प्रशासन ने कहा कि रोमिला थापर का सीवी यानी कि उनका शैक्षिक एवं कार्य अनुभव देखने के बाद यह फैसला किया जाएगा कि वह बतौर प्रोफेसर पढ़ाना जारी रखेंगी या नहीं. फिलहाल थापर जेएनयू में प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
नई दिल्लीः जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) ने प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर से अपना सीवी (शैक्षिक एवं कार्य अनुभव) विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष भेजने को कहा है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासन द्वारा सीवी देखने के बाद यह फैसला किया जाएगा कि वह बतौर प्रोफेसर पढ़ाना जारी रखेंगी या नहीं. फिलहाल 87 वर्षीय रोमिला थापर जेएनयू में प्रोफेसर एमेरिटस हैं.
जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पिछले महीने थापर को लिखे पत्र में उनसे सीवी जमा करने को कहा था.
पत्र में लिखा था कि विश्वविद्यालय एक समिति का गठन करेगी जो थापर के कामों का आंकलन करेगी और फैसला करेगी कि थापर को प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर जारी रखना चाहिए या नहीं.
मालूम हो कि रोमिला थापर केंद्र सरकार की नीतियों की घोर आलोचक रहीं हैं.
जेएनयू के तीन वरिष्ठ शिक्षकों ने इस बात पर हैरानी जताई है क्योंकि कभी भी किसी एमेरिटस प्रोफेसर से सीवी जमा करने को नहीं कहा गया है. दो शिक्षकों ने कहा कि एक बार चुने जाने के बाद इस पद पर शिक्षक जीवन भर बना रहता है.
नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर जेएनयू के एक वरिष्ठ संकाय ने कहा, ‘यह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित कदम है. प्रोफेसर थापर शिक्षा के निजीकरण, संस्थानों की स्वायत्तता खत्म करना और जेएनयू समेत कई संस्थानों द्वारा मतभेद की आवाज को कुचलने की कोशिश समेत सभी नीतियों की घोर आलोचक रहीं हैं.’
इस पद के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिक्षकों को ही चुना जाता है. जेएनयू में जिस सेंटर से कोई प्रोफेसर सेवानिवृत्त होता है, वह किसी नाम को प्रस्तावित करता है, जिसके बाद संबंधित बोर्ड ऑफ स्टडीज और विश्विद्यालय के अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद मंजूरी देते हैं.
प्रोफेसर एमेरिटस पद के लिए शिक्षक को कोई वित्त लाभ यानी कि कोई सैलरी नहीं मिलती है. उन्हें संबंधित सेंटर में सिर्फ एक कमरा दिया जाता है जहां वह अपने अकादमिक काम करते हैं और कभी-कभी लेक्चर देते हैं. इसके साथ ही शोधकर्ता छात्रों को सुपरवाइज कर सकते हैं.
रोमिला थापर करीब छह दशकों से शिक्षक और शोधकर्ता रही हैं. उन्हें प्रारंभिक भारतीय इतिहास में विशेषज्ञता प्राप्त है. वह जेएनयू में 1970 से 1991 तक प्रोफेसर थीं और उन्हें 1993 में प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर चुना गया.
उन्हें यूएस लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के प्रतिष्ठित ‘क्लूज पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है.
उनकी किताब ‘द पब्लिक इंटलेक्चुअल इन इंडिया’ में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़ रहे असहिष्णुता का आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया है.