कश्मीर: मीडिया प्रतिबंध का समर्थन करने के प्रेस काउंसिल के कदम की पत्रकार संगठन ने की आलोचना

प्रेस काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगे प्रतिबंधों का समर्थन किया था.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

प्रेस काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगे प्रतिबंधों का समर्थन किया था.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली: भारत में मान्यता प्राप्त पत्रकारों के एकमात्र संगठन प्रेस एसोसिएशन ने भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के उस कदम पर गहरी आपत्ति जताई है जिसमें पीसीआई अध्यक्ष जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की है.

शुक्रवार को पीसीआई अध्यक्ष ने परिषद को बताए बिना ही मामले में दखल देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी थी, जिससे पीसीआई के कम से कम दो सदस्य नाराज हो गए.

पीसीआई की ओर से यह अनुरोध शुक्रवार को वकील अंशुमन अशोक ने किया था. अपने आवेदन में पीसीआई ने संचार माध्यमों पर प्रतिबंध को न्यायोचित ठहराते हुए कहा कि सुरक्षा कारणों से मीडिया पर तर्कसंगत रोक लगाई गई है.

पीसीआई ने कहा कि चूंकि भसीन की याचिका में एक तरफ पत्रकारों…मीडियाकर्मियों के निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रिपोर्टिंग के अधिकार पर चिंता जताई गई है, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता का मामला है, इसलिए परिषद् का मानना है कि इसे अपना विचार उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश करना चाहिए और प्रेस की स्वतंत्रता के साथ ही राष्ट्र हित में उनकी याचिका पर निर्णय करने में सहयोग करना चाहिए.

बता दें कि, बीते 10 अगस्त को भसीन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों को चुनौती दी थी. उन्होंने राज्य में मोबाइल, इंटरनेट और लैंडलाइन सेवाओं पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों में तत्काल ढील देने की मांग की थी ताकि पत्रकार अपना काम कर सकें.

प्रेस एसोसिएशन के दो सदस्य जयशंकर गुप्ता और सीके नायक ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामले में परिषद को विश्वास में नहीं लिया गया. बता दें कि, परिषद के अध्यक्ष गुप्ता और परिषद के महासचिव नायक दोनों पीसीआई के भी मौजूदा सदस्य हैं.

उन्होंने एक बयान जारी करते हुए कहा कि 22 अगस्त को पूरे दिन काउंसिल की मीटिंग चली थी और उस दौरान इस याचिका का कोई जिक्र नहीं हुआ था, जिसे मीटिंग के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया था.

बयान में कहा गया कि बैठक में जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए सदस्यों ने प्रस्ताव भी पेश किया था. उन्होंने दावा किया कि इस मामले पर न तो विचार किया गया और न ही इस पर सदस्यों के विचार मांगे गए. जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्थिति को देखते हुए परिषद ने एक कमेटी का गठन भी किया था लेकिन अध्यक्ष ने कभी भी किसी लिखित याचिका की चर्चा नहीं की.

बयान में आगे कहा गया कि पीसीआई के दो मुख्य उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखना और पत्रकारिता की गुणवत्ता में लगातार वृद्धि करना है. लेकिन पांच अगस्त के बाद से जम्मू-कश्मीर में ना ही कोई अखबार प्रकाशित हो पाया है और ना ही कोई न्यूज एजेंसी अपना काम कर पाई है.

मीडिया पर लगे प्रतिबंध का समर्थन करने पर आउटलुक मैगजीन के पूर्व संपादक और पीसीआई के पूर्व सदस्य कृष्णा प्रसाद ने पीसीआई के कदम की आलोचना की और कहा कि यह जिम्मेदारियों को त्यागने की शर्मनाक हरकत है.

उन्होंने शुक्रवार को द वायर से कहा, ‘लोगों के नाम पर संसद के प्रावधान के तहत गठित हुई प्रेस काउंसिल अगर एक स्वतंत्र मीडिया को देश की स्वायत्तता के खतरे के रूप में देखती है और अगर उसे लगता है कि विशेष परिस्थिति में पाठकों और दर्शकों को अंधेरे में रखा जा सकता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए दुख का दिन है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)