाशित हुई एडिशनल एक्सक्लूशन लिस्ट (वह दूसरी सूची, जिसमें एनआरसी मसौदे में शामिल लोगों के नाम नहीं हैं) में उनका नाम आया.
पवन ने बताया कि आज़ादी से पहले उनका परिवार राजस्थान के बीकानेर जिले से आकर दक्षिण असम के सिलचर में बसा था. उन्होंने बताया, ‘मैं चार भाई-बहनों में सबसे छोटा हूं, मेरा जन्म सिलचर में 1963 में हुआ था. ऐसे में एनआरसी अधिकारियों की तरफ से 1 जुलाई को मिला नोटिस चौंकाने वाला था.’
सिलचर में भाजपा के स्थानीय बूथ के अध्यक्ष पवन कुमार राठी पार्टी के टिकट पर स्थानीय चुनाव में खड़े हो चुके हैं. जब उनके परिवार को को उनके ‘विदेशी नागरिक’ घोषित होने का नोटिस मिला, तब वे दिल्ली में थे.
उन्होंने बताया, ‘मैं जितने मिल सके उतने दस्तावेजों की प्रतियां लेने बीकानेर के कालू में अपने पैतृक घर गया था, उन पर ग्राम पंचायत के से दस्तखत करवाए और लौटकर 5 जुलाई को स्थानीय एनआरसी ऑफिस में हुई सुनवाई में शामिल हुआ.’
उनका कहना था कि पंचायत के सदस्य भी यह जानकर आश्चर्यचकित थे कि किसी मारवाड़ी को विदेशी कैसे घोषित किया जा सकता है. उन्होंने बताया, ‘ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि मैंने अपने पासपोर्ट, आधार कार्ड आदि समेत करीब 40 दस्तावेज दिए थे. एनआरसी अधिकारियों का कहना है कि कोई गलती हुई है. उम्मीद है कि वे इसे सुधारेंगे.’
उनके परिवार के और किसी सदस्य का नाम एक्सक्लूशन लिस्ट में नहीं आया है. राठी के परिजनों ने असम बॉर्डर पुलिस से भी इस बारे में पूछा, लेकिन उनके खिलाफ ‘विदेशी’ होने का कोई मामला नहीं आया है.
बता दें कि किसी व्यक्ति को विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा तब ही विदेशी घोषित किया जाता है, जब पुलिस की बॉर्डर विंग की ओर से उस व्यक्ति के विदेशी होने के संदेह का मामला दर्ज करवाया जाता है.
दूसरी ओर एनआरसी अधिकारियों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि राजस्थान के अधिकारियों द्वारा समय पर दस्वावेज़ों को सत्यापित नहीं किया गया हो.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया, ‘हमने बाकी राज्यों से आये हुए आवेदनों से जुड़े दस्तावेजों को चेक किए जाने के लिए संबंधित राज्यों के अधिकारियों को भेजा था. कई मामलों में वहां के अधिकारियों ने जवाब नहीं दिया है.’
मालूम हो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट हो रहे एनआरसी की अंतिम सूची 31 जुलाई को जारी होनी है.
केंद्र नागरिकता विधेयक फिर लाया गया तो सभी पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्री विरोध करेंगे: पेमा खांडू
ईटानगर: अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने मंगलवार को कहा कि केंद्र अगर एक बार फिर नागरिकता संशोधन विधेयक लेकर आता है तो वह पूर्वोत्तर राज्यों के अपने सभी समकक्षों के साथ संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन करेंगे.
राज्य में भाजपा की सरकार का नेतृत्व करने वाले खांडू ने विधानसभा को बताया कि पूर्व में भी उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया था कि इस जनजातीय राज्य को विधेयक के दायरे से अलग रखें.
इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्ध और पारसियों को सात साल के बाद भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. मौजूदा समय में कोई दस्तावेज न रखने पर उन्हें 12 साल बाद भारत की नागरिकता मिलती है.
कांग्रेस विधायक निनोंग एरिंग ने सवाल पूछा था कि अगर बिल थोपा जाता है तो स्थानिय लोगों के हितों की रक्षा के लिये क्या कदम उठाए जाएंगे, इस पर खांडू ने कहा कि राज्य केंद्र से अनुरोध करेगा कि इस विधेयक को थोपा न जाए क्योंकि इसके गंभीर असर होंगे.
