आरटीआई कानून में संशोधन के विरोध में उतरा विपक्ष, कहा- इसे निष्प्रभावी बनाया जा रहा

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि आरटीआई कानून देश के लोकतंत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि थी और इसने सरकार के हितों को कई बार चुनौती दी है.

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कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि आरटीआई कानून देश के लोकतंत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि थी और इसने सरकार के हितों को कई बार चुनौती दी है.

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आरटीआई संशोधन विधेयक के विरोध में अपनी बात रखते कांग्रेस नेता शशि थरूर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: विपक्ष ने सोमवार को लोकसभा में मोदी सरकार द्वारा लाए गए सूचना का अधिकार कानून में संशोधन प्रस्ताव की आलोचना की और आरोप लगाया गया कि ये कानून को कमजोर करने और पारदर्शिता आयोग को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरह निष्प्रभावी बनाने की कोशिश है.

संशोधन के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर करने के आरोपों को खारिज करते हुए सरकार ने कहा कि विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है क्योंकि प्रस्तावित संशोधन केवल कामकाज को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से लाया गया है.

विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि कानून में बदलाव करके सरकार अपने मनमुताबिक सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करना चाहती है और जो आयुक्त सरकार के हिसाब के नहीं होंगे उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार उन्हें को मिल जाएगा.

थरूर ने कहा, ‘ये संशोधन विधेयक नहीं बल्कि निष्कासन विधेयक है.’ उन्होंने कहा कि यह कानून देश के लोकतंत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि थी और इसने सरकार के हितों को कई बार चुनौती दी है. थरूर ने सवाल उठाया कि यह विधेयक बिना किसी सार्वजनिक विचार विमर्श के क्यों लाया गया.

थरूर ने कहा, ‘सरकार इस विधेयक को पारित कराने में इतनी जल्दबाजी क्यों कर रही है? क्या ये इस वजह से है क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रधानमंत्री की डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश दिया था.’

कांग्रेस नेता ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि अभी भी केंद्रीय सूचना आयोग में चार पद खाली हैं. उन्होंने कहा, ‘आरटीआई संशोधन विधेयक, 2019 आरटीआई कानून को कमजोर करने की सोची-समझी कोशिश है और इसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरह निष्प्रभावी बनाया जा रहा है.’

वहीं, डीएमके सांसद ए. राजा ने कहा कि इस संशोधन के जरिए सरकार सूचना आयुक्तों को अपनी कठपुतली बनाना चाह रही है. हालांकि भाजपा के जगदंबिका पाल ने कहा कि सरकार इसके जरिए आरटीआई कानून को और प्रभावी बनाना चाह रही है.

लोकसभा ने सोमवार को सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी गई. इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्तें केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.

मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है.

एमआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी समेत कुछ सदस्यों ने विधेयक पर विचार किए जाने और इसके पारित किए जाने का विरोध किया और मतविभाजन की मांग की थी. ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संविधान और संसद को कमतर करने वाला है.

विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से राज्यों में भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों की नियम, शर्तें तय करेगी जो संघीय व्यवस्था तथा संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ है.

चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक, लोक प्रशासन तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि पारदर्शिता के सवाल पर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है. उन्होंने जोर दिया कि सरकार अधिकतम सुशासन, न्यूनतम सरकार के सिद्धांत के आधार पर काम करती है.

इसके अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सूचना का अधिकार कानून में संशोधन करने के केंद्र के कदम का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इससे केंद्रीय एवं राज्य के सूचना आयोगों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी.

अपनी सियासी पारी शुरू करने से पहले आरटीआई कानून को लागू करवाने की दिशा में सक्रियता से काम करने वाले केजरीवाल ने कहा कि आरटीआई कानून में संशोधन करना एक खराब कदम है.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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