आख़िरकार दुनिया ने विश्वगुरु के ‘स्मार्ट कल्चर’ का लोहा मान लिया

'जनता की मांग पूरी करने में इतनी बुद्धि, वक़्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? जनता जो मांग रही है, वो सच में दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?'

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व्यंग्य:‘जनता की मांग पूरी करने में इतनी बुद्धि, वक़्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? जनता जो मांग रही है, वो सच में दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?’

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स्मार्ट सिटी कैसे बनाई जाए और पब्लिक की बढ़ती हुई मांगें कैसे पूरी की जाएं, इस विषय पर हफ़्ते भर तक गंभीर मंत्रणा के लिए कई देशों के प्रतिनिधि अमेरिका में इकट्ठे हुए. भारत की तरफ़ से एक ‘ज़मीन से जुड़े’ खांटी देशभक्त और संस्कृतिरक्षक मंत्रीजी भारतीय दल का नेतृत्व कर रहे थे.

भारतीय प्रतिनिधियों को छोड़कर बाकी सब लोग बहुत परेशान थे. वे सब बार-बार मोटी-मोटी किताबें और रिपोर्टें उलटते-पलटते, कभी लैपटॉप पर कुछ एनालिसिस करते, कभी नक़्शे बनाते कभी मॉडल्स बनाकर देखते. कभी ब्रेनस्टार्मिंग होती, कभी प्रेजेन्टेशन, इस सबके बीच वे अपना खाना-पीना तक भूल गए.

लेकिन भारतीय प्रतिनिधि दिन भर मज़े से सुरती रगड़कर खाते, वीडियो गेम खेलते और न्यूयार्क में शॉपिंग करते, डिस्को में जाकर नाचते और डटकर दावत उड़ाते.

बाक़ी लोग ये सब देख रहे थे. वे समझे कि शायद भारतीयों ने अपनी तैयारी बहुत पहले ही पूरी कर ली है इसीलिए वे टेंशन-फ्री हैं.

एक अमेरिकन ने कुछ झेंपते शरमाते हुए भारतीय मंत्रीजी से पूछा, ‘भाई आप इतने मज़े में हैं. शायद आपका सब कुछ तैयार हो गया है.’

मंत्रीजी बोले, ‘हमारी तैयारी तो हज़ारों साल पहले ही हो चुकी है महाराज… आप आज स्मार्ट सिटी की बात कर रहे हो, हम तो सदियों से एक स्मार्ट कल्चर बनाकर बैठे हैं… इस स्मार्ट कल्चर को थोड़ा-सा इधर उधर घुमाते ही हम जिसे चाहें रातोंरात स्मार्ट या ईडियट बना सकते हैं.’

ये सुनते ही अमेरिकन को चक्कर आ गया, वो संभलते हुए बोला, ‘ये स्मार्ट कल्चर क्या चीज़ है? हम तो ये पहली बार सुन रहे हैं.’

मंत्रीजी: स्मार्ट कल्चर हज़ार बीमारियों की एक दवा है. आप हर बीमारी का अलग-अलग इलाज करते हो न… आप एलोपैथी वाले हो. आपके पास आंख का डॉक्टर अलग और पेट का डॉक्टर अलग होता है… हम आयुर्वेदिक इश्टाइल में काम करते हैं. एक ही काढ़े से सर के बाल से लेकर पांव की खाल तक का इलाज कर देते हैं… आप सौ सुनार की करते हो, हम एक लोहार की करते हैं.’

अमेरिकन: मैं कुछ समझ नहीं सर, थोड़ा विस्तार से बताइए न!

मंत्रीजी: देखो भाई… ये सनातन फार्मूला है थोड़ी कही ज्यादा समझना… समझो कि तुम्हारी पब्लिक हल्ला मचाती है कि उसे स्मार्ट सिटी चाहिए, बुलेट ट्रेन या मेट्रो ट्रेन चाहिए, या जंगल मैदान जाने की बजाय पक्के टॉयलेट चाहिए, झुग्गी-झोपड़ी की बजाय पक्के मकान चाहिए या कहो कि उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज-यूनिवर्सिटी या आधुनिक अस्पताल मांगती है, तब आप क्या करेंगे?

