झारखंड जनाधिकार महासभा ने आरोप लगाया है कि अतिरिक्त जिला जजों के प्रमोशन की सूची जारी की है. जिन 51 जूनियर जजों का प्रमोशन किया गया है, उनमें से एक भी आदिवासी नहीं हैं. प्रमोशन पाने वाले अधिकतर जज ऊंची जातियों से हैं.
नई दिल्लीः नागरिक समाज के संगठनों के एक समूह, झारखंड जनाधिकार महासभा ने शनिवार को आरोप लगाया कि राज्य में हाल ही में जिन जजों का प्रमोशन किया गया है, उनमें एक भी आदिवासी जज नहीं है.
महासभा ने अतिरिक्त जिला जजों के प्रमोशन की एक सूची जारी की है, जिससे साफ है कि जिन 51 जूनियर जजों का प्रमोशन किया गया है उनमें एक भी आदिवासी नहीं है और अधिकतर जज ऊंची जातियों के हैं.
इस संगठन से जुड़ी एक वकील ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि राज्य की न्यायपालिका में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व बहुत खराब है. यह झारखंड जैसे राज्य की बहुत ही गंभीर समस्या है. झारखंड की स्थापना ही आदिवासियों को उनकी पहचान और हक देने के लिए की गई थी.
Not a single Adivasi in the long list of judicial officers promoted as additional district judge in “tribal” state of Jharkhand. Most are upper castes. What about Constitutional values of justice and equality? @drajoykumar @HemantSorenJMM @Dipankar_cpiml @KunalSarangi @mayur_jha pic.twitter.com/7AoGawUChC
— Jharkhand Janadhikar Mahasabha (@JharkhandJanad1) July 20, 2019
कार्यकर्ता एलिना होरो ने कहा, ‘न्यायपालिका में चार स्तरीय संरचना है. एक बार आपकी नियुक्ति होने पर आप न्यायिक मजिस्ट्रेट या जूनियर डिविजन स्तर के जज के तौर पर काम शुरू करते हैं. इसके बाद प्रमोशन के बाद आप वरिष्ठ स्तर के जज के तौर पर काम करते हैं और इसके बाद अतिरिक्त जिला जज और अंत में जिला जज बनते हैं. झारखंड में मौजूदा न्यायिक व्यवस्था ऐसी है कि आपको वरिष्ठ स्तर पर और उससे ऊपर मुश्किल से ही कोई आदिवासी जज मिले.’
यह दर्शाता है कि झारखंड की सरकार न्यायपालिका में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व को लेकर किस तरह उदासीन बनी हुई है.
उन्होंने कहा, ‘कुछ अपवादों को छोड़ दें तो राज्य में आदिवासी मामलों, उनकी परंपराओं और प्रथाओं को समझने वाले जजों की कमी है और इस जानकारी की कमी उनके फैसलों से झलकती है.’
हालांकि, महासभा वरिष्ठ स्तर की न्यायपालिका में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं होने को लेकर आलोचना कर रही है लेकिन हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अंबुज नाथ की राय इससे अलग है.
उन्होंने द वायर को बताया, ‘नियमों और विनियमों को ध्यान में रखते हुए प्रमोशन किए गए हैं. सभी 51 जजों को उनकी योग्यता के आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था. जूनियर स्तर पर कई आदिवासी जज हैं लेकिन उनमें से कोई भी अतिरिक्त जिला जज के पद के लिए प्रमोशन के मापदंडों को पूरा नहीं कर पाया. हमने नियमों के अनुरूप ही सारी प्रक्रियाओं का पालन किया.’
अंबुज नाथ ने कहा कि अदालतों द्वारा स्थापित किए गए नियमों के अनुसार ही प्रमोशन किए गए. उन्होंने कहा कि झारखंड में प्रत्यक्ष न्यायिक नियुक्तियों के लिए आरक्षण नीति 2007 में लागू हुई थी.
उन्होंने कहा, ‘उससे पहले राज्य में किसी भी स्तर पर कोई आदिवासी जज नहीं था. साल 2007 के बाद इनकी नियुक्तियां की गईं. फिलहाल, ये (आदिवासी) अतिरिक्त जिला जज के पद के लिए योग्यता शर्तों पर खरे नहीं उतरे. अगर भविष्य में इन योग्यता कसौटियों पर ये खरे उतरेंगे तो इनका भी प्रमोशन किया जाएगा.’
अंबुज नाथ ने कहा कि न्यायपालिका में प्रमोशन वरिष्ठता, परफॉर्मेंस जैसे कई कारकों पर आधारित होता है.