सुप्रीम कोर्ट ने असम में एनआरसी के अंतिम प्रकाशन की समयसीमा बढ़ाकर 31 अगस्त की

केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी में गलत तरीके से शामिल किए गए और उससे बाहर रखे गए नामों का पता लगाने के लिए 20 फीसदी नमूने का फिर से सत्यापन करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी, जिसे उसने ठुकरा दिया.

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Nagaon: People wait to check their names on the final draft of the state's National Register of Citizens after it was released, at an NRC Seva Kendra in Nagaon on Monday, July 30, 2018. (PTI Photo) (PTI7_30_2018_000127B)
Nagaon: People wait to check their names on the final draft of the state's National Register of Citizens after it was released, at an NRC Seva Kendra in Nagaon on Monday, July 30, 2018. (PTI Photo) (PTI7_30_2018_000127B)

केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी में गलत तरीके से शामिल किए गए और उससे बाहर रखे गए नामों का पता लगाने के लिए 20 फीसदी नमूने का फिर से सत्यापन करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी, जिसे उसने ठुकरा दिया.

Nagaon: People wait to check their names on the final draft of the state's National Register of Citizens after it was released, at an NRC Seva Kendra in Nagaon on Monday, July 30, 2018. (PTI Photo) (PTI7_30_2018_000127B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के अंतिम प्रकाशन की समयसीमा मंगलवार को बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी लेकिन उसने 20 फीसदी नमूनों के फिर से सत्यापन कराने का केंद्र और राज्य सरकार का अनुरोध ठुकराया दिया.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन की पीठ ने असम एनआरसी के समन्वयक प्रतीक हजेला की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद इसके अंतिम प्रकाशन की अवधि 31 जुलाई से बढ़ाकर 31 अगस्त करने के बारे में आदेश पारित किया.

केंद्र और असम सरकार ने एनआरसी में गलत तरीके से शामिल किए गए और उससे बाहर रखे गए नामों का पता लगाने के लिए 20 फीसदी नमूने का फिर से सत्यापन करने की अनुमति न्यायालय से मांगी थी.

केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और असम सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस संबंध में पक्ष रखे लेकिन न्यायालय इससे संतुष्ट नहीं हुआ.

दोनों सरकारों ने 19 जुलाई को शीर्ष अदालत से कहा था कि ‘भारत दुनिया के शरणार्थियों की राजधानी नहीं हो सकता’ और उन्होंने असम एनआरसी कार्यक्रम को पूरा करने की 31 जुलाई की समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध किया था.

उन्होंने एनआरसी में बड़ी संख्या में बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों में गैरकानूनी घुसपैठियों को शामिल किए जाने की अवधारणा को दूर करने के लिए नमूनों के तौर पर 20 फीसदी नामों का फिर से सत्यापन करने की अनुमति चाही थी.

केंद्र और राज्य सरकार ने 17 जुलाई को न्यायालय में दायर आवेदन में कहा था कि एनआरसी के मसौदे में बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों में 20 फीसदी और शेष अन्य जिलों में 10 फीसदी नमूनों का फिर से सत्यापन करने की अनुमति दी जाए.

सरकार का तर्क था कि भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं और गैरकानूनी तरीके से आए बांग्लादेशी नागरिकों के नाम इसमें जोड़े गए हैं.

आवेदन में किए गए अनुरोध के समर्थन में सरकार ने शीर्ष अदालत के 2018 के आदेश का हवाला दिया था जिसमें उसने कहा था कि एनआरसी के मसौदे में से 10 फीसदी लोगों के नामों के फिर से सत्यापन पर विचार किया जा सकता है.

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करने का कार्यक्रम शीर्ष अदालत की निगरानी में चल रहा है. इस संबंध में एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर, 2017 और एक जनवरी, 2018 की दरम्यानी रात में प्रकाशित हुआ था. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से सिर्फ 1.9 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल किए गए थे.

मालूम हो कि 20वीं सदी की शुरुआत में बांग्लादेश से असम में बड़ी संख्या में लोग आए. असम इकलौता राज्य है जहां एनआरसी है, जिसे सबसे पहले 1951 में तैयार किया गया था.

1951 में तैयार एनआरसी को अपडेट करने के लिए यह कवायद की जा रही है. एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया जाएगा जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)