सभी नगा जनजातीय समूहों के शीर्ष संगठन ‘नगा होहो’ ने बीते बृहस्पतिवार को दावा किया कि एनएससीएन-आईएम ने एक मसौदा समझौते पर हस्ताक्षर के आधार पर अलग झंडा और संविधान की मांग की है.
नई दिल्ली: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुइवाह (एनएससीएन-आईएम) द्वारा अलग झंडे और संविधान की मांग को लेकर बीते 24 अक्टूबर को नई दिल्ली में केंद्र के साथ हुई महत्वपूर्ण बैठक एक बार फिर बेनजीता खत्म हो गई.
जहां एनएससीएन-आईएम अलग नगा झंडे और संविधान को लेकर अपने रुख पर कायम हैं. वहीं केंद्र भी अपनी बात पर अड़ा हुआ. गुरुवार को संसद एनेक्सी भवन में हुई बैठक में ये मुद्दा फिर उठाया गया था. केंद्र और एनएससीएन-आईएम आने वाले समय में फिर बातचीत के लिए सहमत हुए हैं.
नगा शांति समझौते के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र के वार्ताकार एवं नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि को 31 अक्टूबर तक का समय दिया था.
इस बीच, सभी नगा जनजातीय समूहों के शीर्ष संगठन ‘नगा होहो’ ने बीते बृहस्पतिवार को दावा किया कि नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुईवाह (एनएससीएन-आईएम) ने एक मसौदा समझौते पर हस्ताक्षर के आधार पर अलग झंडा और संविधान की मांग की.
नगा होहो ने दावा किया कि इस समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में संगठन ने केंद्र के वार्ताकार के साथ 2015 में हस्ताक्षर किए थे.
नगा होहो के प्रमुख एचके झीमोमी ने यह भी कहा कि जब तक कोई करिश्मा नहीं होता, एनएससीएन-आईएम के शीर्ष नेतृत्व और केंद्र के वार्ताकार एवं नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि के बीच मौजूदा दौर की वार्ता का कोई नतीजा निकलने की संभावना नहीं है.
उन्होंने नगालैंड से फोन पर बातचीत में कहा, ‘नगाओं के लिए अलग झंडा और संविधान की मांग 2015 के मसौदा समझौते के आधार पर की गई. समझौते में स्वीकार किया गया है कि दो अलग इकाइयां हैं. दोनों ही सह-अस्तित्व रख सकती हैं. यही कारण है कि हमने मांग की कि मसौदा समझौते को प्रकाशित किया जाना चाहिए. तब हर चीज साफ हो जाएगी.’
मसौदा समझौते पर तीन अगस्त 2015 को एनएससीएन-आईएम महासचिव टी. मुइवाह और वार्ताकार रवि ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए थे.
गौरतलब है कि 18 अगस्त को रवि ने कहा था कि केंद्र सरकार नगा शांति प्रक्रिया बगैर देर किए संपन्न करने के लिए प्रतिबद्ध है और उन्होंने यह भी कहा था कि बंदूक के साये में अंतहीन वार्ता स्वीकार्य नहीं है.
नगा होहो प्रमुख ने कहा, ‘ऐतिहासिक रूप से कश्मीरी भारतीय हैं लेकिन नगा बस नगा हैं और नगाओं को ब्रिटिश भारत का हिस्सा बनने के लिए मजबूर किया गया था.’
उन्होंने कहा कि सरकार को समझौते को पूरा करने के लिए बल प्रयोग नहीं करना चाहिए और नगा अपने अधिकार नहीं छोड़ेंगे.
उल्लेखनीय है कि 18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद मसौदा समझौता हुआ था.
न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, एनएससीएन-आईएम के एक नेता ने कहा कि जैसा कि केंद्र ने नगा राजनीतिक मुद्दे का हल ढूंढने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की है, इसलिए लंबे समय से जारी बातचीत 31 अक्टूबर से आगे जारी रहने की संभावना है.
24 अक्टूबर को हुई बैठक में एनएससीएन-आईएम के 15 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व संगठन के महासचिव और मुख्य वार्ताकार टी. मुइवाह के नेतृत्व में मिला था.
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से बात कर रहा है.
सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.
अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए.
दो साल पहले केंद्र ने एक समझौते (डीड ऑफ कमिटमेंट) पर हस्ताक्षर कर आधिकारिक रूप से छह नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के साथ बातचीत का दायरा बढ़ाया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)