इस योजना के तहत यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया तो केदारनाथ त्रासदी जैसी घटना दोबारा हो सकती है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के एक आदेश में सुधार के साथ उत्तराखंड के चार पवित्र नगरों को सभी मौसम में जोड़ने वाली 900 किलोमीटर लंबी महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना को हरी झंडी दे दी है.
न्यायालय ने पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर विचार के लिए एक नई उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित की है. अदालत ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को आदेश दिया कि 22 अगस्त तक इस उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाए.
चारधाम परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पर्वतीय शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को सभी मौसम के अनुकूल सड़कों से जोड़ना है. पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने के तरीकों को लेकर इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं.
गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजंस फॉर ग्रीन दून’ ने हरित अधिकरण के पिछले साल 26 सितंबर के आदेश के बाद शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. अधिकरण ने व्यापक जनहित के मद्देनजर इस परियोजना को मंजूरी दी थी.
याचिकाकर्ता ‘सिटीजंस फॉर ग्रीन दून’ ने कहा था कि यदि इस परियोजना को जारी रखने की अनुमति दी गई तो इससे पारिस्थितिकी को अपूरणीय नुकसान होगा, जो 10 ताप बिजली परियोजनाओं द्वारा किए गए नुकसान के बराबर होगा.
संगठन ने यह भी कहा था कि उत्तराखंड के पहाड़ बहुत नाजुक हैं और यदि पर्यावरण के प्रति सरोकार का ध्यान नहीं रखा गया तो 2013 की केदारनाथ त्रासदी जैसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है.
एनजीटी ने 26 सितंबर 2018 को इस महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना की निगरानी के लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यूसी ध्यानी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी.
याचिकाकर्ता संगठन का कहना था कि इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है और इस समय वहां चल रहा काम पूरी तरह से गैरकानूनी है.
उनका यह भी आरोप था कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री को जोड़ने के लिए सड़कें चौड़ी करने का काम पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके किया जा रहा है.
पर्यावरण मंत्रालय ने भी अधिकरण को सूचित किया था कि उसे इस परियोजना के लिए कोई पर्यावरण मंजूरी का प्रस्ताव नहीं मिला था और इसलिए ऐसी परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन का अध्ययन कराने का सवाल ही नहीं था.
संगठन का दावा है कि इस परियोजना से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी.
जस्टिस आरएफ नरिमन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने इस परियोजना के खिलाफ याचिका की सुनवाई के बाद राष्ट्रीय हरित अधिकरण के 26 सितंबर, 2018 के आदेश में संशोधन करते हुए एक नई उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन कर दिया.
इसके अलावा अदालत ने इसमें अहमदाबाद स्थित भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के एक प्रतिनिधि, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक प्रतिनिधि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के एक प्रतिनिधि, सीमा सड़क मामलों से संबंधित रक्षा मंत्रालय के एक प्रतिनिधित्व को शामिल किया है.
शीर्ष अदालत ने समिति को निर्देश दिया है कि वह चार महीने के भीतर अपनी सिफारिशें न्यायालय में पेश करे. इसके बाद यह समिति तीन-तीन महीने पर अपनी बैठक करेगी ताकि उन पर अमल सुनिश्चित किया जा सके और वह प्रत्येक समीक्षा बैठक के बाद अगले उपायों के लिए नये सुझाव दे सके.
पीठ ने कहा कि समिति समूची हिमायल घाटी पर चारधाम परियोजना के कुल और अलग-अलग असर का आकलन करेगी और इस मकसद से पर्यावरण प्रभाव आकलन के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समिति निर्देश देगी.
न्यायालय ने कहा कि इस परियोजना के पर्यावरण और सामाजिक जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने के इरादे से उच्चाधिकार प्राप्त समिति को विचार करना चाहिए कि क्या संपूर्ण चारधाम परियोजना में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए?
समिति उन स्थानों की पहचान करेगी जहां खनन कार्य शुरू हो गया है और उस क्षेत्र को सुदृढ़ करने और इसके मलबे के सुरक्षित निस्तारण के उपायों की सिफारिश करेगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)