पिछले साल सीबीआई में पूर्व निदेशक आलोक वर्मा और पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच हुए विवाद के साथ कई अन्य मामलों के कारण पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी का चार साल का कार्यकाल विवादों से भरा रहा था.
नई दिल्ली: रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) केवी चौधरी को स्वतंत्र निदेशक बनाया है. कंपनी ने शुक्रवार रात शेयर बाजार को इसकी जानकारी दी.
मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी ने शेयर बाजार को बताया कि बोर्ड ने चौधरी को एक गैर-कार्यकारी अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया.
स्टॉक एक्सचेंज द्वारा जारी किए गए 20 जून, 2018 के परिपत्र के अनुसार, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि केवी चौधरी किसी भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के आदेश या किसी अन्य प्राधिकारी के आधार पर निदेशक का पद धारण करने से वंचित नहीं हैं.
बता दें कि, चौधरी 1978 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी हैं. वह 2014 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के प्रमुख बने थे. सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें राजस्व विभाग में काला धन संबंधी मुद्दों पर सलाहकार बनाया गया था. इससे पहले जून 2015 में वह केंद्रीय सतर्कता आयुक्त बनाये गये थे.
कुछ राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों के कारण उनका चार साल का कार्यकाल विवादों से भरा था, जिसमें सबसे अधिक चर्चा 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में हुई भीतरी लड़ाई के संबंध में थी.
2018 के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी को निर्देश दिया था कि वे सेवानिवृत्त जज जस्टिस एके. पटनायक की निगरानी में पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के कामों की जांच करें. चौधरी की रिपोर्ट देखने के बाद 16 नवंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को एक सीलबंद कवर में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था.
उस समय द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, आलोक वर्मा ने चौधरी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे और सीवीसी की निष्ठा पर सवाल उठाया था. वर्मा ने कहा था, मुझे आश्चर्य है कि सीवीसी द्वारा अपनाई जा रही पूछताछ की लाइन इस तरह है जैसे कि मैं पहले से ही दोषी हूं और मुझे अपनी बेगुनाही साबित करनी है.
इसके साथ ही केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीवीसी) के अध्यक्ष के रूप में चौधरी का कार्यकाल भी सहारा-बिड़ला के कागजात की जांच के मामले में बढ़ा दिया गया था. सहारा-बिड़ला दस्तावेजों के एक समूह ने कथित तौर पर संकेत दिया था कि नरेंद्र मोदी सहित वरिष्ठ भारतीय राजनेताओं ने रिश्वत स्वीकार किया था.
वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने यह भी आरोप लगाया था कि सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा ने जांच की थी कि क्या चौधरी का गुरु स्टॉक स्कीम के नाम वाले हाई-प्रोफाइल इनवेस्टमेंट फ्रॉड केस से कोई लिंक है या नहीं.
सीवीसी के रूप में चौधरी की नियुक्ति और कार्यकाल की प्रशांत भूषण, राम जेठमलानी और सुब्रमण्यम स्वामी सहित सभी राजनीतिक दलों ने आलोचना की थी.
सीवीसी के रूप में उनके चयन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने अंततः यह कहते हुए मामले को खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ शिकायतों का में कोई दम नहीं है.
भारतीय वन सेवा अधिकारी और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव चतुर्वेदी ने भी सीवीसी केवी चौधरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा था.
इसके बाद जब उन्होंने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) में आरटीआई दाखिल करके उनके पत्र के संदर्भ में की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी तब 9 जनवरी को केंद्र सरकार ने कहा कि सीवीसी के खिलाफ शिकायतों की निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है. उनके खिलाफ किसी शिकायत पर तभी कार्रवाई की जा सकती है जब दिशानिर्देश तय हो जाएंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)