पिछले कुछ समय में बिहार में महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार और हत्या की नृशंस घटनाएं सामने आई हैं. इसके अलावा राज्य में लूट और अपहरण की वारदातें भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं.
‘आपके जैसा बकवास हम नहीं कर सकते हैं. आप जो बोलिए. अपराधियों की बहार आ गई है? बिहार में क्या होता था आपको नहीं पता है? चालीस-चालीस, पचास-पचास लोगों का नरसंहार होता था. रात में कोई रोड पर चल नहीं सकता था. एक घटना हो गई. कायरों ने गोली मार दी. गोली कोई भी मार सकता है. डीजीपी अकेले जा रहे हैं, उनको भी कोई गोली मार सकता है. ये अपराधियों की बहार हो गई?’
दो हफ्ते पहले बिहार में कानून और व्यवस्था के हालात को लेकर एक पत्रकार के सवाल पर गुस्से से तमतमाए बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने ये बात कही थी.
डीजीपी छपरा में अपराधियों की गोलियों का शिकार हुए पुलिस कर्मचारी के घर उनके परिजनों को सांत्वना देना पहुंचे थे.
पुलिस कर्मचारी की हत्या से कुछ ही दिन पहले छपरा में ही एक बच्ची को अगवा कर तीन लोगों ने उससे बलात्कार किया था और उसके निजी अंग में सरिया डाल दी थी.
वारदात को अंजाम देने के बाद उसे सड़क किनारे फेंक दिया था. खून से लथपथ लड़की किसी तरह अपने घर पहुंची और बेहोश हो गई. उसके परिजनों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया, जहां हालत में कुछ सुधार होने के बाद उसने आपबीती सुनाई.
इस घटना से पहले चार अगस्त को पश्चिमी चम्पारण के रामनगर प्रखंड के एक गांव में खेत में शौच करने के लिए गई 16 साल की किशोरी की हत्या कर उसके शरीर पर एसिड डाल दिया गया था. यही नहीं, उसके कपड़े भी फाड़ दिए गए थे और नाजुक अंगों को ब्लेड से नुकसान पहुंचाया गया था.
किशोरी के घर में शौचालय नहीं था, जिस कारण उसे खेत में जाना पड़ता था. उसने पांचवी तक ही पढ़ाई की थी. इसके बाद की पढ़ाई के लिए उसे घर से दो किलोमीटर दूर बाजार में स्थित स्कूल में जाना पड़ता. किसी अनहोनी की आशंका के मद्देनजर उसकी पढ़ाई बंद करवा दी गई थी.
लड़की के 40 वर्षीय पिता ने कहा, ‘दिन-समय खराब है. स्कूल पढ़ने जाती और कुछ हो जाता, तो क्या करते! इसी डर से हमने उसकी पढ़ाई बंद करवा दी थी. वह ज्यादा समय घर में ही रहा करती थी. हम लोग ज्यादा वक्त बाहर नहीं रहने देते थे.’
सुशासन बाबू (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) की इस सरकार में भी एक बाप का ये डर कि बेटी जवान हो रही है, इसलिए उसे घर में बंद रखना है, बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है.
किशोरी के परिजनों को संदेह है कि हत्या से पहले उससे बलात्कार किया गया होगा. हालांकि रामनगर के एसडीपीओ अर्जुन लाल ने बलात्कार की घटना से इनकार किया है.
उन्होंने कहा कि लड़की की हत्या हुई है और दोनों गिरफ्तार आरोपितों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. उन्होंने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि लड़की से बलात्कार नहीं हुआ है.
इस वारदात के महज तीन दिन बाद ही कटिहार जिले के अमदाबाद थाना क्षेत्र के दियारा में दो नाबालिग बहनों से सामूहिक बलात्कार किया गया और फिर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
पुलिस के मुताबिक, उनके शरीर पर जख्म के निशान थे और हत्या के बाद उनके शरीर पर एसिड भी डाला गया था. यही नहीं निजी अंगों पर भी जख्म के निशान पाए गए थे.
स्वाधीनता दिवस से एक दिन पहले गया शहर में एक बच्ची से सामूहिक बलात्कार किया गया और जब वो इंसाफ मांगने के लिए पंचायत के सामने पहुंची तो न्याय दिलाने की जगह उसका सिर मुंडवा कर गांव में घुमाया गया.
दिलचस्प बात ये रही कि इस घटना को दो हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत गया लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी. बाद में जब ये खबर मीडिया में आग की तरह फैली तो पुलिस नींद से जागी और आधा दर्जन से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया.
पिछले महीने के आखिरी हफ्ते में सुपौल में एक 11 साल की बच्ची से बलात्कार किया गया और जब मामला पुलिस तक पहुंचा तो पुलिस ने दोषी पर कार्रवाई करने के बजाय पंचायत में मामला सुलझा लेने की सलाह दी.
खबर के अनुसार, जब बच्ची पंचों के पास गई तो पंचों ने आरोपित पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने के अलावा 11 चप्पल मारने की सजा देकर मामला रफा-दफा कर दिया.
पिछले एक महीने में हुई बलात्कार की घटनाओं में से ये कुछ वारदातें हैं, जिनका जिक्र किया गया है. बिहार राज्य महिला आयोग भी ये स्वीकार करता है कि राज्य में हाल के समय में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं.
आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा ने बताया, ‘ये बात सही है कि राज्य में इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है और लग रहा है कि अपराधियों के भीतर का डर खत्म हो गया है लेकिन हम लोग इन घटनाओं पर तुरंत संज्ञान भी ले रहे हैं.’