अमेरिकन: इतनी सब मांगें पूरी करने के लिए हम एक कमीशन बैठाएंगे, वो रिसर्च करेगा, प्लान बनाएगा, एस्टिमेट बनाएगा, अलग-अलग डिपार्टमेंट्स से सुझाव मांगेगा कि क्या काम कितने समय में कितने मिलियन डॉलर्स में होगा… फिर…

मंत्रीजी (टोकते हुए): ऊ सब छोड़िए महाराज, ये बताइए पब्लिक को क्या देंगे?

अमेरिकन: देखिए हम पब्लिक को सबसे पहले पक्की और रेग्युलेटेड कॉलोनियां बनाकर देंगे. साफ़ पानी का इंतज़ाम करेंगे. चौड़ी सड़कें बनाकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट देंगे. बड़े अस्पताल और स्कूल कॉलेज बनाकर देंगे. नगर निगमों को ट्रेनिंग देकर वेस्ट मैनेजमेंट वाटर रिसाइकलिंग सीवर ट्रीटमेंट सिखाएंगे. रेलवे ट्रैक सुधारकर बुलेट ट्रेन दौड़ाएंगे, शहरों में ऊंचे पिलर और सुरंगें बनाकर मेट्रो ट्रेन दौड़ाएंगे…

मंत्रीजी: अरे बस करो महाराज… इस सब में इतनी बुद्धि, वक़्त और पैसा ठोंक दोगे तो अगला चुनाव कैसे लड़ोगे? ये सब सच में ही दे दिया तो अगले चुनावी घोषणापत्र में क्या सबको मंगल की सैर कराने का वादा करोगे?

अमेरिकन एकदम आसमान से ज़मीन पर गिरता है और पूछता है, ‘लेकिन ये सब न दिया तो पब्लिक आंदोलन करेगी, शासन प्रशासन को उखाड़ फेंकेगी. चलिए आप ही बताइए कि आप कैसे डील करंगे?’

मंत्रीजी सुरती दबाए मंद-मंद मुस्काते हुए कहते हैं, ‘भैयाजी, यहीं तो स्मार्ट कल्चर काम आता है. कुच्छ भी बनाने की ज़रूरत नहीं, जनता जो मांगती है उसके बारे में कहानियां सुनाइए और ये बताइए कि वो जो मांग रही है उससे ज़्यादा उनके पास पहले से ही धरा हुआ है.’

अमेरिकन: कुछ समझे नहीं सर, तनिक और विस्तार से बताइए न!

मंत्रीजी: अरे भाई, तुम भारतवर्ष के इतिहास में नहीं झांके हो कभी. हम एक ही विद्या जानते हैं – पब्लिक मैनेजमेंट – बस उसी से सब ठीक हो जाता है…

समझो… हमारी पब्लिक के हमने दो हिस्से किए हैं. पांच प्रतिशत वे लोग जो कुछ भी करके सुविधा मांगेंगे ही. वे किसी की नहीं सुनते. हम भी उसी में से आते हैं. वे कुछ बड़े शहरों में रहते हैं. बाकी पंचान्नबे पर्सेंट ग़रीब-गुरबे छोटे शहरों या गांव में रहते हैं. अब पंचान्नबे पर्सेंट ग़रीब पब्लिक को मैनेज करना ही स्मार्ट कल्चर का असली हुनर है.