खांडू ने कहा, ‘लोकसभा ने आठ जनवरी को यह विधेयक पारित किया था लेकिन इसे राज्यसभा में नहीं रखा गया है. मैं मणिपुर के मुख्यमंत्री के साथ दिल्ली गया था और तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह को विधेयक के संभावित प्रभाव के बारे में बताया था. (हमनें उन्हें बताया था कि) यह पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों के अधिकारों को कमजोर कर सकता है.’
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक जुलाई को राज्यसभा को सूचित किया था कि पड़ोसी देशों से भारत आने वाले हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के लिये एक नागरिकता विधेयक लाया जाएगा.
सिक्किम: कई जगहों पर भूस्खलन से देश के अन्य हिस्सों से कटा राज्य, एनएच-31 ए बंद
गंगटोक: लगातार हो रही भारी बारिश के कारण हुए कई जगहों भूस्खलन की वजह से सिक्किम देश के बाकि हिस्से से शुक्रवार को दूसरे दिन भी कटा रहा. मूसलाधार बारिश ने एनएच-31 ए को अवरुद्ध कर दिया है.
जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स (जीआरईएफ) के अधिकारियों ने कहा कि पश्चिम बंगाल में सेतीझोरा और कालीझोरा के बीच पांच स्थानों पर पहाड़ियों के महत्वपूर्ण हिस्से ढह गए हैं, जिससे राजमार्ग अवरुद्ध हो गया है.
उन्होंने कहा कि सिक्किम में, राजमार्ग पर रांगपो और 32-नंबर के पास भूस्खलन हुआ है. उन्होंने कहा कि मरम्मत और पुनर्स्थापन कार्य में भारी और निरंतर बारिश से बाधा उत्पन्न हो रही है.
मौसम विभाग ने उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम में भारी वर्षा की चेतावनी जारी की है.
अरुणाचल प्रदेश: राज्य के 596 स्कूलों में एक भी छात्र नहीं
ईटानगर: अरुणाचल प्रदेश में कुल 596 प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूल में एक भी बच्चा नहीं पढ़ रहा है जिससे ये स्कूल बगैर कामकाज वाले हो गए हैं.
मंगलवार को विधानसभा में यह जानकारी दी गई. शिक्षा मंत्री तबा तेदिर ने कहा कि विभाग को विभिन्न जिलों से ऐसे स्कूलों की सूची प्राप्त हो गई है.
इससे पहले बीते साल अगस्त में तैयार रिपोर्ट में कहा गया था कि बगैर कामकाज के प्राइमरी स्कूलों की संख्या 254 है जबकि सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 19 है.
भाजपा के जम्बे ताशी के एक सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि विभाग ऐसे स्कूलों को बंद करने जा रहा है.
असम: एक सितंबर तक 200 अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण बनाएगी सरकार
गुवाहाटी: असम सरकार विभिन्न चरणों में विदेशी अधिकरणों का गठन करेगी और एक सितंबर तक राज्य में पहले 200 ऐसे अधिकरणों का गठन कर लिया जायेगा.
अधिकारिक सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. सरकार को 31 जुलाई तक एक हजार विदेशी अधिकरणों का गठन करना था.
अधिकारियों का आकलन था कि 31 जुलाई तक 1000 अधिकरणों का गठन करना सरल नहीं है. यह तारीख एनआरसी के प्रकाशन की अंतिम तारीख है. अभी असम में 100 अधिकरण कार्यरत हैं. इनका काम यह तय करना है कि कोई व्यक्ति विदेशी है या भारतीय नागरिक.
गृह मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कुल एक हजार अधिकरणों का गठन किया जाना है लेकिन इन्हें एक बार में नहीं बनाया जा सकता. इस काम को विभिन्न चरणों में करना होगा.
इसलिए फैसला किया गया है कि एक सितंबर तक पहले चरण में 200 अधिकरणों का गठन किया जायेगा. अगले चरण में फिर 200 अधिकरणों का गठन किया जायेगा. इसकी प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है.
सिक्किम: मुख्यमंत्री तमांग की नियुक्ति रद्द करने संबंधी याचिका पर शीर्ष न्यायालय ने जारी किया नोटिस
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रेम सिंह तमांग की नियुक्ति को रद्द करने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर शुक्रवार को केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा.