बलात्कार की घटनाओं के अलावा हत्या, लूट और अपहरण की वारदातों में भी बढ़ोतरी हुई है. 31 अगस्त और एक सितंबर की बात करें तो पटना, समस्तीपुर, गोपालगंज, सहरसा, मधुबनी, सीवान, मोतिहारी, गया, आरा और भागलपुर में हत्या की 10 वारदातें हो चुकी हैं.
हाल के दिनों में कई हत्याएं फिरौती को लेकर हुई हैं. लिंचिंग की वारदात कमोबेश हर रोज हो ही रही है. इतनी वारदातें हो जाने के बाद भी डीजीपी का पुराने दौर (लालू प्रसाद यादव की सरकार का दौर जब कहा जाता था कि बिहार में जंगलराज है) को याद करने की सलाह देना पुलिस-प्रशासन की लाचारी उजागर करता है.
कानून और व्यवस्था के क्या हालात हैं और पुलिस कैसे काम कर रही है, इसे समझने के लिए कुछ दिन पहले ही एक कार्रवाई को भी याद कर लेना जरूरी है.
पिछले महीने राज्य के 500 से ज्यादा पुलिस कर्मचारियों को थाने की ड्यूटी से इसलिए हटा दिया गया, क्योंकि वे लोग अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं निभा रहे थे.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू नहीं करने, विभागीय जिम्मेदारी से कन्नी काटने, महिलाओं से दुर्व्यवहार करने, भ्रष्टाचार आदि के आरोपों के चलते उन पर ये कार्रवाई हुई.
उस पर तुर्रा ये कि डीजीपी ने एक सितंबर को एक कार्यक्रम में बिहार पुलिस को ब्रिटेन और कनाडा की पुलिस से भी बेहतर होने का खिताब दे दिया.
बिहार पुलिस का खुफियातंत्र इतना कमजोर है कि कुछ दिन पहले राज्य के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को अपना वॉट्सऐप नंबर सार्वजनिक कर आम लोगों से अपील करनी पड़ी थी कि वे आपराधिक गतिविधियों की जानकारी उन्हें दें.
स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) के आंकड़े भी बिहार में लचर होती कानून व व्यवस्था की तस्वीर पेश करते हैं. एससीआरबी के आंकड़ों की मानें, तो इस साल जनवरी से मई के बीच फिरौती के लिए अगवा करने की 14 घटनाएं हुई हैं. वहीं, हत्या की 1277 व बलात्कार की 605 घटनाएं हो चुकी हैं.
इसके अलावा वर्ष 2018 में हत्या की 2933, बलात्कार की 1475 और अपहरण की 10310 घटनाएं हुई थीं. वहीं फिरौती के लिए अगवा करने की 46 घटनाएं दर्ज हुई थीं.
गौरतलब हो कि वर्ष 2005 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो कानून और व्यवस्था एक अहम मुद्दा था. इसी मुद्दे के बूते बिहार में एनडीए की सरकार बनी थी.
नीतीश कुमार की सरकार बनने पर कानून और व्यवस्था के हालात में सुधार भी हुए और इसी सुधार पर नीतीश कुमार वोट मांगा और लगातार तीसरी बार बिहार में सरकार बनाई, लेकिन हाल के समय में बिहार में संगठित अपराधों के साथ ही बलात्कार, लिंचिंग जैसी घटनाएं बढ़ी हैं.
सूबे में कानून और व्यवस्था की स्थिति को लेकर पूर्व में जदयू की सहयोगी पार्टी भाजपा भी सवाल उठा चुकी है. इसी साल जून में भाजपा सांसद रमा देवी ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘वे (नीतीश कुमार) नहीं जानते हैं कि आम लोगों को कैसे सुरक्षा दी जाए. मैं इस बात से सहमत हूं कि हर किसी को सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जा सकती है, लेकिन राज्य में सबसे ज्यादा विवाद जमीन के मुद्दे पर है. सरकार के अधीन काम करने वाले सभी अधिकारियों को चाहिए कि त्वरित कार्रवाई कर इन मुद्दों को सुलझाएं ताकि लोग शांति से रह सकें.’
इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियां भी हमलावर हैं. राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं, ‘डीजीपी जिन नरसंहारों की बात कर रहे हैं, वो सामाजिक सत्ता के संघर्ष का परिणाम था. अभी जो हो रहा है, वो सामान्य अपराध है. छोटे-छोटे मुद्दे पर हत्याएं हो रही हैं. अपराधियों में पुलिस का भय नहीं रह गया है. खाकी वर्दी का रुतबा खत्म हो गया है.’
डीजीपी द्वारा पहले की आपराधिक वारदातों की याद दिलाने को लेकर तिवारी कहते हैं, ‘ठीक बात है कि पहले अपराध होते थे, लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है कि अभी के अपराध को आप जायज ठहराएं. आपकी सरकार पिछली सरकार की फोटोकॉपी थोड़े ही है.’
किसी राज्य में आपराधिक घटनाएं जब बढ़ती हैं तो वहां का कारोबारी वर्ग भी तनाव में आ जाता है और उन्हें अपनी और अपने धंधे की चिंता सताने लगती है.
बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाओं ने कारोबारियों को भी चिंता में डाल दिया है. बिहार चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष पीके अग्रवाल ने कहते हैं, ‘मीडिया में आपराधिक घटनाओं की खबरें देखकर कारोबारी वर्ग परेशान है. उन्हें डर सताने लगा है और वे ये डर जाहिर करने लगे हैं.’
क्या उन्होंने अपनी चिंताओं से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अवगत कराया है, इस सवाल उन्होंने कहा, ‘ये कोई ऐसी बात नहीं है कि मुख्यमंत्री को पता नहीं है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)