छत्तीसगढ़ सरकार की बिजली कंपनी ने अडाणी एंटरप्राइजेज के साथ किए गए एक कोयला ब्लॉक कॉन्ट्रैक्ट के संबंध में जानकारी देने से मना कर दिया था. सूचना आयोग ने कंपनी की सभी दलीलों को खारिज करते हुए ये फैसला दिया है.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग ने आदेश दिया है कि राज्य बिजली कंपनी द्वारा साइन किए गए कोयला ब्लॉकों के लिए खनन विकास और संचालन (एमडीओ) अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत सार्वजनिक किया जाना चाहिए. आयोग ने एमडीओ अनुबंधों को गोपनीय बताने और इसे जनहित से जुड़े न होने की छत्तीसगढ़ सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया.
आयोग ने सरकारी बिजली उत्पादन कंपनी छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (सीआरवीएनएल) द्वारा दो बार एमडीओ अनुबंध और इसकी फाइल नोटिंग्स की प्रतिलिपि साझा करने से इनकार करने पर ये फैसला दिया है.
सीआरवीएनएल ने 232 एमटी गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल ब्लॉक से कोयले के खनन, विकास और संचानल के लिए अडाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड और इसकी 100 फीसदी सहायक कंपनी गारे पेलमा-3 कोलियरीज लिमिटेड के साथ एमडीओ अनुबंध किया था.
इसके संबंध में छत्तीसगढ़ स्थित कार्यकर्ता अलोक शुक्ला ने पिछले साल दो फरवरी को आरटीआई के जरिए एमडीओ अनुबंध की प्रमाणित प्रति और इससे संबंधित फाइल नोटिंग्स की प्रतिलिपि मांगी थी.
हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने शुक्ला को सूचना देने से मना करते हुए कहा कि ये जानकारी जनहित में नहीं है. इसके बाद उन्होंने अपील दायर की. लेकिन यहां से भी जवाब न मिलने पर उन्होंने राज्य सूचना आयोग का रुख किया.
राज्य सरकार के अपीलीय अधिकारी ने सूचना देने से मना करते हुए कहा, ‘चूंकि जानकारी व्यापक जनहित में नहीं है. ये सूचना छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड की बौद्धिक संपदा के अंतर्गत आती है और यह एक व्यक्ति से संबंधित है. अत: जन सूचना अधिकारी ये जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है.’
इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए बीते एक मई को पारित आदेश में राज्य सूचना आयोग ने अनुबंध के संबंध में मांगी गई सभी सूचनाएं सार्वजनिक करने को कहा है.
छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त एके अग्रवाल का आदेश अब सभी राज्य सरकारों के साथ-साथ कोल इंडियन लिमिटेड द्वारा साइन किए गए एमडीओ अनुबंधों को आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक करने के लिए एक मिसाल पेश करता है.
हालांकि राजस्थान और महाराष्ट्र सहित कई राज्य सरकारों ने अब तक इस जानकारी को सार्वजनिक करने से मना ही किया है. एक रिटायर्ड केंद्रीय सूचना आयुक्त ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘राज्य सूचना आयुक्त का अन्य राज्यों पर बाध्यकारी नहीं होता है लेकिन इससे प्रेरणा लिया जा सकता है.’
आयोग ने अपने फैसले में कहा कि यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि एमडीओ अनुबंध सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की परिसीमा के अंतर्गत आता है.
अगस्त 2018 में, तत्कालीन कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि क्या एमडीओ समझौतों को आरटीआई आवेदनों के जरिए प्राप्त किया जा सकता है.
इस पर तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था, ‘सरकार द्वारा यह अनिवार्य किया गया है कि खनन विकासक और संचालक (एमडीओ) का चुनाव पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी नीलामी प्रक्रिया के जरिए होना चाहिए. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधान और मॉडल कॉन्ट्रैक्ट अनुबंधों में दिए गए सूचनाओं के खुलासे की जरूरत इस तरह के समझौतों पर लागू होते हैं.’
राज्य सूचना आयोग ने इसी कथन को अपने फैसले का आधार बनाते हुए आरटीआई एक्ट के तहत एमडीओ अनुंबध की सूचनाएं सार्वजनिक करने को कहा है.
सूचना आयुक्त एके अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि ये जानकारी भारत की नैसर्गिक संपदा अर्थात कोयला खदान से संबंधित है, इसके कारण इसमें पहले से ही व्यापक लोकहित/जनहित विद्यमान है.
राज्य सूचना आयोग ने रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड से 30 दिन के भीतर आलोक शुक्ला को ये जानकारी मुहैया कराने का आदेश दिया है.