दरअसल, याचिका के जरिए उनकी नियुक्ति इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई है कि वह इस पद के लिए योग्य नहीं हैं क्योंकि अतीत में एक सरकारी सेवक के तौर पर कोष के गबन को लेकर उन्हें दोषी ठहराया गया था.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने तमांग को इस आधार पर नोटिस भी जारी किया कि भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया कोई भी व्यक्ति निर्वाचन कानून के मुताबिक अपनी दोषसिद्धि की तारीख से छह साल की अवधि तक अयोग्य रहेगा.
शीर्ष न्यायालय ने तमांग के कोई बड़ा फैसला लेने या राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर अहम शासनिक कार्य करने पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक याचिका पर भी जवाब मांगा है.
राज्य में 25 साल शासन करने वाली सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी के बिमल डी शर्मा द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि तमांग 2024 तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता जी वी राव के मार्फत दायर की गई याचिका में कहा गया है कि फिर भी तमांग को न सिर्फ चुनाव लड़ने की इजाजत दी गई, बल्कि उन्हें सिक्किम का मुख्यमंत्री भी गलत तरीके से चुना गया जबकि वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य थे.
याचिका में कहा गया है कि तमांग को 9,50,000 रुपये के गबन के आरोप में दोषी ठहराया गया था. उन्होंने पशुपालन मंत्री रहने के दौरान यह (गबन) किया था.
याचिका में कहा गया है कि तमांग को विश्वास भंग करने, आपराधिक साजिश रचने और सरकारी सेवक रहने के दौरान अपने पद का भारी दुरूपयोग करने के अपराधों में भी दोषी ठहराया गया था तथा 2017 से 2018 तक वह एक साल जेल में रहे थे.
त्रिपुरा: माकपा का आरोप, राज्य में भाजपा के ‘गुंडे’ उनके उम्मीदवारों को धमका रहे हैं
नई दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने शुक्रवार को दावा किया कि त्रिपुरा में 27 जुलाई को होने वाले पंचायती राज चुनाव में उसके उम्मीदवारों को भाजपा के ‘गुंडों’ द्वारा ‘धमकाया’ गया और उन पर ‘हमला’ किया गया.
पार्टी ने कहा कि इन चुनावों में नामांकन दाखिल करने की तारीख एक से आठ जुलाई तक थी और इस दौरान उसके और अन्य विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को भाजपा के सशस्त्र गुंडों ने नामांकन पत्र एकत्र करने और दायर करने से रोका.
दल की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भाजपा के बाइक पर चलने वाले लफंगे चुनाव कार्यालय के बाहर खड़े हो गये ताकि कोई विपक्षी उम्मीदवार नामांकन पत्र दायर और एकत्र न कर सके. इस दौरान पुलिस केवल मूकदर्शक ही बनी रही.
पार्टी का दावा है कि ऐसे हालात में 11 जुलाई को नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख को माकपा के 121 उम्मीदवारों पर अपना नामांकन वापस लेने पर दबाव डाला गया.
इसमें कहा गया है कि इस आतंकी अभियान के कारण, नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख के बाद अब पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों की 90 फीसदी से अधिक सीटों पर भाजपा का कोई विरोध नहीं है.
मेघालय: सुप्रीम कोर्ट ने दी खदान में फंसे खनिकों के शव निकालने का अभियान बंद करने की अनुमति
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय की एक अवैध खदान में पिछले साल 13 दिसंबर को फंसे 15 खनिकों के शव निकालने का अभियान बंद करने की राज्य सरकार को शुक्रवार को अनुमति दे दी.
यह अवैध खदान पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में करीब 3.7 किलोमीटर जंगल के भीतर है और तीन झरनों को पार करने के बाद ही वहां पहुंचा जा सकता है. पिछले साल दिसंबर में इस खदान के पास बहने वाली लेतेन नदी का पानी इसमें भर जाने के कारण 15 खनिक इसमें फंस गये थे.
जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने इस खदान में फंसे खनिकों को बचाने के लिये तत्काल प्रभावी कदम उठाने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान इस संबंध में आदेश पारित किया.