सुनो, जैसे कि ये ग़रीब पब्लिक बड़े अस्पताल मांगती है तो हम आयुर्वेद और योग पकड़ा देते हैं, ये उबालो वो घिसो, इधर से खींचो उधर से छोड़ो और ताली बजाकर कीर्तन करो. फिर यदि वे आधुनिक ट्रेन, मेट्रो और हवाई जहाज़ के लिए बिलबिलाते हैं तो हम पुष्पक विमान दिखाकर पूर्वजों के जयकारे शुरू करवा देते हैं कि ये लो, ये सब तो हमारे पास हज़ारों साल से है ही, इसके आगे हवाई जहाज़ की क्या औकात है? पब्लिक शहरों में पक्के मकान या टॉयलेट मांगती है तो कहते हैं कि भारत की आत्मा गांव में बसती है, अब गांव मतलब लोटा और जंगल मैदान… समझे कि नहीं…?

अगर कोई बड़े स्कूल कॉलेज या अंग्रेजी शिक्षा मांगे तो हम गुरुकुल परम्परा, वैदिक विज्ञान, अध्यात्म और संस्कृत का ढोल पीटने लगते हैं. लोग अच्छे कपड़े मांगें तो थोड़ी देर के लिए हम ख़ुद ही फ़टी धोती और टायर की चप्पल पहनकर रैली निकाल देते हैं… पब्लिक अच्छा खाना या पानी मांगती है तो हम शाकाहार ब्रह्मचर्य और सात्विक भोजन की फफूंद उड़ाकर दस पच्चीस मरियल से साधू खड़े कर देते हैं कि इन्हें देखो और त्याग करना सीखो. स्वर्ग जाना है तो भुक्खड़ों की तरह खाने की बात न करो त्याग और तप की बात करो.

फिर आख़िर में ऐसी कथाएं रचते हैं जिनमे ग़रीब दरिद्र नारायण हों, अछूत हरिजन हों, विकलांग दिव्यांग हों, किसान अन्नदाता हों, स्त्रियां देवी हों… दो तीन हज़ार कथाकार समाज में छोड़कर रोज़-रोज़ ये कहानियां ठेलते रहिए, जनता ख़ुश होकर सन्तोष में जीने लगेगी, बाक़ी सब भूल जाएगी. अब सन्तोषी सदा सुखी… कुछ बूझे कि नहीं?

अमेरिकन: अरे वाह! ये तो चमत्कार है. हम तो इतना मग़जमारी करते हैं, पैसा लगाते हैं, रिसर्च करते हैं और फिर भी पब्लिक एक के बाद एक मांग करती ही जाती है, रुकती ही नहीं… अच्छा बस एक बात और बता दीजिए आख़िर में, इस ‘स्मार्ट कल्चर मैनेजमेंट’ से जो पैसा बचता है, उसका क्या करते है?

मंत्रीजी (सुरती थूकते हुए): अरे, ये भी कोई पूछने की बात है, उसी बचत से हम उन शहरी पांच पर्सेंट लोगों के लिए दो-चार विदेशी विमान, मेट्रो, बुलेट इत्यादि ख़रीद लाते हैं. बाक़ी ग़रीबों को देशभक्ति का गाना गाने के लिए इसी बचत से फाइटर प्लेन, पनडुब्बी, तोप, टैंक हथियार जैसी चीज़ें ख़रीदते हैं… यही बचत फिर आख़िर में राष्ट्रनिर्माण के सबसे बड़े अनुष्ठान में भी काम आती है.

अमेरिकन: राष्ट्रनिर्माण का सबसे बड़ा अनुष्ठान मतलब?

मंत्रीजी (आंख मारते हुए): मतलब अगला चुनाव, और क्या!

अगले दिन से गैर भारतीयों के सारे प्रेजेन्टेशन कैंसल करके सिर्फ़ भारतीय ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं के ‘प्रवचन’ करवाए गए… भारतीयों ने पूरी कॉन्फ्रेंस में भौकाल मचा दिया.

इस तरह आख़िरकार दुनिया ने विश्वगुरु के ‘स्मार्ट कल्चर’ का लोहा मान लिया.