इस मामले में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने पीठ से कहा कि राज्य सरकार ने इस अभियान को बंद करने के लिये आवेदन दाखिल किया है.
उन्होंने कहा, ‘हम इसका विरोध नहीं कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि हम अब बचाव अभियान के मुद्दे पर नहीं हैं.
याचिकाकर्ता ने न्यायालय ने कहा कि खदानों के मामले में एक मानक संचालन प्रक्रिया होनी चाहिए जिसका मेघालय जैसी किसी भी आपात स्थिति के मामले में पालन किया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि खदानों के लिये मानक संचालन प्रक्रिया से संबंधित मुद्दे पर चार सप्ताह बाद विचार किया जायेगा.
शीर्ष अदालत ने इस साल मार्च में याचिकाकर्ता को खदान में फंसे खनिकों के परिजनों से यह पता लगाने का निर्देश दिया था कि अब तक शव पूरी तरह से सड़ गल गये होंगे तो क्या वे अभी भी इन्हें निकलवाना चाहते हैं.
इससे पहले, न्यायालय को बताया गया था कि रिमोट से संचालित पानी के भीतर चलने वाले वाहन ने खदान में तीन शवों का खोजा था.
त्रिपुरा: पर्यावरण संबंधी मंजूरी न मिलने से350 ईंट के भट्टे बंद
अगरतला: पर्यावरण संबंधी मंजूरी पाने में नाकाम रहने के बाद त्रिपुरा सरकार ने सभी 350 ईंट के भट्टों का बंद कर दिया है.
त्रिपुरा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएसपीसीबी) के अध्यक्ष बी.के अग्रवाल ने कहा कि उच्च न्यायालय के हाल ही में दिए आदेश के बाद यह निर्णय लिया गया है.
अग्रवाल ने कहा, ‘त्रिपुरा उच्च न्यायालय के तीन जुलाई को दिए आदेश के अनुसार पर्यावरण संबंधी मंजूरी हासिल किए बिना ईट के भट्टे नहीं चलाए जा सकते. हमने राज्य में सभी भट्टे बंद कर दिए हैं क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेज नहीं थे.’
उन्होंने बताया कि भट्टों के मालिक आवश्यक पर्यावरणीय मानदंडों को पूरा करने के बाद उनके संबंधित जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में शुक्रवार से नए दस्तावेज दायर कर सकते हैं.
अग्रवाल ने बताया कि विभाग के अधिकारी इसके बाद फिर ईंट के भट्टों का दौरा करेंगे और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे.
नगालैंड: मूल निवासी पंजीकरण निवासियों के निहित अधिकारों के खिलाफ- एनएससीएन-आईएम
दीमापुर: नगालैंड सरकार के राज्य का मूल निवासी पंजीकरण (आरआईआईएन) तैयार करते समय जल्दबाजी में कोई निर्णय न लेने का आश्वासन देने के एक दिन बाद एनएससीएन-आईएम ने आरोप लगाया है कि सरकार का आरआईआईएन को लागू करने का कदम नगालैंडवासियों के नैसर्गिक अधिकारों के खिलाफ है.
‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड’ (इसाक-मुइवा) ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, ‘यह 16 सूत्री मांगों के समझौते का समर्थन करने वाले समूहों के हितों के लिए राजनीतिक रूप से प्रेरित है. नगालैंड राज्य ने न कभी नगा लोगों के राष्ट्रीय निर्णय का प्रतिनिधित्व किया है और न कभी करेगा. यह स्पष्ट तौर पर नगा लोगों को बांटने के लिए बनाया गया है.’
एनएससीएन-आईएम ने कहा कि सभी नगा अपनी पैतृक भूमि में स्वदेशी हैं और यह उसमें निहित है.
गौरतलब है कि नगालैंड के गृह आयुक्त आर. रामकृष्णन ने गुरुवार को जारी किए एक बयान में कहा कि सरकार ने राज्य के लोगों को आश्वासन दिया है कि वह जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेंगे.
एनएससीएन-आईएम ने यह भी कहा कि नगा मुद्दे पर तब तक कुछ भी अंतिम नहीं हो सकता जब तक कि दोनों पक्षों के बीच आपसी रूप से स्वीकृत सम्मानीय राजनीतिक समाधान नहीं निकाल लिया जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)